भोपाल। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में पीढ़ी परिवर्तन (generation change) का दौर भाजपा (BJP) से लेकर कांग्रेस (Congress) तक में चल रहा है। पुराने दिग्गजों को किनारे कर तीसरी और दूसरी पंक्ति के नेताओं को आगे लाया जा रहा है। पिछले कुछ सालों में देखें तो भाजपा में यह पहले से चल रहा था। तीन राज्यों में करारी हार के बाद अब कांग्रेस भी उसी राह पर चल पड़ी है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (assembly elections) में हार के बाद पार्टी ने एक झटके में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह (Kamal Nath and Digvijay Singh) जैसे दिग्गज नेताओं को किनारे कर दिया है। अब राहुल गांधी ने युथ ब्रिगेड के हाथों में प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप दी है। इसके बाद सवाल यह है कि दिग्विजय सिंह और कमलनाथ का क्या होगा?
मध्य प्रदेश कांग्रेस संगठन में बदलाव कर पार्टी ने जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया है। वहीं, उमंग सिंघार को विधायक दल का नेता और हेमंत कटारे को विधायक दल का उप नेता बनाया गया है। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस भी जातीय समीकरण साध रही है। जीतू पटवारी ओबीसी, उमंग सिंघार अनुसूचित जनजाति और हेमंत कटारे ब्राह्मण वर्ग से आते हैं। भाजपा की तरह कांग्रेस भी अब जातीय समीकरण साध रही है। कांग्रेस अब अपनी दूसरी पंक्ति के नेताओं को आगे बढ़ा कर पीढ़ी परिवर्तन कर रही है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि 10 से 15 साल में पार्टी ने क्षत्रपों की दूसरी पीढ़ी तैयार ही नहीं की। इसका विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पार्टी अब कमलनाथ को कोई पद देने के मूड में नहीं है। इसके संकेत इससे भी मिल रहे हैं कि बगैर उनकी राय लिए सीधे नियुक्तियां कर दी गईं। ऐसे में आगे उनको कोई जिम्मेदारी मिलने की संभावना नहीं दिख रही है। वहीं, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह भी राज्यसभा में तो बने रहेंगे, पर उनको भी कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी। हालांकि, वे नए युवाओं को मार्गदर्शन देते रहेंगे।
2018 में कांग्रेस में पूर्व सीएम कमलनाथ, दिग्विजय सिंह के साथ युवा के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। राजस्थान में अशोक गहलोत के साथ सचिन पायलट थे। इस वरिष्ठ और युवा नेता के समन्वय से कांग्रेस को बड़ी जीत मिली थी। इस बार मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जय और वीरू की जोड़ी मुख्य रोल में थी। इन दोनों के ही बीच द्वंद्व जैसे कई बार स्थितियां देखी गई। युवा को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, जीतू पटवारी जैसे नेताओं को साइड लाइन करके रखा गया। इस बार का चुनाव व्यक्ति विशेष केंद्रित हो गया था, जिसका कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा।
वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि पूर्व सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पुरानी पीढ़ी के नेता हैं। भाजपा से लड़ने के लिए कांग्रेस को पीढ़ी परिवर्तन की जरूरत थी। यह राहुल गांधी ने पहल की तो यह देर से उठाया सही कदम है। वरिष्ठों के अनुभव का लाभ पार्टी मार्गदर्शक के रूप में ले सकती है। वरिष्ठ पदों पर बैठाने से नई पीढ़ी का युवा पार्टी से जुड़ नहीं पाता। इसका ही प्रदेश में कांग्रेस को नुकसान हुआ है। पटैरिया का कहना है कि कमलनाथ के पास विकल्प है कि वह बेटे को लोकसभा चुनाव लड़ाएं या खुद लड़ें। हालांकि, शीर्ष नेतृत्व के ऊपर निर्भर करेगा कि वे इस पर सहमत होते हैं या नहीं?
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