इंदौर। गुना लोकसभा सीट से दावा कर रहे अरुण यादव को पार्टी ने टिकट नहीं देकर फिलहाल खंडवा से ही लडऩे का इशारा कर दिया है। इसे कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी से भी देखा जा रहा है। यादव बहुल गुना सीट से अगर अरुण यादव हार का अंतर कम भी कर देते तो यहां उनका प्रभाव बढ़ जाएगा, जो बड़े नेता नहीं चाहते हंै। इसलिए सिंधिया के सामने किसी दूसरे चेहरे को उतार दिया गया। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और निमाड़ के नेता अरुण यादव का राजनीतिक पुनर्वास नहीं हो पा रहा है। पहले उनकी पटरी कमलनाथ से नहीं बैठी और उसी कारण वे भोपाल में कम नजर आने लगे और अब पटवारी के साथ वे घूम तो रहे हैं, लेकिन जिस तरह से उन्हें गुना लोकसभा सीट से टिकट नहीं दिया गया है, उससे राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की बातें होने लगी है। गुना सीट से भाजपा द्वारा ज्योतिरादित्य सिंधिया को उतारने के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस यहां से किसी बड़े चेहरे को उतारेगी, लेकिन पार्टी की अंदरूनी रिपोर्ट कुछ और कह रही थी। यहां से अरुण यादव ने दमदारी से चुनाव लडऩे की घोषणा की थी, लेकिन कल कांग्रेस ने जो सूची जारी की, उसमें पार्टी ने राव यादवेन्द्रसिंह को प्रत्याशी घोषित कर दिया। इससे यादव के गुना से चुनाव लडऩे के अरमान ठंडे हो गए।
हालांकि कल यादव तीन लोकसभा क्षेत्रों के दौरे में प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के साथ ही थे, लेकिन रात में आई सूची में उनका नाम नहीं था। इससे स्पष्ट हो गया कि पार्टी में अभी भी वरिष्ठ नेताओं का हस्तक्षेप दिल्ली में हावी है। अब प्रदेश की 28 सीटों में से मात्र तीन सीटों पर ही कांग्रेस उम्मीदवार की घोषणा होना है, जिसमें खंडवा के साथ-साथ मुरैना और ग्वालियर शामिल हैं। अब माना जा रहा है कि यादव को खंडवा सीट से ही चुनाव लड़ाया जा सकता है। हालांकि इस सीट पर वे एक बार सांसद रह चुके हैं और मंत्री भी, लेकिन बाद में इस सीट से हार गए थे। सूत्रों का कहना है कि अगर यादव को खंडवा से टिकट दिया जाता है तो यह माना जाएगा कि उन्हें वरिष्ठ नेता निमाड़ क्षेत्र से आगे नहीं बढऩे देना चाहते और वे उन्हें यहीं तक बांधकर रहना चाहते हैं। एक-दो दिन में तीनों लोकसभा के प्रत्याशियों की भी घोषणा हो जाएगी।
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