– आर.के. सिन्हा
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली नई सरकार ने अपना कामकाज संभाल लिया है। उसके फोकस में राज्य का चौतरफा विकास तो होगा ही पर उसे 16 अप्रैल, 2020 को पालघर में दो साधुओं के हत्यारों से जुड़े केस की जांच के काम को तेजी से निपटा कर दोषियों को सख्त से सख्त सजा दिलवानी होगी। महाराष्ट्र के पालघर में हुई इस घटना से तो सारा देश शोकाकुल था। दरअसल भीड़ ने साधुओं की निर्मम तरीके से हत्या कर दी थी। क्या आप यकीन करेंगे कि हत्यारों ने उन पुलिसवालों पर भी जानलेवा हमला भी बोल दिया था जो उन साधुओं को बचाने की कोशिश कर रहे थे। दरअसल जूना अखाड़ा के दो साधु और उनके वाहन को चलाने वाला ड्राइवर अपने गुरु श्री महंत रामगिरी के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए यात्रा कर रहे थे। ये जब मुंबई से 140 किलोमीटर दूर गडचिंचले गांव से गुजर रहे थे, तब एक वन विभाग के संतरी ने उनकी कार को स्थानीय चौकी पर रोका। जब वे संतरी से बात कर ही रहे थे तब लफंगों ने उन पर लाठी और कुल्हाड़ी से हमला कर दिया। बताते हैं कि उन ग्रामीणों ने साधुओं को बच्चा चोर और अंग तस्कर समझ लिया था और क्रोघ में उन पर आक्रमण कर दिया।
पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की भी, लेकिन बीच-बचाव करने की कोशिश करने पर उन्हें भी ग्रामीणों द्वारा पीटा गया। इससे समझा जा सकता है कि महाराष्ट्र में कानून-व्यवस्था की हालत कितनी खराब हो चुकी थी। दरअसल पालघर में जो कुछ घटा था वह एक सभ्य समाज के माथे पर कलंक है। उस मामले में 100 से अधिक लोग पकड़े गए थे। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली हिन्दुत्ववादी सरकार से देश उम्मीद करेगा कि वह साधुओं को बर्बरतापूर्ण तरीके से मारने वाले हत्यारों को जल्दी से जल्दी दंड दिलवाए। राज्य सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि गुनहगारों को ऐसी कड़ी सजा मिले कि दोबारा देश में कहीं भी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। यकीन नहीं होता कि कोई इंसान या इंसानों का समूह इतना क्रूर, निर्दयी और हिंसक कैसे हो सकता है? कौन थी वह हिंसक भीड़ जिसने निहत्थे निरपराध साधुओं को सरेआम लाठी-डंडों से क्रूरतापूर्वक मारा था।
पालघर में साधुओं के कत्लेआम ने 07 नवंबर, 1966 की उस दर्दनाक घटना की यादें ताजा कर दी थीं जब राजधानी दिल्ली में इंदिरा गांधी सरकार की पुलिस ने सरेआम निर्दोष और निहत्थे साधु-संतों पर गोलियां बरसाई थीं। ये साधु-संत संसद भवन के सामने बैठकर धरना दे रहे थे। हिन्दू पंचांग के अनुसार उस दिन विक्रमी संवत 2012 कार्तिक शुक्ल की अष्टमी थी जिसे ‘गोपाष्टमी’ भी कहा जाता है। इस धरने में भारत साधु समाज, सनातन धर्म, जैन धर्म आदि सभी भारतीय धार्मिक समुदायों ने भाग लिया था । इस आन्दोलन में चारों शंकराचार्य तथा स्वामी करपात्री जी महाराज भी जुटे थे। जैन मुनि सुशील कुमार तथा सार्वदेशिक सभा के प्रधान लाला रामगोपाल शालवाले और हिन्दू महासभा के प्रधान प्रो. रामसिंह जी भी सक्रिय थे।
