पति पर ही रेप का केस लगाया, गैंगरेप में दोस्तों को उलझाया, पुलिस ने बिना जांच-पड़ताल के ही कर दिया प्रकरण दर्ज, तीन बेगुनाह तीन साल से ज्यादा जेल में रहने के बाद बरी
इंदौर। महिलाओं (women) पर हो रही ज्यादतियों को लेकर सरकार (government) ने कठोर कानून (harsh laws) तो बना दिया, लेकिन अब उसके शिकंजे में आए दिन पुरुष (men) अपनी लाज, मान-सम्मान और जीवन बर्बाद कर रहे हैं। महिलाओं द्वारा ब्लैकमेलिंग (blackmailing) करने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। कई महिलाएं पुरुषों को बलात्कार (rape) के केस में फंसाती हैं, फिर अदालतों में जाकर बदल जाती हैं। इन घटनाओं में प्रकरण दर्ज करने से पहले पुलिस (police) द्वारा कोई छानबीन नहीं की जाती। ऐसे ही एक मामले में महिला ने अपने प्रेमी के चक्कर में अपने ही पति पर बलात्कार का केस लगाया और उसके साथियों को गैंगरेप में फंसा दिया। बिचौली मर्दाना निवासी पति अर्जुन मंसौरे और उनके साथी तीन साल की सजा काटने के बाद स्वयं ही जुटाए सबूतों के आधार पर जेल से रिहा हो पाए। इस दौरान उनका ही नहीं, बल्कि उनके साथियों का भी मान-सम्मान, सामाजिक प्रतिष्ठा सब कुछ समाप्त हो गई। यहां तक कि वे आर्थिक कठिनाइयों में भी फंस गए।
बिचौली मर्दाना निवासी पत्नी ने अपने पुरुष मित्र के साथ दोस्ती के चक्कर में पति अर्जुन मंसौरे, उसके दोस्त दशरथ राठौर और रिश्तेदार आनंद भास्करे को गैंगरेप का आरोपी बनाकर मुकदमा दर्ज करा दिया, जिसके चलते उन्हें तीन साल से ज्यादा समय जेल में गुजारना पड़ा। मुकदमे में अभियुक्त के अधिवक्ता विनयकुमार तिवारी ने इस घटना में चौंकाने वाली बात अदालत के सामने रखी कि ग्राम रिटी तहसील खातेगांव (देवास) निवासी अर्जुन हाल मुकाम बिचौली मर्दाना की शादी 2006 में हुई। उसकी पत्नी शुरू से ही विवाद करती थी। उसने कोर्ट में प्रताडऩा का केस भी लगा दिया था, जिसमें 2019 में राजीनामे के बाद साथ में रहने लगे थे। इस दौरान अर्जुन की पत्नी ने 4 सितंबर से 16 सितंबर 2019 तक पति पर बंधक बनाकर रखने, बलात्कार करने और अपने ही साथियों से गैंगरेप कराने की रिपोर्ट कन्नौद (देवास) में दर्ज कराई, जबकि घटना बिचौली मर्दाना इंदौर की बताई गई। कन्नौद पुलिस ने कायमी कर प्रकरण कनाडिय़ा पुलिस को सौंप दिया और कनाडिय़ा पुलिस ने बिना जांच किए आरोपियों को जेल भिजवा दिया। कनाडिय़ा पुलिस को सौंपे गए मामले में पुलिस साक्ष्य और जांच ठीक से कर लेती तो सच्चाई सामने आ जाती। दरअसल घटना दिनांक तक अभियुक्त के घर बिचौली मर्दाना सरकारी स्कूल के पास सीसीटीवी कैमरे (घर से बाहर) लगे थे, जिसकी जांच पुलिस ने नहीं की। घटना के समय पति के अलावा जो आरोपी बनाए गए वह वहां पर गए ही नहीं। तीन साल चले मुकदमे के बाद अष्टम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एवं विशेष न्यायाधीश चारूलता दांगी ने आदेश पारित करते हुए फैसला किया कि कनाडिय़ा पुलिस ने मुकदमा दर्ज करते हुए पर्याप्त साक्ष्य नहीं जुटाए और अभियुक्त बना लिया गया।
न मोबाइल लोकेशन चेक की, न मेडिकल
पुलिस तीनों अभियुक्तों के मोबाइल नं. भी ट्रेस नहीं करा पाई, जो घटना के समय अलग-अलग स्थानों पर शहर से बाहर थे। अभियुक्त के अभिभाषक विनयकुमार तिवारी ने बताया कि महिला ने गैंगरेप की कहानी बनाकर मुकदमा दर्ज करा दिया। कूट परीक्षण के समय मारपीट और रेप के दौरान चोट के निशान नहीं होने की बात भी सामने आई, जिससे कि घटना मनगढं़त साबित हुई।
पैसा गया…… प्रतिष्ठा तार-तार……
प्रकरण में अभियुक्त रहे अर्जुन ने बताया कि मुकदमेबाजी में गांव की जमीन 6 बीघा बेचना पड़ी। सामाजिक प्रतिष्ठा भी धूमिल हुई। अर्जुन को उसकी 9 साल की लडक़ी और 7 साल के लडक़े की चिंता है। वहीं दूसरे अभियुक्त रहे आनंद, जिसकी उम्र 22 वर्ष है, पर जेल जाने का ठप्पा लगने से भविष्य अंधकार में नजर आ रहा है। वहीं तीसरे अभियुक्त दशरथ, जिसकी उम्र 40 वर्ष है, उसका परिवार मुकदमे के कारण टूट चुका है। पत्नी 2 बच्चों के साथ अलग रहती है।
फर्जी रिपोर्ट लिखाने वाली युवतियों पर होना चाहिए कार्रवाई
दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद शहर में ज्यादातर पुलिस थानों में केस में रेप और छेडख़ानी की शिकायत करने आने वाली युवती और महिलाओं की शिकायत पर कार्रवाई कर दी जाती है। पुलिस शिकायत से पहले जांच नहीं करती। भंवरकुआ थाने में ऐसा ही एक प्रकरण आया था, जब एक महिला को लेकर दो मीडियाकर्मी महिला के साथ रेप का केस दर्ज करवाने पहुंचे थे। थाना प्रभारी संजय शुक्ला को शक हुआ तो उन्होंने महिला को एक कमरे में बैठाकर महिला थानेदार से दोबारा पूछताछ करवाई, जिस पर पाया गया कि वह फर्जी रिपोर्ट लिखाने आई थी, मीडियाकर्मी और महिला योजनाबद्ध तरीके से किसी को उलझाने आए थे, उसके बाद पुलिस ने उस महिला पर कार्रवाई की थी।
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