उज्जैन। कोरोना की पहली और दूसरी लहर में लॉकडाउन के कारण शहर के कई लोगों की या तो नौकरी चली गई है या फिर धंधे चौपट हो गए थे तथा वे डिप्रेशन के शिकार होने के कारण चिकित्सक या मनोचिकित्सकों के पास इलाज हेतु भी पहुँच रहे थे। जिला अस्पताल में अब ऐसे मरीजों की संख्या घटने लगी है।
जिला चिकित्सालय के मनोरोग चिकित्सक डॉ. विनित अग्रवाल ने बताया कि पिछले साल ऐसे लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो गई थी। कोरोना काल में नौकरी जाने या धंधा चौपट हो जाने से निराशा या डिप्रेशन के कारण उस दौरान ओपीडी में रोजाना इस तरह के लगभग 50 से अधिक मरीज रोज उपचार के लिए आ रहे थे, तब उन्हें सलाह के साथ-साथ दवाईयाँ भी दी जा रही थी लेकिन अब ऐसे मरीजों की संख्या में कमी आने लगी है। उन्होंने बताया कि हालांकि अभी भी कई लोग इस बीमारी का उपचार करा रहे हैं लेकिन पहले के मुकाबले मरीजों की संख्या घट गई है। उन्होंने बताया कि तनाव और चिंता एक लंबे समय तक रहे तो यह अवसाद में तब्दील हो जाता है। यही अवसाद एक समय इंसान को ऐसी स्थिति में पहुंच देता है, जिसमें व्यक्ति खुदकुशी जैसा कदम उठा लेता है और अपना जीवन खत्म कर लेता है। उपचार के बाद कई लोग अवसाद की बीमारी से उबरे हैं।
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