– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 18 वीं लोकसभा के चुनाव का बिगुल बज गया है। चुनावा आयोग ने सात चरणों में मतदान कार्यक्रम जारी कर दिया है। चार जून को मतगणना की तारीख तय की गई है। सीधी सी बात है कि दोपहर बाद तक 18 वीं लोकसभा की तस्वीर साफ हो जाएगी। खैर यह सब अलग बात है पर विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में चुनावों में महिलाओं की बढ़ती सक्रिय भागीदारी तारीफे काबिल है। गत दो चुनाव में देश की महिला वोटर्स ने नई सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मजे की बात यह भी है कि 2019 के चुनाव में पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिला मतदाताओं ने अधिक मुखर होकर मतदान किया। अब तो यह माना जाने लगा है कि देश के करीब एक दर्जन राज्यों में महिलाओं के वोट ही नई सरकार के गठन में बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं।
तस्वीर का सकारात्मक पक्ष यह भी है कि मतदान ही नहीं चुनाव में सक्रियता से हिस्सा लेने और उम्मीदवार को जिताने में भी महिलाएं आगे आई हैं। देश के पहले और दूसरे लोकसभा के आम चुनाव में जहां 22 महिला सांसद चुन कर आई थीं वहीं गत 2019 के आम चुनाव में 78 महिला सांसद चुन कर आईं। हालांकि आधी आबादी को मुख्य धारा में लाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा नए-नए सब्जबाग दिखाने के बावजूद टिकट वितरण के समय महिलाओं की हिस्सेदारी कम ही रह जाती है। अनुभव तो यही बताता है कि किसी भी राजनीतिक दल द्वारा आधी तो दूर की बात एक तिहाई सीटों पर भी महिलाओं को टिकट नहीं दिए जाते हैं।
खैर सबसे अच्छी बात यह है कि गांव हों या शहर, महिलाएं अब घर की चारदीवारी में कैद रहने वाली या पुरुष के कहे अनुसार मतदान करने वाली नहीं रही हैं। पुरुषों के हां में हां मिलाने वाली स्थिति से बहुत बाहर आ चुकी हैं। संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया में महिलाएं सक्रियता से हिस्सा लेने लगी हैं। इस साल देश में 96 करोड़ 88 लाख मतदाता हैं तो इनमें से महिला मतदाताओं की संख्या 47 करोड़ 15 लाख के करीब है। एक मोटे अनुमान के अनुसार पुरुषों की तुलना में करीब दो करोड़ महिला मतदाता कम हैं। यही स्थिति 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान थी। इस सबके बावजूद पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिला मतदाताओं के मतदान का आंकड़ा अधिक है। 2019 के चुनाव में पुरुष मतदाताओं का प्रतिशत 67.02 प्रतिशत रहा तो महिलाओं के मतदान का प्रतिशत 67.18 प्रतिशत रहा।
पूर्वोत्तर, हिमाचल प्रदेश, गोवा, बिहार सहित बहुत से प्रदेशों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत अधिक रहा। यह तो रही मतदान की बात तो दूसरी और नई सरकार बनाने में भी महिला मतदाताओं की अधिक भूमिका रही है। देखा जाए तो महिलाओं ने जिस दल पर अधिक भरोसा जताया उसी की सरकार बनी। मजे की बात यह है कि 2014 में मोदी सरकार बनने और 2019 में रिपीट होने का प्रमुख कारण भी महिलाओं को भाजपा और खासतौर से नरेन्द्र मोदी पर अधिक भरोसा जताने को जाता है। 2004 के चुनाव में 22 प्रतिशत महिलाओं ने भाजपा और 26 प्रतिशत पुरुषों ने कांग्रेस को वोट दिया था वहीं 2019 के चुनाव आते आते इसमें जबरदस्त बदलाव देखने को मिला। 2019 के चुनाव में महिलाओं द्वारा मोदी में विश्वास व्यक्त करने का आंकड़ा 36 प्रतिशत पहुंच गया। यानी कि 2019 के चुनाव में 36 फीसदी महिलाओं ने भाजपा को वोट दिया। महिलाओं के अधिक मतदान का ही परिणाम रहा कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और नरेन्द्र मोदी को जबरदस्त बहुमत प्राप्त हुआ।
विगत दो लोकसभा चुनाव परिणामों से सबक लेते हुए अब सभी राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के हर संभव प्रयास में जुट गए हैं। यही कारण है कि महिलाओं को लुभाने वाली योजनाएं की जा रही हैं। केंद्र की उज्ज्वला योजना, मध्य प्रदेश की लाडली योजना, लखपति लाड़ली योजना, महिला मुखिया को नकद राशि और मुफ्त बस यात्रा का करिश्मा देखा जा चुका है। आम आदमी पार्टी महिला सम्मान योजना के माध्यम से महिलाओं को लुभाने का प्रयास कर रही है। लगभग सभी राजनीतिक दल इस दिशा में आगे आ रहे हैं। बहरहाल लोकतंत्र के इस महापर्व में देश की महिलाएं अग्रणी भूमिका निभाने जा रही हैं। महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी इसे शुभ संकेत माना जा सकता है। चुनाव के दौरान आने वाले दिनों में महिलाओं की और सभी राजनीतिक दलों की नजर रहेगी। इसे देश और लोकतंत्र दोनों के लिए ही सकारात्मक कहा जा सकता है। दुनिया के देशों के लिए भी भारत की महिलाएं एक मिसाल बन कर सामने आएंगी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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