भोपाल: मध्य प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस का सियासी वनवास खत्म होने का नाम नहीं रही है. विधानसभा चुनाव के नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे, लेकिन उससे पहले आए एग्जिट पोल में बीजेपी की सरकार बनती दिख रही है. एमपी चुनाव को लेकर ज्यादातर एग्जिट पोल सर्वे में बीजेपी की वापसी के अनुमान है. कमलनाथ के अगुवाई में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी के लिए तमाम कोशिशें की हैं, लेकिन बीजेपी के कमल को मात देने में सफल होते नजर नहीं आ रहे हैं.
एमपी चुनाव को लेकर गुरुवार को आए एग्जिट पोल के तमाम सर्वे के मुताबिक, बीजेपी का दबदबा कायम तो कांग्रेस की वापसी पर ग्रहण लगने का अनुमान है. एक्सिस माई इंडिया से लेकर टुडेज चाणक्य और मेट्रिज जैसी एजेंसी के अनुसार बीजेपी की जीत और कांग्रेस की हार के अनुमान हैं. एग्जिट पोल के सर्वे अगर नतीजे में तब्दील होते हैं तो फिर एमपी के सिंहासन पर बीजेपी का कब्जा रहेगा और कांग्रेस की सत्ता में वापसी को झटका लग सकता है. इस तरह से कांग्रेस के एमपी में हार के पीछे क्या-क्या अहम कारण रहे, जिसके चलते उसे एक फिर से पांच साल तक के लिए सत्ता का वनवास झेलना पड़ सकता है?
ओबीसी का दांव उल्टा पड़ा- मध्य प्रदेश में कांग्रेस को ओबीसी पर दांव खेलना उल्टा पड़ गया है. जातीय जनगणना और आरक्षण मुद्दा कांग्रेस के लिए सियासी मुफीद नहीं रहा. राहुल गांधी के हर रैली में इन मुद्दों के उठाने से लगता है कि एमपी में कांग्रेस का परंपरागत सवर्ण वोटर भी छिटक गया. एग्जिट पोल के सभी सर्वे में सवर्ण समुदाय का ज्यादा वोट बीजेपी के पक्ष में जाता दिख रही है, जिस सर्वे में कांग्रेस की सरकार बनने की अनुमान है, उसमें भी दिखा है कि सामान्य वर्ग की जातियों का वोट बीजेपी को मिलने का अनुमान है.
मध्य प्रदेश में ओबीसी समुदाय बीजेपी के कोर वोटबैंक माने जाते हैं. बीजेपी के अभी तक जितने भी मुख्यमंत्री रहे हैं, वो सभी ओबीसी समुदाय से रहे हैं जबकि कांग्रेस के सभी मुख्यमंत्री सवर्ण जातियों से रहे हैं. सीएम शिवराज खुद ओबीसी से हैं जबकि कमलनाथ वैश्य समाज से हैं. ऐसे में मध्य प्रदेश की सियासत में कमलनाथ से ज्यादा शिवराज फिट बैठते हैं. ओबीसी का बड़ा तबका बीजेपी के साथ जाता दिख रहा है. कांग्रेस के कोर वोटबैंक आदिवासी और दलित वोटों में बीजेपी सेंधमारी करने में कामयाब रही है.
सियासी माहौल बनाने और बूथ पर वोट डलवाने में संगठन-कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका होती है. मध्य प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस ने माहौल तो बनाया, लेकिन वोट डालने में बीजेपी के लोग आगे रहे. इस तरह से कमजोर संगठन कांग्रेस की हार की बड़ी वजह मानी जा रही है.
सपा-बसपा से दोस्ती न करना- मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी न हो पाने के अनुमान के पीछे बड़ी वजह सपा और बसपा की भूमिका मानी जा रही है. कांग्रेस के साथ गठबंधन न होने के चलते सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जिस तरह से मोर्चा खोल दिया था. सपा ने 71 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और अखिलेश ताबड़तोड़ रैलियां करके कांग्रेस को ओबीसी विरोधी कठघरे में खड़े करने में जुट गए. इसी तरह बसपा ने किया और बड़ी संख्या में अपने प्रत्याशी उतारे.
यूपी से सटे एमपी बुलंदेखंड, चंबल, ग्वालियर बेल्ट में सपा और बसपा का सियासी जनाधार है. दोनों ही पार्टियों ने कांग्रेस-बीजेपी के बागी नेताओं को टिकट देकर त्रिकोणीय लड़ाई बना दी. अमित शाह का एक वीडियो भी आया था, जिसमें सपा की मदद करने के लिए अपने लोगों से कह रहे थे. माना जाता है कि सपा और बसपा ने कई सीटों पर कांग्रेस का सियासी समीकरण बिगाड़ दिया है.
गारंटी की टाइमिंग- कांग्रेस ने मध्य प्रदेश के चुनाव ऐलान से पहले ही सात गारंटियों का दांव चल दिया था. महिलाओं को 1500 रुपए देने और पांच सौ रुपए में गैस सिलेंडर देने जैसे वादे किए थे. कांग्रेस के इन गारंटियों से सियासी माहौल बनता, उससे पहले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लाड़ली बहना योजना शुरू कर दी. सूबे की एक करोड़ 31 लाख महिलाओं के खाते में 1250 रुपए की दो किश्ते भी जारी कर दी. इसी तरह से बीजेपी ने 450 रुपये में गैस सिलेंडर देने का ऐलान कर दिया.
लाड़ली बहना योजना को 1250 से बढ़ाकर तीन हजार तक करने का वादा कर रखा है. शिवराज ने कहा भी था कि कांग्रेस जो वादे कर रही है, उसे हम पूरा कर रहे हैं. इस तरह कांग्रेस ने चुनाव आचार सहिंता लागू होने से पहले घोषणा करके बीजेपी को उसे अमलीजामा पहनाने का मौका दे दिया.
टिकट पर बगावत- मध्य प्रदेश में कांग्रेस चुनाव तैयारियों में लंबे समय से जुटी हुई थी, लेकिन टिकट वितरण में बीजेपी से पिछड़ गई. कांग्रेस ने देर से उम्मीदवार उतारना और जब लिस्ट जारी किया तो पार्टी के कई नेता बागी हो गए. टिकट को लेकर नाराजगी इस कदर बढ़ गई की कांग्रेस को चार सीटों पर अपने उम्मीदवार बदलने पड़ गए थे. कांग्रेस के करीब 20 से 25 बड़े नेताओं ने बसपा, सपा से टिकट लेकर या फिर निर्दलीय चुनाव में ताल ठोक दिए थे. कांग्रेस अपने बागी नेताओं को साधने में सफल नहीं रही, माना जा रहा है कि जिसके चलते ही बीजेपी को सियासी फायदा मिला है और कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ गया.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved