नई दिल्ली: किसान (Farmer) एक फिर दिल्ली कूच (Delhi Couch) करने की तैयारी में है. संयुक्त किसान मोर्चा (United Kisan Morcha) और किसान मज़दूर मोर्चा (Kisan Mazdoor Morcha) ने अपनी मांगों को लेकर 13 फरवरी को ‘दिल्ली कूच’ का नारा दिया है. संयुक्त किसान मोर्चा ने 16 फरवरी को एक दिन का ग्रामीण भारत बंद (one day rural india bandh) करने का ऐलान किया है. चर्चा है कि 200 से ज्यादा किसान यूनियन (farmers union) इस मार्च में हिस्सा लेंगी. इस बार किसानों की कई मांगे हैं. बेशक वो प्रमुख तौर पर सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP की गारंटी देने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सिर्फ यही एक मुद्दा नहीं है.
किसानों को रोकने के लिए कंक्रीट की बैरिकेडिंग की गई. सड़कें बंद की जा रही हैं. प्रशासन ने एहतियाती बरतते हुए पूरी दिल्ली में धारा 44 लागू कर दी है. सोमवार शाम को किसान नेताओं और केंद्र सरकार के मंत्रियों के बीच बैठक होगी. बैठक में किसान नेता अपनी मांगों को फिर से सरकार के सामने दोहराएंगे. बताया जा रहा है कि अगर समझौता सफल नहीं होता है तो बड़ी संख्या में किसान दिल्ली की ओर रुख करेंगे.आइए जानते हैं कि ऐसी क्या नौबत आई कि किसानों ने दिल्ली कूच करने का फैसला लिया.
1- MSP की गारंटी
MSP यानी मिनिमन सपोर्ट प्राइस, वो कीमत है जिस मूल्य पर सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदती है. यह किसानों की उत्पादन लागत से कम-से-कम डेढ़ गुना ज्यादा होती है. किसानों की मांग है कि सरकार उन्हें MSP की गारंटी दे. ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट मेंअर्थशास्त्री डॉ. रणजीत सिंह घुमन का कहना है, ‘किसानों को बाजार और बिचौलियों की दया पर छोड़ दिया गया है.’ उनका कहना है कि MSP को सही से लागू नहीं किया जा सका है और बड़ी संख्या में फसलों को MSP से कम कीमत में खरीदा जा रहा है. केवल 3 से 4 फसलों को ही MSP पर खरीदा जाता है. बाकी फसलें तय MSP से कम कीमत में खरीदी जाती हैं.
2- लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में न्याय मिले
किसान लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए ‘न्याय’ की भी मांग कर रहे हैं. 2021 में जब उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसान रैली निकाल रहे थे, तो तीन गाड़ियां आईं और किसानों को टक्कर मारते हुए निकल गईं. इस घटना में 4 किसानों की मौत हो गई. किसान संगठन दावा करते हैं कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बड़े बेटे आशीष मिश्रा के इशारे पर प्रदर्शनकारियों ने किसानों को गाड़ियों से कुचल दिया गया था. किसान इस बात से नाराज हैं कि अभी तक हिंसा की साजिश में शामिल लोगों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है.
3- स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें लागू हों
प्रदर्शन कर रहे किसान स्वामीनाथन की अध्यक्षता में बने आयोग की सिफारिशों को लागू करवाना चाहते हैं. एम एस स्वामीनाथन हरित क्रांति के जनक और महान कृषि वैज्ञानिक थे. उनकी अध्यक्षता वाले मिशन ने किसानों के जीवन स्तर को बेहतर करने के लिए कई सिफारिशें की थी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आयोग ने MSP औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा रखने की सिफारिश की थी. साथ ही इसका दायरा बाकी फसलों तक बढ़ाने का सुझाव दिया. गुणवत्ता वाले बीजों को किसानों को कम दामों पर मुहैया कराना, जमीन का सही बंटवारा करने जैसी सिफारिशें स्वामीनाथन आयोग ने की थी. हालांकि, सरकार अब तक सभी सुझावों को लागू नहीं कर पाई है. हाल ही में एम. एस. स्वामीनाथन को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई है.
4- पेंशन और फसली बीमा
किसानों की यह भी मांग है कि एक तय उम्र से अधिक किसानों और कृषि मजदूरों को पेंशन की सुविधा दी जानी चाहिए. उनकी मांग के तहत, किसानों और 58 साल से ज्यादा उम्र के कृषि मजदूरों के लिए 10,000 रुपए प्रति माह की पेंशन देने की योजना लागू की जाए. पेंशन के अलावा फसल बीमा की सुविधा दी जाने की मांग है. 2020 में हुए प्रदर्शन के दौरान जिन लोगों पर केस दर्ज हुए, उनके ऊपर से केस हटाने की मांग भी किसान कर रहे हैं.
5- नोएडा के किसानों की मांग
कुछ दिनों पहले तक नोएडा के किसानों ने भी संसद भवन के सामने प्रदर्शन करने के लिए दिल्ली तक मार्च करने की योजना बनाई थी. उन किसानों की मांग अपनी जमीन के लिए ज्यादा मुआवजे की थी. दरअसल, नोएडा और ग्रेटर नोएडा की लोकल डेवलपमेंट अथॉरिटी ने विकास परियोजनाओं के लिए किसानों से जमीन खरीदी थी. किसानों की मांग है कि उन्हें अपनी जमीन के बदले में 10 प्रतिशत ‘आबादी प्लाॅट’ का आवंटन या उसकी कीमत का मुआवजा दिया जाए. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बडौली गांव के निवासी सुरेंद्र कसाना ने कहते हैं, उनके परिवार की लगभग 70 बीघा जमीन 2007 में नोएडा प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहण की गई थी. हालांकि, उन्हें अभी तक अतिरिक्त मुआवजा और 10% प्लॉट नहीं मिला है.
पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारियों के समझाने पर नोएडा के किसानों ने फिलहाल आंदोलन समाप्त कर दिया है और अपने घर लौट गए. भारतीय किसान एकता संघ के सुखबीर यादव ने कहा, ‘हमने घरों को लौटने का फैसला किया क्योंकि अधिकारियों ने हमें आश्वासन दिया है कि वे हमारी मांगों का समाधान करेंगे. अगर वे अपनी बात नहीं पूरी नहीं करते, तो हम विरोध प्रदर्शन फिर से शुरू करेंगे.’
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