भोपाल। नवजात शिशु मृत्यु दर में प्रभावी कमी लाने के लिए सरकारी प्रयास ज्यादा कारगार नहीं हो पाए हैं।ऐसे में अब शिशु मृत्य दर में कमी लाने के लिये सरकार ने पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप करने का निर्णय भी लिया है। इसको लेकर मध्यप्रदेश शासन के लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग और आईएपी (इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक) के मध्य अहम करार (एमओयू) हुआ है। प्रदेश के स्वास्थ्य आयुक्त डॉ. संजय गोयल और आईएपी के सचिव डॉ. जी.वी. बसावराजा ने ग्वालियर में एमओयू (मेमोरेण्डम ऑफ अंडर स्टेंडिंग) पर हस्ताक्षर किए। स्वास्थ्य आयुक्त डॉ. संजय गोयल ने बताया कि नवजात शिशु मृत्यु दर रोकने के उद्देश्य से हुए एमओयू के तहत प्रथम चरण में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में प्रदेश के 6 जिलों के 180 डिलेवरी प्वॉइंट (संस्थागत प्रसव केन्द्र) के चिकित्सकों, स्टाफ नर्स, एएनएम एवं अन्य पैरामेडिकल स्टाफ को नवजात शिशु पुनर्जीवन विषय पर एक वर्ष तक प्रशिक्षण दिया जायेगा। प्रशिक्षण ऑनलाइन होगा और इसकी डिजिटल मॉनीटरिंग की जायेगी। साथ ही विशेषज्ञों द्वारा इसका मूल्यांकन भी किया जायेगा। पायलट प्रोजेक्ट में चयनित जिलों में श्योपुर, छतरपुर, पन्ना, दमोह, शहडोल और उमरिया शामिल हैं।
शिशु के लिए महत्वपूर्ण है फस्र्ट गोल्डन मिनट
स्वास्थ्य आयुक्त डॉ. संजय गोयल ने कहा कि नवजात शिशु के लिए फस्र्ट गोल्डन मिनट (जन्म के बाद का पहला मिनट) अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि इस पहले मिनट में निर्धारित प्रोटोकॉल के तहत सावधानी के साथ शिशु की देखभाल हो जाए तो शिशु का जीवन बचाने के साथ उसे अन्य गंभीर व्याधियों से भी बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पहले मिनट में खासतौर पर यह देखना होता है कि शिशु ठीक से श्वाँस ले रहा है या नहीं, शिशु कितनी देर बाद रोया। उन्होंने कहा यदि शिशु को तुरंत ऑक्सीजन न मिले तो उसके मस्तिष्क के कई सैल जीवन भर के लिये मृत हो जाते हैं। नवजात शिशु से संबंधित इन सभी सावधानियों एवं उपायों का प्रशिक्षण एमओयू के तहत दिया जायेगा।
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