संत श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी तथा पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी निरंजनदेव तीर्थ तथा महात्मा रामचन्द्र वीर के आमरण अनशन ने आन्दोलन में प्राण फूंक दिये थे। करपात्री जी महाराज की अगुवाई में चला था वह आंदोलन। उस पर खुलेआम गोलियां चलाई गई थीं। उसमें दर्जनों निहत्थे साधु-संत मारे गए थे। हालांकि मृतकों की संख्या को लेकर अलग-अलग दावे किए जाते रहे हैं। उस आंदोलन में भाग लेने के लिए हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश से हजारों लोग दिल्ली आए थे। आंदोलनकारी गोहत्या पर रोक की मांग कर रहे थे। साधु- संतों पर गोलीबारी से क्षुब्ध होकर तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने त्यागपत्र दे दिया था और इस कांड के लिए अपनी ही सरकार को जिम्मेदार बताया था। उसी गोलीकांड से क्षुब्ध होकर स्वामी करपात्री जी महाराज ने सार्वजानिक श्राप दिया था कि इंदिरा गांधी या उनके परिवार के किसी सदस्य के स्वाभाविक मृत्यु नसीब नहीं होगी।
अफसोस यह है कि साधुओं की हत्या पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सिर्फ निंदा करके ही पल्ला झाड़ लिया था। उन्होंने घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद को छोड़ने के बारे में तो सोचा भी नहीं। उनकी सरकार में शामिल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के किसी भी बड़े नेता ने साधुओं की हत्या पर गहरा क्षोभ तक जाहिर नहीं किया था। बाल ठाकरे जैसे महान नेता के पुत्र का साधुओं की हत्या को लेकर निर्विकार भाव रखना हैरान करने वाला था। पालघर में भीड़ ने जिस तरह दो असहाय साधुओं की पीट-पीट कर हत्या की थी, वह धर्म की दृष्टि से घोर पाप था। यह हत्या उद्धव ठाकरे के राज्य में हुई थी। पुलिस की मौजूदगी में हुई थी। इसलिए देश उम्मीद कर रहा था इस जघन्य हत्याकांड में शामिल दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई में कतई देरी नहीं करेंगे उद्धव ठाकरे। पर कहना होगा कि मुख्यमंत्री रहते हुए उद्धव ठाकरे ने कोई इस तरह की पहल तक नहीं की जिससे ठोस संदेश जाता कि वे दोषियों को लेकर सख्त है। वे लुंज-पुंज रवैया अपनाते रहे। इसी का परिणाम है कि साधुओं को मारने वाले अब भी मौज कर रहे हैं। उस हत्यारी भीड़ का हिस्सा रहे अधिकतर लोगों को तो पुलिस केस कमजोर होने के कारण बेल भी मिल गई है।
हालांकि उद्धव ठाकरे से देश का संत समाज लगातार गुजारिश कर रहता रहा कि वे साधुओं के हत्यारों को तुरंत दंड दिलवाएं। पर उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। साधुओं की हत्या को दो साल गुजर गए पर सारा केस अभी किसी नतीजे की तरफ बढ़ता दिखाई नहीं दे रहा है। महाराष्ट्र में सत्ता से बेदखल कर दी गई उद्धव ठाकरे सरकार इस मामले में न्याय नहीं कर सकी। आरोपी आज भी खुलेआम घूम रहे हैं। आखिर आरोपितों को इतनी जल्द जमानत पर कैसे रिहा कर दिया गया। कहने वाले तो कहते हैं कि महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार आरोपियों को येन-केन प्रकारेण बचाने में जुटी थी। सरकार न्यायालय में मजबूती से अपना पक्ष नहीं रख सकी जिससे चलते आरोपितों को जमानत मिल गई। सवाल है कि आरोपितों पर 120 बी, 427, 147, 302,148 और 149 जैसे गंभीर धारा लगने के बाद कैसे जमानत मिल गई। अब तो महाराष्ट्र में नई हिन्दुत्ववादी सरकार आ चुकी है। सारे देश को उम्मीद है कि नई सरकार पालघर में साधुओं को मारने वालों को जल्दी से जल्दी सजा दिलवाएगी।
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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