जिनेवा। विश्व स्वास्थ्य संगठन World Health Organization (WHO) ने दुनियाभर में हवा की गुणवत्ता (air quality) सुधारने के लिए बीते 15 वर्षों में पहली बार नीति निर्माताओं और आम लोगों के लिए नए सख्त दिशा-निर्देश (guidelines) तय किए हैं। इसका मकसद लोगों को भविष्य के इस जानलेवा खतरे से बचाना है और स्वास्थ्य को बेहतर रखना है।
डब्ल्यूएचओ (WHO) ने नीति निर्माताओं, पैरोकार समूहों और अकादमिक क्षेत्र से जुड़े लागों और संगठनों से छह तरह के प्रदूषित तत्व (pollutant)कम करने की अपील की है। इसमें सबसे अहम है पीएम 2.5 और पीएम 10 कण, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक है। इसके साथ ओजोन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों की मात्रा को हवा में कम करने के लिए कोशिशें शुरू करने की अपील की है। मालूम हो कि बुधवार को यूएन की बैठक में जलवायु परिवर्तन पर गहन चर्चा हुई थी। इसी के आधार बनाकर डब्ल्यूएचओ ने ये नई रूपरेखा तैयार की है।
पीएम 2.5 कण का मानक बदला
डब्ल्यूएचओ के नए मानक के अनुसार वार्षिक स्तर पर पीएम 2.5 कण का मानक प्रति क्यूबिक मीटर 10 ग्राम था, जिसे अब घटाकर पांच ग्राम कर दिया है। जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सुसान एनेनबर्ग का कहना है कि ये बहुत बड़ा बदलाव है। इसका पालन करना बहुत मुश्किल होगा। वे कहते हैं कि अभी इस ग्रह पर ऐसे बहुत कम लोग हैं जिन्हें इतने कम स्तर का जोखिम हो।
लोग भी अपनी जिम्मेदारी निभाएं
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हवा को दूषित होने से बचाने की अपील के साथ लोगों से भी अपनी जिम्मेदारी निभाने की अपील की है। इसमें लोगों से जीवनशैली में सुधार, उद्योग धंधों, कार और ट्रक चलाने के साथ कूडे़ के निपटारे, औद्योगिक इकाइयों और कृषि क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों पर नजर रखी जाए।
कड़े मानदंड तैयार करने का वक्त
डब्ल्यूएचओ के वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की ग्लोबल लीड जेसिका सेडॉन का कहना है कि मनुष्यों की गतिविधियों से होने वाला वायु प्रदूषण भगौलिक क्षेत्र के आधार पर भिन्न हो सकता है। हालांकि ऊर्जा, परिवहन, कूड़ा निपटान केंद्रों के साथ घर पर बनने वाले खाने से पैदा होने वाली गर्मी भी हवा को दूषित करने में अहम भूमिका निभाती है।
दूषित हवा के बीच 90 फीसदी आबादी
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिकी देशों ने हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए प्रयासरत हैं। दुनिया की 90 फीसदी पीएम 2.5 कण के बीच सांस ले रही है, जो 2006 में तय मानकों को पार कर चुकी है। ये कण सांस के जरिए सीधे फेफड़ों में पहुंचते हैं। इससे हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
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