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अब आएगा भारत का अपना एआई, केंद्रीय मंत्री वैष्णव ने बताई डेडलाइन

  • January 30, 2025

    नई दिल्ली। अमेरिका और चीन के बाद भारत भी अपना जेनेरेटिव एआई मॉडल बनाने की तैयारी कर रहा है। चैट जीपीटी और डीपसीक की ही तरह भारत भी अपना एआई मॉडल बनाएगा। हालांकि इसे तैयार होने में करीब 6-8 महीने का समय लग सकता है।  दरअसल, जनरेटिव एआई असल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एक वर्जन है। जनरेटिव एआई मशीन लर्निंग मॉडल की मदद से प्रॉम्प्ट के आधार पर नया कंटेंट जनरेट करता है। यह कंटेंट टेक्स्ट, इमेज, वीडियो के तौर पर जनरेट होता है।

    केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ओडिशा में आयोजित उत्कर्ष कॉन्क्लेव में कहा कि, इंडिया एआई कंप्यूटर फैसिलिटी के पास 18,693 जीपीयू हैं। इसकी मदद से एक लार्ज लैंग्वेज मॉडल तैयार किया जाएगा। यह खास तौर पर भारतीय लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया जाएगा। हमारा मानना है कि ऐसे 6 बड़े डेवलपर्स हैं जो इस काम को 6-8 महीने में पूरा कर सकते हैं। अगर चीजें बेहतर रहीं तो इसके 4-6 महीने में भी पूरा होने की उम्मीद हैं। एक कॉमन कंप्यूट फैसिलिटी मजबूत एआई इकोसिस्टम बनाने के लिए बेहद जरूरी है।


    भारत सरकार लगातार एआई रिसर्च और इंफ्रास्ट्रक्चर में इन्वेस्ट कर रही हैं, इस इन्वेस्टमेंट का मकसद विदेशी एआई मॉडल पर निर्भरता को कम करना है। मंत्री ने कहा कि, 18,000 जीपीयू  के साथ भारत एक घरेलू एआई मॉडल बनाने की राह पर है जो राष्ट्र की भाषा, आर्थिक और सामाजिक जरूरत को पूरा करेगा। सरकार के पास 15,000 से ज्यादा जीपीयू उपलब्ध है। इनमे करीब 10 कंपनियां हुई शॉर्टलिस्ट, आज से फाउंडेशन मॉडल के लिए डेवलपर से आवेदन मंगवाने की शुरुआत हुई। ऐसे में अगले 8 से 10 महीने के अंदर उपलब्ध होगा भारत का अपना एआई मॉडल होगा।

    मंत्री ने कहा कि भारत एआई का उपयोग समाज से जुड़े बड़े मुद्दों के समाधान के लिए करना चाहता है। पहले चरण में 18 एआई-आधारित एप्लिकेशन को मंजूरी दी गई है। ये एप्लिकेशन मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों में काम करेंगे।  इनमें कृषि, जलवायु परिवर्तन और सीखने में अक्षमता शामिल है। उन्होंने आगे कहा कि, एआई टेक्नोलॉजी के सुरक्षित और जिम्मेदार उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए सरकार एक एआई सेफ्टी इंस्टीट्यूशन भी स्थापित करेगी। अन्य देशों के विपरीत जहां एआई रेगुलेटरी बॉडीज़ एक ही संस्थान के तहत काम करती हैं, भारत हब-एंड-स्पोक मॉडल अपनाएगा। इसके तहत कई संस्थान मिलकर सुरक्षा टूल्स और फ्रेमवर्क विकसित करेंगे।

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