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    अब निकाय एवं पंचायत चुनाव में कूदेगी भाजपा

  • February 14, 2021

    • विधायक और मंत्रियों को मिलेगी बड़ी जिम्मेदारी

    भोपाल। प्रदेश में अभी नगरीय निकाय एवं त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का ऐलान नहीं हुआ है,्र लेकिन भाजपा ने निकाय चुनाव की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। उज्जैन में दो दिन तक विधायकों के प्रशिक्षण शिविर के माध्यम से संगठन ने पार्टी नेताओं को चुनाव में जुटने के संकेत दे दिए हैं। जल्द ही भाजपा विधायक एवं नेता जिलों में बैठकों का आयोजन करेंगे। जिनमें बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं की भीड़ रहेगी। भाजपा सूत्रों के अनुसार निकाय चुनाव में पार्टी नए चेहरों को मौका देने की तैयारी में है। पार्षद के लिए ज्यादातर नए चेहरे होंगे। नेताओं के रिश्तेदारों को उनकी सिफारिश पर टिकट नहीं मिलेगी। यदि वे पार्टी में और जनता के बीच सक्रिय है और टिकट की दावेदारी में फिट बैठते हैं, तभी नेताओं के बेटा-बेटी और उनके रिश्तेदारों के नाम पर विचार किया जाएगा। इसी तरह नगर पंचायत एवं नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए भी नए चेहरों को मौका मिलेगी। जो पूर्व में अध्यक्ष रह चुके हैं या जिनके पास दूसरी जिम्मेदारी है। उन्हें भी टिकट की दौड़ से बाहर रखा जाएगा। विधायकों के प्रशिक्षण शिविर में निकाय चुनाव केा लेकर कोई विस्तार से चर्चा नहीं हुई है, लेकिन पार्टी नेताओं ने इसके लिए तैयार रहने को कहा है।

    विधायक नहीं बनेंगे महापौर
    भाजपा में यह साफ हो गया है कि 16 में से किसी भी नगर निगम में महापौर का टिकट किसी भी विधायक को नहीं दिया जाएगा। भोपाल में विधायक कृष्णा गौर का नाम चर्चा में था। साथ ही इंदौर से मालिनी गौर को फिर से महापौर बनाए जाने की अटकलें थी। वहीं ग्वालियर में पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता फिर से महापौर टिकट पाने की लॉबिंग कर रही है। समीक्षा ने पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी से बगावत की थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान वे भाजपा के साथ आ गई थी। समीक्षा को महापौर का टिकट मिलने की संभावना कम ही है। क्योंकि भाजपा संगठन नए चेहरों को फिर से मौका देने का निर्णय कर चुका है।

    नेताओं की पत्नियों की संभावना कम
    पंचायत एवं निकाय चुनाव में महिलाओं को 50 फीसदी का आरक्षण रहता है। ऐसे में हर चुनाव में महापौर, अध्यक्ष एवं पार्षदों का आरक्षण बदलता रहा है। जो वार्ड पिछली बार पुरूषों के लिए आरक्षित थे, उनमें से इस बार ज्यादातर महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। ऐसे में नेता अपनी पत्नियों को चुनाव मैदान में उतार देते हैं। पार्टी इस बार पार्टी में सक्रिय महिला कार्यकर्ता एवं पदाधिकारियों को ही मौका देना चाहती है। हालांकि जीत की प्रबल संभावना को देखते हुए नेताओं की पत्नियों को भी मौका मिल सकता है।

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