काठमांडू। पिछले भारत के लिए खासतौर पर उत्तराखंड (especially uttarakhand) के लिए बहुत बड़ी सौगात लेकर आया था, क्योंकि कई सालों से निर्माणाधीन धारचूला लिपुलेख सड़क परियोजना का काम अपने शिखर पर पहुंचा। कभी सपने की तरह दिखने वाली धारचूला लिपुलेख सड़क (Lipulekh Road) परियोजना एक हकीकत परियोजना (Assignment or Project) बन चुकी है, लेकिन अब इस लिपुलेख दर्रा क्षेत्र में भारत सड़क को चौड़ा करने की योजना बना रहा है, हालांकि भारत के इस कदम से नेपाल में एक बार फिर से नाराजगी का माहौल है। विपक्ष और सत्तारूढ़ गठबंधन की पार्टियों ने भारत से नेपाल की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को कमजोर नहीं करने को कहा है।
कालापानी में तैनात भारतीय सैनिकों को वापस किया जाना चाहिए।” बता दें की पीएम मोदी ने 30 दिसंबर को हल्द्वानी में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था कि भारत ने टनकपुर-पिथौरागढ़ ऑल वेदर रोड पर काम करने के अलावा लिपुलेख तक सड़क भी बनाई थी और इसे आगे बढ़ाया जा रहा है।
दूसरी तरफ चीन के साथ लगते ट्राई-जंक्शन के पास लिपुलेख दर्रे के लिए सड़क के निर्माण ने हाल के दिनों में भारत और नेपाल के बीच सबसे खराब राजनयिक संकटों में से एक को जन्म दिया है, हालांकि भारत सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि सड़क केवल कैलाश मानसरोवर यात्रा के तीर्थयात्रियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पहले से मौजूद मार्ग पर ही बनी है।
वर्तमान परियोजना के तहत, जैसा कि सरकार ने पहले कहा था, तीर्थयात्रियों, स्थानीय लोगों और व्यापारियों की सुविधा के लिए उसी सड़क को चलने योग्य बनाया गया है जो पहले से मौजूद थी। नेपाल उत्तराखंड में लिपुलेख और कालापानी क्षेत्र पर दावा करता है, जबकि यह क्षेत्र भारत के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved