उज्जैन। 35 साल पुराना गंभीर डेम अब हाँफने लगा है। जब यह बनाया गया तो शहर को पानी पिलाने के लिए शहर में मात्र 9 पेयजल टंकियाँ थी, अब इन टंकियों की संख्या बढ़कर 44 हो गई है और इन टंकियों को भरने के लिए पानी अभी भी गंभीर डेम से ही लिया जाता है। ऐसे में गंभीर अब हाँफने लगा है। शहर को नए डेम की सख्त जरूरत है, नहीं तो नई पानी की टंकियाँ बनाते रहो फिर भी शहर को पानी की सुविधा नहीं मिल पाएगी।
1990 के आसपास जब गंभीर डेम बनाया गया था तब कहा गया था इससे उज्जैन शहर को 2 साल तक लगातार पानी पिलाया जा सकता है लेकिन इसके बाद विगत 34 वर्षों में शहर की आबादी लगातार बढ़ती गई। वर्ष 2009 में 17 पेयजल टंकियाँ नई बनाई गई और बाद में चाहे इंदौर रोड हो, देवास रोड हो, मक्सी रोड हो या फिर अन्य कोई क्षेत्र। कॉलोनी लगातार बन रही है और हर वार्ड में पेयजल टंकी मंजूर की गई है। फिलहाल 44 टंकियों से भी शहर में लोगों को ठीक ढंग से पेयजल नहीं मिल पा रहा है। इस मामले में जब अग्रिबाण ने पड़ताल की तो पता चला शहर में पेयजल टंकियाँ भरने के लिए पानी तो पर्याप्त है लेकिन शहर की पेयजल टंकियों की नेटवर्किंग लाइन ठीक ढंग से नहीं डाली है। तापी कंपनी आधा अधूरा काम छोड़कर भाग गई। तापी को नेटवर्किंग लाइन भी बिछानी थी लेकिन उन्होंने नेटवर्किंग लाइन नहीं बिछाई, इसके चलते टंकी भरने के बावजूद भी टंकी से जुड़े कुछ क्षेत्रों में पानी नहीं पहुँच पाता है। यह बात कल मुख्य अभियंता की बैठक में भी सामने आई। इसके अलावा चिंतामण ब्रिज के यहाँ पर नर्मदा का पानी पाईप लाईन से लाने की योजना थी लेकिन एनवीडीए ने काम पूरा नहीं किया इसलिए यह काम अधूरा है। फिल्टर प्लांट तक नर्मदा का पानी पाइप से नहीं पहुँच पा रहा है और वैसे भी यह पाईपलाईन वैकल्पिक स्रोत है, क्योंकि नर्मदा का पानी पाइपलाइन से लाना बहुत महँगा पड़ता है और इसमें बड़ा खर्च आता है। यह तो आपातकालीन व्यवस्था के लिए व्यवस्था की गई है, यदि शहर की पेयजल व्यवस्था सुधारना है तो जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि वह एकमत होकर शहर में एक और नए डेम का प्रस्ताव बनाए। नहीं तो आने वाले दिनों में पेयजल की समस्या लगातार बनी रहेगी।
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