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    अब न वो झिलमिल झांकियों का कारवां और न शासकीय विभागों की रुचि

  • September 09, 2022

    • उज्जैन में अनंत चतुर्दशी का आयोजन हुआ फीका-रात में लोग देखने भी कम निकलते हैं
    • जरूरत है लुप्त होती विरासत व परंपरा को बचाने की-बड़े विभागों को आगे आना होगा

    उज्जैन (शीतलकुमार अक्षय)। आज से लगभग 25 से 30 वर्ष पहले इंदौर की तरह ही उज्जैन में भी अनंत चतुर्दशी के अवसर पर रात भर उज्जैनवासी जागते थे…झिलमिल झांकियों को निहारते थे और कपड़ा मिलों के श्रमिकों के साथ ही विभिन्न निजी संस्थाएं, शासकीय विभागों द्वारा उत्साह तथा उमंग के साथ झांकियों का निर्माण किया जाता था। लगभग एक सप्ताह पहले से ही झांकियों को बनाने का सिलसिला शुरू हो जाता था, वहीं उज्जैन ही नहीं बल्कि आसपास स्थित ग्रामीण क्षेेत्र के भी लोग उज्जैन में निकलने वाली झांकियों का इंतजार किया करते थे…लेकिन अब न वो झिलमिल झांकियों का कारवां है और न ही उन शासकीय विभागों की रूचि जो उज्जैन की सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखने की दिशा में अपने कदम आसानी से उठा सकते हैं। इसके अलावा शहर में कई ऐसे बड़े निजी सामाजिक संगठन भी हैं जो वृहद व आकर्षक पांडालों को सजाकर गणेश प्रतिमाएं बैठाते तो हैं परंतु लुप्त होती परंपरा को संभालने के लिए आगे नहीं आते। जबकि पूर्व के वर्षों में ऐसी संस्थाएँ, कपड़ा मिलों व शासकीय विभागों के साथ कदम से कदम मिलाकर चला करती थी। एक समय था जब कपड़ा मिलों में कार्य करने वाले श्रमिक आपसी सहयोग से ही झांकियाँ सजाकर निकाला करते थे। हालांकि नगर निगम व पीएचई जरूर इस पुरानी परंपरा का निर्वहन कर रहे है, लेकिन यहाँ लिखने में गुरेज नहीं है कि विद्युत मंडल, कृषि उपज मंडी समिति, चिंतामण गणेश मंदिर के साथ ही वे संगठन झांकियों को निकालने में रूचि नहीं ले रहे हैं जो बीते वर्षों में झांकियों के चल समारोह में उत्साह व उमंग के साथ शामिल हुआ करते थे।

    चिंतामण मंदिर के पुजारी पीछे हटे
    इस परंपरा से इस बार चिंतामण गणेश मंदिर के पुजारीगण पीछे हट गए हैं। अर्थात मंदिर पुजारी परिवार की तरफ से झांकी नहीं निकाली जाएगी। प्रबंधक अभिषेक शर्मा ने बताया कि पुजारी परिवार द्वारा किसी कारण से झांकी शहर में नहीं आएगी। मंदिर परिसर में ही भ्रमण कराया जाएगा।



    10 से 15 झांकियाँ निकलती थी
    बीते वर्षों का यदि इतिहास उठाकर देखा जाए तो बड़े शासकीय विभागों के साथ ही कपड़ा मिलों व कुछ निजी संगठनों द्वारा 10 से 15 झांकियाँ निकाली जाती थी लेकिन यदि पिछले 10 वर्षों की बात की जाए तो महज 3-4 झांकियाँ ही निकाली जा रही है। हालांकि इन झांकियों को बनाने वाले कलाकारों का उत्साहवद्र्धन करने के लिए शहरवासी सड़कों पर जरूर रतजगा करते हैं परंतु यह दु:ख का ही विषय है कि जिस तरह से इंदौर में आज भी श्रमिक संगठन मिलकर प्राचीन परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं, वह हमारे उज्जैन में नहीं दिखाई देता है।

    किस ने कौन सी झाँकी बनाई
    नगर निगम की झाँकी में कोरोना संक्रमण के शुरू होने से खत्म होने तक नगर निगम के माध्यम से की गई सेवाओं के दृश्य दिखाए जाएँगे। झाँकी द्वारा कोरोना के दौरान किए गए कार्यों को दर्शाया गया है। पीएचई द्वारा झाँकी में वर्षा जल सहेजने का संदेश देते हुए जल के महत्व को बताया है।

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