– कुसुम चोपड़ा
कहते हैं कि समय की सबसे खास बात यह होती है कि अच्छा हो या बुरा, यह गुजर ही जाता है। कोरोना के इस मुश्किल दौर में यह बात और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, जब हम सब बेसब्री के साथ इस मुश्किल समय के गुजर जाने का इंतजार कर रहे हैं।
कोरोना नाम का यह अदृश्य शत्रु जहां हमारी जिंदगियों पर भारी पड़ रहा है तो इसकी वजह से हमारी जेब पर लगातार डाका पड़ रहा है। लाखों लोगों के कारोबार बंद हो चुके हैं, करोड़ों लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं। जिनकी बची हैं उनके वेतन में कंपनियां भारी-भरकम कटौती कर अपने नुकसान की भरपाई कर रही हैं। कम वेतन मिलने से लोगों के घर का बजट पूरी तरह से डंवाडोल है। लेकिन, इसका दुख मनाने की बजाए, अगर हम एकबार पलट कर उन लोगों की तरफ देंखे, जिनके रोजगार खत्म हो चुके हैं, जिनके पास परिवार का पेट भरने का कोई साधन नहीं रहा है तो हम खुद को काफी बेहतर जगह पर महसूस करेंगे। महामारी के इस दौर में दुनिया का कोई ऐसा शख्स नहीं होगा, जिस पर किसी न किसी रूप में इस अज्ञात दुश्मन ने अपना असर ना छोड़ा हो।
बेशक, इस समय आपको अपना दुख सबसे ज्यादा लग रहा होगा लेकिन आज हम जो कड़वी सच्चाई आपको बताने जा रहे हैं, उसे पढ़ने के बाद आप ऊपर वाले का धन्यवाद करेंगे कि आप अभी भी बहुत अच्छी स्थिति में हैं। आपसे लाख गुना ज्यादा वे लोग इस महामारी से प्रभावित हुए हैं, जिन्हें इस समय पेट भरने के लिए दो समय का भोजन भी नसीब नहीं है। अमेरिका की गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम ने अपनी ताजा रिपोर्ट “हंगर वायरस मल्टीप्लाइज” में दावा किया है कि इस समय भुखमरी के कारण मरने वाले लोगों की संख्या, कोविड-19 के कारण मरने वाले लोगों की संख्या से कहीं अधिक है। कोविड-19 से दुनिया में हर एक मिनट में करीब सात लोगों की मौत हो रही है, जबकि भुखमरी से एक मिनट में 11 लोग दम तोड़ रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक साल में पूरी दुनिया में अकाल जैसे हालात का सामना करने वाले लोगों की संख्या छह गुना बढ़ गई है। ऑक्सफैम के अध्यक्ष और सीईओ एबी मैक्समैन के मुताबिक, “आंकड़े चौंका देने वाले हैं लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि ये आंकड़े उन लोगों का दर्द देखकर बनाए गए हैं, जो इस समय अपना और अपने बच्चों का पेट नहीं भर पा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में करीब 15.5 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा के भीषण अन्न संकट का सामना कर रहे हैं। यह आंकड़ा पिछले साल के आंकड़ों की तुलना में लगभग दो करोड़ ज्यादा है। इनमें से करीब दो तिहाई लोग भुखमरी के शिकार हैं।”
इस अदृश्य शत्रु ने अमेरिका जैसी महाशक्ति समेत लगभग हर देश की अर्थव्यवस्था को भारी चोट पहुंचाई है। कोविड-19 के कारण आर्थिक गिरावट और स्थितियों से लगातार जूझने के साथ-साथ जलवायु संकट ने भी दुनिया भर में 5.20 लाख से अधिक लोगों को भुखमरी की कगार पर ला खड़ा किया है।”
इस समय जहां, पूरी दुनिया को कोरोना जैसे महाशत्रु का विनाश करने के लिए एकजुट होना चाहिए, वहीं इसके उलट कुछ देश लगातार युद्ध जैसे विनाशकारी तरीके अपना रहे हैं। जिसका सीधा असर ऐसे लाखों लोगों पर पड़ रहा है जो पहले से ही मौसम से जुड़ी आपदाओं और आर्थिक संकट की मार से कराह रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, महामारी के बावजूद वैश्विक सैन्य खर्च बढ़कर 51 अरब डॉलर हो गया है। भुखमरी को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को जितने धन की जरूरत है, यह राशि उससे छह गुना ज्यादा है। अब आप ही बताइये, इन हालातों में अगर हमने कोरोना महामारी को हरा भी दिया तो महामारी से कहीं ज्यादा भयानक भुखमरी और जलवायु संकट जैसे हालात क्या हमें जीने देंगे।
इन परिस्थितियों को देखकर जिन लोगों के वेतन में कटौती हुई है या फिर जो लोग अपने मनोरंजन के साधनों पर खर्च न कर पाने से दुखी हैं, उम्मीद है कि वे इस रिपोर्ट को पढ़कर खुद को काफी बेहतर स्थिति में महसूस कर रहे होंगे। समझदारी यही कहती है कि शांत और स्थिर चित्त होकर इस मुश्किल समय के गुजर जाने के इंतजार करें। समय तो हर हाल में हमें काटना ही है, फिर चाहे नकारात्मक सोच के साथ काटें या फिर सकारात्मक होकर। दौर बेशक मुश्किल है लेकिन गुजर जाएगा।
(लेखिका हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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