इंदौर। पिछले विधानसभा चुनाव (assembly elections) से पहले ही निगम (Corporation) मंडल (Board) और प्राधिकरणों (authorities) में नियुक्तियों (Appointments) के लिए सभी नेता और कार्यकर्ता सक्रिय हुए। मगर उन्हें चुनाव में कार्य करने और बेहतर परिणाम दिखाने का लालच दिया गया और विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को जोरदार सफलता मिली और सरकार बन गई। उसके बाद फिर लोकसभा चुनाव का हल्ला शुरू हो गया और यह कहा जाने लगा कि इसके परिणामों के बाद ये राजनीतिक नियुक्तियां की जाएगी। मगर ये चुनाव निपटे भी 6 महीने हो गए। इसी बीच संगठन के चुनाव और सदस्यता अभियान भी सम्पन्न हो गया।
वैसे तो भाजपा में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है, क्योंकि बड़ी संख्या में कांग्रेसियों को भी शामिल कर लिया, जिसके चलते मंत्रिमंडल सहित निगम मंडल, प्राधिकरणों में भी उनको हिस्सेदारी देना पड़ी और असल भाजपा के नेता और कार्यकर्ता मुंह ताकते ही रह गए। यही स्थिति चुनावों में भी हुई। कई भाजपा नेताओं के टिकट इसी कारण कट गए, क्योंकि उनके बदले कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं को टिकट मिल गई। दूसरी तरफ भाजपा सत्ता और संगठन लगातार इन नेताओं और कार्यकर्ताओं को लालीपॉप थमाता रहा कि फलां चुनाव या अभियान निपट जाए, उसके बाद राजनीतिक नियुक्तियां की जाएगी। अब प्रदेश की मोहन सरकार को भी एक साल पूरा हो गया है और पिछले दिनों मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी इस बात के संकेत दिए कि जल्द ही निगम मंडल, प्राधिकरण और आयोगों में राजनीतिक नियुक्तियां हो सकती है, जिसके चलते भाजपा गलियारे में फिर से इन नियुक्तियों की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। आज से हालांकि विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है, जो इसी हफ्ते निपट भी जाएगा। उसके बाद इन नियुक्तियों को लेकर फिर हलचल शुरू होगी। इंदौर में ही विकास प्राधिकरण में अध्यक्ष का पद खाली पड़ा है, जिस पर अभई संभागायुक्त की नियुक्ति है, तो इसी तरह अधिकांश निगम मंडल और अन्य शहरों के प्राधिकरणों में भी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित संचालक मंडल की नियुक्तियां होना है, तो कई आयोगों में भी पद खाली पड़े हैं। हालांकि हाउसिंग बोर्ड जैसे कई निगम मंडलों में मंत्रियों को भी उसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। मगर अब फिर से संगठन में मांग उठने लगी कि जल्द ही ये नियुक्तियां की जाएं,क्योंकि कब तक नेता और कार्यकर्ता इंतजार करेंगे। अब सभी चुनाव और सारे अभियान भी निपट गए हैं। भाजपा सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों जो संगठनात्मक चुनाव हुए और उसके बाद सदस्यता अभियान चलाया गया उसमें जिन नेताओं ने सक्रिय भूमिका निभाई और बेहतर परिणाम दिए उन्हें नियुक्तियों में अवसर मिल सकता है। हालांकि भाजपा में चूंकि संघ सहित अन्य सहयोगी संगठनों की भी भूमिका महत्वपूर्ण रहती है, लिहाजा भोपाल से लेकर दिल्ली तक इन नियुक्तियों के लिए प्रयास किए जाते हैं। अब देखना यह है कि इस बार भी ये राजनीतिक नियुक्तियां हो पाती है या फिर नेताओं-कार्यकर्ताओं को इंतजार करना पड़ेगा। फिलहाल तो सभी अपने-अपने आकाओं के चक्कर नियुक्तियों के लिए लगा भी रहे हैं।
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