भोपाल। थर्मल बिजली के 25-25 साल के अनुबंध के पेंच में फंसकर सालाना औसतन 4 हजार करोड़ रूपए गंवाने के बाद भी सरकार चेती नहीं है और अब सोलर बिजली खरीदने का अनुबंध निजी कंपनियों से करने की तैयारी कर रही है। जानकारों का कहना है कि इससे सरकार को कुछ मिले या न मिले निजी कंपनियां जरूर मालामाल हो जाएंगी। जानकारी के अनुसार, अधिकारी सोलर प्लांट का इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित कर निजी हाथों में दे रहे हैं। 50-80 प्रतिशत तक बिजली खरीदी से जुड़े अनुबंध होंगे। बिजली नहीं खरीदने के बाद भी तय राशि कंपनियों को देनी होगी। कंपनियां सोलर एनर्जी बनाएंगी और बिना बेचे ही करोड़ों कमाएंगी। गौरतलब है कि बिजली में प्रदेश सरप्लस है। अब सरकार 66 हजार मेगावाट बिजली बनाने की तैयारी में है। मौजूदा स्थिति में यह देश की कुल मांग का 70 फीसदी है। दरअसल, पिछले 10 साल में बिजली की मांग हजार मेगावाट से बढ़कर 11 हजार हो गई है। आगामी 10 साल में मांग दोगुनी होगी, लेकिन प्रदेश ने पांच गुना ज्यादा की प्लानिंग की है। ऊर्जा विशेषज्ञ रोशन चक्रवर्ती का कहना है कि सोलर पॉवर प्लांट में सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित कर दे रही है। अनुदान सहित कई छूट देती है तो 25 साल के अनुबंध की जरूरत नहीं है। बिजली लेने पर ही निश्चित दर पर भुगतान होना चाहिए। बिजली को निजी हाथों से अलग करना जरूरी है। सरकारी प्लांट बंद हो रहे हैं। मोनोपॉली बढ़ेगी।
थर्मल की तरह सौर में भी करार
बिजली में आत्मनिर्भर होने के बाद भी अधिकारी गलतियां दोहरा रहे हैं। नतीजतन राज्य में थर्मल प्लांट से बनी बिजली के लिए निजी कंपनियों से 25-25 साल के करार के कारण सरकार सालाना बिना बिजली खरीदे उन्हें औसतन 4000 करोड़ रुपए दे रही है। थर्मल बिजली के अनुबंध पांच साल से बोझ बन गए हैं। इस साल यह आंकड़ा 6 हजार करोड़ होगा। पिछली कांग्रेस सरकार में ऐसे अनुबंध खत्म करने की तैयारी हुई थी, लेकिन बाद में कानूनी पेचीदगियां नहीं सुलझीं और ऐसे करार खत्म नहीं हो सके। अब ये गले की फांस बन गए। अब सौर ऊर्जा में भी ऐसे ही करार हो रहा है।
सौर ऊर्जा में अनुबंध के तीन मॉडल
जानकारी के अनुसार सौर ऊर्जा में अनुबंध के तीन मॉडल तय किए गए हैं। बेस मॉडल के तहत ओंकारेश्वर, रीवा व नीमच सहित अन्य जगहों पर बिजली उत्पादन में 25-25 साल के अनुबंध हैं। दूसरे मॉडल में उद्योग, कंपनी, संस्था या एजेंसी अपने यहां प्लांट लगाकर सरकार से 25 साल का अनुबंध कर सकती है। इसमें भी बिजली खरीदी के लिए एक निश्चित फॉर्मूला है। वहीं तीसरे मॉडल के तहत कुसुम योजना से किसान और कोई एजेंसी फीडर स्तर पर ही उत्पादन व वितरण का अनुबंध कर सकती है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने देश में बिजली में 50 प्रतिशत सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी तय की है। अभी देश में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 18.6 प्रतिशत है। मध्यप्रदेश में यह कम है। प्रदेश में 2023 तक 13 हजार मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य है।
ऐसे अनुबंध किस काम के
सरकार ने संकट में बिजली लेने का हवाला देकर ये अनुबंध किए थे, लेकिन पांच माह पहले देशभर में आए संकट के दौरान अनुबंधित कंपनियों ने कोयला न होने का कहकर प्रदेश को बिजली देने से हाथ खड़े कर दिए थे। ऐसे में सवाल यह है कि संकट में काम न आने पर ऐसे अनुबंध किस काम के? नोटिस देकर अनुबंध खत्म किए जा सकते थे। बड़ी कंपनियों के दखल से इतने बड़े करार हो रहे हैं। इस क्षेत्र में अडानी-अंबानी जैसे प्लेयर हैं। हजारों करोड़ के पॉवर प्रोजेक्ट में मुनाफा और कमीशन तगड़ा है। चुनिंदा कंपनियां पूरे देश में बिजली सेक्टर में डील करती हैं।
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