नई दिल्ली । जायफल टॉफी (Toffee) के उत्पादन से संबंधित तकनीक के व्यावसायीकरण के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की गोवा स्थित शाखा सेंट्रल कोस्टल एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (ICAR-CCARI) और गोवा स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड के बीच एक करार हुआ है। इस करार पर आईसीएआर-सीसीएआरआई (ICAR-CCARI) के निदेशक डॉ ई.बी. चाकुरकर और गोवा स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड के सदस्य सचिव डॉ प्रदीप सरमोकदम ने हस्ताक्षर किए।
दरअसल, मिरिस्टिका वृक्ष के बीज को जायफल कहते हैं। मिरिस्टिका के वृक्ष की लगभग 80 प्रजातियां हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशांत महासागर के कई द्वीपों पर पाई जाती हैं। यह फल छोटी नाशपाती जैसा दिखता है, जिसकी लंबाई एक से डेढ़ इंच तक होती है। जायफल में लगभग 80-85 प्रतिशत पेरिकॉर्प यानी उसका बाहरी छिलका होता है। आमतौर पर, किसान जायफल के बीज और उसके गूदे का इस्तेमाल करते हैं और उसके छिलके को खेतों में ही छोड़ देते हैं लेकिन अब इस तकनीक के माध्यम से व्यर्थ छोड़े जाने वाले छिलकों से जायफल टॉफी बनाई जाएगी।
आईसीएआर-सीसीएआरआई (ICAR-CCARI) के निदेशक डॉ ई.बी. चाकुरकर नेगोवा राज्य में किसानों एवं कृषि उद्यमियों को लाभ पहुंचाने के लिए भविष्य की प्रौद्योगिकियों के व्यावसायिक उपयोग और हस्तांतरण की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य किसानों की आय को बढ़ाना और रोजगार के अवसर पैदा करना है ताकि स्थानीय जैव-संसाधनों का संरक्षण किया जा सके।
वहीं गोवा स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड (GSBB) के सदस्य सचिव डॉ प्रदीप सरमोकदम ने कहा कि राज्य के जैविक संसाधनों के उपयोग के माध्यम से जैव विविधता को संरक्षण देने की दिशा में जीएसबीबी, आईसीएआर-सीसीएआरआई के साथ लगातार काम करता रहेगा। आईसीएआर-सीसीएआरआई द्वारा इस तकनीक को पेटेंट कराने के लिए आवेदन भी किया गया है। एजेंसी
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