चोरल, महू, मानपुर के जंगलों में 683 हेक्टेयर वनभूमि पर 891 लोगों ने कब्जे जमाए
इंदौर। प्रदीप मिश्रा
सरकारी पट्टे (Government lease) के लालच में वन विभाग (Forest Department) इंदौर कार्यालय (Indore Office) के आधीन जंगलों की वन भूमि पर हर साल अतिक्रमण व अवैध कब्जे (Illegal Occupation) की संख्या बढ़ती जा रही है। वोट बैंक पॉलिसी और स्थानीय नेताओं के दबाव के चलते हर साल जंगली इलाकों में वन भूमि पर लगातार कब्जे होते आ रहे हैं। इंदौर वन संरक्षक के अनुसार चोरल से लेकर महू व मानपुर के जंगलों में लगभग 683 हेक्टेयर जमीन पर लगभग 891जगह कब्जे हैं। इन्हें चिन्हित व सूचीबद्ध कर इनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है।
वन भूमि हथियाने के लिए कब्जा करने वाले पहले जंगल में लगे पेड़ों को सुखाने के लिए हींग व केमिकल का इस्तेमाल करते हैं। पेड़ सूखने पर उन्हें काटकर उसकी लकड़ी को टिम्बर माफिया को बेच दिया जाता है। वनभूमि पर सबसे ज्यादा कब्जे मार्च, अप्रैल, मई, जून माह से शुरू होते हैं। बारिश होते ही वन भूमि पर हल चलाकर उस पर खेती शुरू कर दी जाती है। धीरे- धीरे उस जमीन पर मालिकाना हक जताने के लिए कच्चे व अधपक्के निर्माण कर लिए जाते हैं। इस तरह धीरे-धीरे वनभूमि पर स्थायी कब्जे कर लिए जाते हैं।
वन चौकी में आग व जानलेवा हमले
जब कभी मुखबिर की खबर पर वन विभाग कर्मचारी व अधिकारी इनके खिलाफ कार्रवाई करने जाते हैं तो उन पर अतिक्रमण के खिलाफ चलने वाली मुहिम रोकने के लिए स्थानीय नेताओं द्वारा दबाव बनाया जाता है। इतना ही नहीं कई बार तो कब्जे हटाने वाली वन विभाग की टीम या अमले पर जानलेवा हमले तक किये जाते रहे हैं। वनक्षेत्र की सुरक्षा चौकियों में आगजनी कर दी जाती है। 2 साल पहले चोरल रेंज के रसकुंडिया गांव के पास वन चौकी में आग लगा दी थी। इसके अलावा ताजा उदाहरण हाल ही में जून माह में काला पहाड़ के पास जंगलों में वन विभाग के अमले पर हुआ हमला है, जिसमें आधा दर्जन स्टाफ घायल हो गया था।
वोट बैंक के कारण कब्जे रोकने में नाकाम
वन कर्मचारी संगठन नेताओं के अनुसार वनभूमि पर लगातार हो रहे कब्जे के पीछे सरकार की वोट बैंक पॉलिसी है। सरकार ने वोट बैंक साधने के लिए जंगल की जमीन पर कब्जा कर खेती करने वालों के लिए योजना बनाई थी कि जिनके साल 2005 के पहले तक वन भूमि पर कब्जे हैं, उन्हें उतनी जमीन सरकारी पट्टे में दी जाएगी। इस योजना के कारण अतिक्रमणकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय उन्हें इनाम में सैकड़ों हेक्टेयर वन भूमि के सरकारी पट्टे मिले। इस सरकारी पॉलिसी के चलते वन भूमि पर कब्जे करने वालों के हौंसले बुलंद होते चले गए। इसके बाद यह सोचकर आसपास के गांववाले व आदिवासी कब्जा करने लगे कि कभी न कभी वनभूमि पर सरकार उन्हें भी पट्टा दे देगी। इसी सोच की वजह से हर साल जंगल क्षेत्र में वनभूमि पर कब्जे बढ़ते रहे। यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में इंदौर वन्य क्षेत्र में जंगल सिकुड़ते जा रहे हैं। हालांकि जंगल कम होने की वजह जंगल में बन रही फोरलेन सडक़ों से सम्बन्धित विकास कार्य भी है।
चोरल-मानपुर वन क्षेत्र में सबसे ज्यादा कब्जे
इंदौर वन विभाग के वनसंरक्षक नरेंद्र पंडवा के अनुसार जंगली इलाके की वनभूमि पर सबसे ज्यादा कब्जे चोरल, महू व मानपुर के जंगलों में चिन्हित किए गए है ं, जो इस प्रकार है…
जंगल अतिक्रमण संख्या कब्जे में वनभूमि
चोरल 166 102.592
महू 84 51.895
मानपुर 641 530.260
इस तरह चोरल, महू व मानपुर में लगभग 683 हेक्टेयर 683 लाख स्क्वेयर फीट वनभूमि पर अतिक्रमण करने वालों के कब्जे हैं। इन्दौर वन विभाग ने स्थानीय अमले के साथ मिलकर जून माह से चोरल से लेकर महू, मानपुर में कब्जे हटाने की कार्रवाई शुरू की है।
कब्जे हटाने के बाद …क्या ?
रेंजर ऑफिसर सचिन वर्मा ने बताया कि जेसीबी द्वारा जिस जगह से कब्जे हटाए जा रहे हैं, वहां उस जमीन को बीच में से गहरा खोदकर उसके आसपास ऐसी जल सरंचना बनाई जा रही है कि बारिश का पानी उसमें भरा सके। इसके बाद उसके आसपास की मिट्टी में कई प्रजातियों के पेड़ों के बीज डाल दिए जाते हैं, जिससे वह अंकुरित हो पौधे बन कर पेड़ बन सके।
हमने इन्दौर वन्यक्षेत्र की वनभूमि पर किए गए कब्जों व अतिक्रमण करने वालों को चिन्हित कर उसे हटाने की कार्रवाई शुरू कर दी है। अभी तक 100 हेक्टेयर वनभूमि पर से कब्जे हटा दिए गए हैं।
-नरेंद्र पंडवा, वन संरक्षक,
इंदौर वन विभाग
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