भोपाल। मध्य प्रदेश एक बार फिर कोयला संकट से घिरने जा रहा है। इस देशव्यापी संकट के बीच मध्य प्रदेश में अब सिर्फ साढ़े 3 दिनों के लिए 2 लाख 72 हजार मीट्रिक टन कोयला ही बचा है। यह आंकड़े खुद सरकारी डिस्पैच सेंटर ने जारी किए हैं। इस परिस्थिति में अब सरकार के साथ-साथ आम जनता की चिंता भी बढ़ गई है। बिजली मामलों की जानकारों की भी चिंता बढ़ गई है। उनका कहना है कि प्रदेश सरकार को केंद्र से कोयला मांगना चाहिए। रेलवे भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। जानकारी के मुताबिक, मध्य प्रदेश में मौजूद पावर प्लांटों में कोयले की उपलब्धता बहुत कम हो गई है। बताया जा रहा है कि देशभर के पावर हाउस में कोयला 33 फीसदी उपलब्ध होता ही है, लेकिन मध्य प्रदेश के चार पावर प्लांटों में सिर्फ 13 फीसदी कोयला ही उपलब्ध है। अमरकंटक पावर प्लांट में 49.90 हजार मीट्रिक टन कोयला बचा है, बिरसिंहपुर पावर प्लांट में 35.30 हजार मीट्रिक टन कोयला बचा है, सतपुड़ा सारणी पावर प्लांट में 50.30 हजार मीट्रिक टन कोयला बचा है और श्री सिंगाजी पावर प्लांट में 1,36,400 मीट्रिक टन कोयला ही बचा है. बता दें, प्रदेश के बिजली घरों में सिर्फ 2.72 हजार मीट्रिक टन कोयला बचा है।
देशभर में है संकट
गौरतलब है कि कोयला संकट की समस्या अकेले मध्य प्रदेश में नहीं है, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी कुछ इस तरीके के हालात हैं। छत्तीसगढ़ में भी कोयला संकट को लेकर राज्य सरकार जहां केंद्र की व्यवस्था पर ठीकरा फोड़ रही है, तो वहीं मध्य प्रदेश को भी इस संकट से उबरने के लिए केंद्र से मदद मांगनी होगी। अमूमन देश के कई राज्य केंद्र से अतिरिक्त कोयले की मांग कर रहे हैं।
रोज इतनी है खपत
जानकारी के मुताबिक, प्रदेश में रोज 58 हजार मीट्रिक टन कोयले की खपत है, जबकि आ रहा है केवल 50 हजार मीट्रिक टन कोयला। बिजली मामलों की जानकार बताते हैं कि पावर स्टेशनों को 26 दिनों का स्टॉक रखना चाहिए, लेकिन मध्य प्रदेश में फिलहाल यह स्थिति नहीं है। यहां सिर्फ तीन से चार दिनों का कोयला मौजूद है। राज्य सरकार को चाहिए कि वह भी कर्नाटक की तर्ज पर केंद्र से अतिरिक्त कोयले की मांग करे। वहीं, रेलवे को भी कोयला आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
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