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    अभी तो सूखे पत्तों ने साथ छोड़ा है…कहीं हरियाली रूठ ना जाए…

  • May 09, 2023

    बुझे हुए चिरागों की रुखसती से हैरान न हो…अभी तो रोशन चिरागों का अंधेरा बाकी है… तिलमिलाहट इस बात की नहीं कि उन्हें तवज्जो नहीं मिली… बगावत इस बात की है कि दुश्मनों को गले लगाकर सियासत का शहंशाह बना डाला और पार्टी पर कुर्बान होने वालों का वजूद तक मिटा डाला…और यह तो होना ही था…कांग्रेस की सरकार गिराने के लिए विरोधियों को गले लगाना और अपनी पार्टी के लिए संघर्ष करने वालों को किनारे बिठाना वक्त की मजबूरी थी…इस मजबूरी से बनी अपनों के बीच की दूरी इसलिए खाई बन गई कि अपनों को न समझाया गया न संभाला गया…सिंधिया और कांग्रेस से जिन भाजपाइयों ने ताउम्र संघर्ष किया…जिन्हें पानी पी-पीकर कोसा…जिनने आरोप-प्रत्यारोप, आक्रोश और विरोध को झेला उन्हें न केवल अपना बताना, बल्कि उनकी सरमायदारी स्वीकारना भाजपाइयों के लिए दूभर हो रहा है…वो वादा था, जिसे भाजपा ने निभाया…बागियों को अपने दल से चुनाव भी लड़वाया और जितवाया…वो वादों की मजबूरी हो सकती है… लेकिन अब समर का नया मैदान सजना है…अब भी यदि बागियों से किए वादों को दोहराया…समर्पित नेताओं या कार्यकर्ताओं के समकक्ष बिठाया…समर्पण और निष्ठा का मोल नहीं लगाया…परायों को अपना बनाया और अपनों से परायापन जताया तो मालवा से उठी चिंगारी चंबल, गुना, ग्वालियर और बुंदेलखंड तक कोहराम मचाएगी…असली चुनौती तो अब सामने आएगी…समय रहते यदि राजनीतिक संतुलन बनाया गया…समर्पितों को भी स्थान दिलाया गया तो आक्रोश मुखर नहीं हो पाएगा…वैसे भी सिंधिया हों या उनके समर्थक, यदि दल को अपनाया है तो उसकी परिपाटी और उसके सिद्धांतों को भी स्वीकारना होगा… दल के समर्पित नेताओं की कतार में स्थान बनाना होगा…जनता की चाहत के मुकाबिल बनकर टिकट की प्रतिस्पर्धा में आना होगा… यदि सिंधिया अपने समर्थकों को इंतजार का इकरार करवा पाए…जीतने के काबिल लोगों के लिए त्याग करने का बड़ा दिल दिखा पाए तो ही पार्टी और उनका अस्तित्व बच पाएगा, वरना भाजपा के लिए विरोधियों को गले लगाना गले पड़ जाएगा…बगावत का ऐसा बवंडर उठेगा कि सहेजना और संभालना मुश्किल हो जाएगा…वैसे भी प्रदेश में लगातार सरकार रहने से उपजी अंतरविरोधी भावना, यानी एंटीइन्कंबेंसी से भाजपा को मुकाबला करना है…इतने वर्षों में भाजपा इतना विश्वास भर चुकी है और विकास के नाम पर इतनी बार सरकार बना चुकी है कि वही बात दोहराना और वोट के लिए रास्ता आसान कर पाना मुश्किल होगा…लाड़ली बहना योजना भी लाड़ली लक्ष्मी का पर्याय बन चुकी है… किसानों की फसलों का मुआवजा हो या समर्थन मूल्य की बात सभी प्रशासनिक क्रम बन चुके हैं… ऐसे में एकजुटता ही संग्राम का हथियार बनेगी… और देखना यह है कि संगठन और सियासत इसे कैसे सहेजेंगे…

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    लुनेरा सराय को छह करोड़ रुपए से ज्यादा में 90 साल के लिए लेने का ऑफर

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