चली चली रे पतंग मेरी चली रे
चलि बादलों के पार
हो के ड़ोर पे सवार
सारी दुनिया यह देख देख जलि रे
चली चली रे पतंग मेरी चली रे।
मकर संक्रांति का मुक़द्दस त्योहार अनकऱीब है। रवायत है के मकर संक्रांति से सूरज अपनी सिम्त (दिशा) में कुछ तरमीम (बदलाव) करते हुए उत्तरायण हो जाता है। गोया के माघ का ये महीना सर्दी के खात्मे और गर्मी की इब्तिदा का महीना है। भोपाल में इस दिन रंग बिरंगी पतंगे उड़ाने की रिवायात नवाबी दौर से चली आ रही है। पुराने शहर के पतंगबाज़ बुधवारे, खिन्नी वाले मैदान, जेल पहाड़ी, भदभदा जैसी जगहों पे अपनी पतंगे, चरखी वगैरह लेके पोच जाते थे साब। एक ज़माने में बन्ने लखेरे, चंदा मियां, तौबा हुज़ूर और नासिर मियां की पतंगबाज़ी देखने लायक होती थी। बाकी इंटरनेट के इस दौर में पतंगबाज़ी का शौक कम होता चला गया। नोजवान पीढ़ी को पतंगे उड़ाने में कोई दिलचस्पी ही नईं हेगी। फिर भी एक पुराने भोपाली पंडित विजय शंकर दीक्षित ने पतंगबाज़ी की रिवायात को क़ायम रखने की बड़ी संजीदा कोशिश करी है। ये मानते हैं कि पतंगबाज़ी में भी गंगा जमुनी तहज़ीब के दीदार होते हैं।
कोलार रोड के मंदाकिनी ग्राउंड पे इनकीं अलौकिक सेवा समिति बाकायदा पतंग टूर्नामेंट कराती है। पतंग टूर्नामेंट का ये 25 वां साल है। विजय शंकर दीक्षित बताते हैं कि इस साल 15 जनवरी को मकर संकान्ति मनाई जा रही है। सुबा 11 बजे से पतंगबाज़ी टूर्नामेंट शुरु होगा। इसकी खास बात ये होगी के यहां पतंगबाज़ डीजे की धुन पे पतंग को डांस कराएंगे। इधर डीजे पे कोई गाना बजेगा उधर उस्ताद टाइप के पतंगबाज़ डोर को कुछ इस तरह से झटका देंगे कि आकाश में उड़ रहीं सैकड़ों पतंगे आपको डांस करती हुई नजर आएंगी। इसके बाद टूर्नामेंट के विजेताओं को मोमेंटो दिए जाएंगे। मालूम हो कि पतंगों को उनकी साइज़ के हिसाब से पुकारा जाता है। मसलन सवा की तीन, छह का दस, पौन तावा, पौना, किच्ची और बाँची के नाम पतंग की साइज को दर्शाते हैं। वहीं पतंग के रूप रंग के मुताबिक पतंग को दो अखियल, चांदतारा, माँगदार, भेडिय़ल और मुठ्ठेदार कहा जाता है। मंदाकिनी ग्राउंड पे अलौकिक सेवा समिति के पुराने मेंबर बबलू मियाँ अपनी तरफ से तिल के लड्डू बंटवाते है। पवन बोराना भी पतंगबाज़ों को लाइनअप करने में सहयोग करते हैं। कुल मिलाके भां पे दिन भर का उम्दा पिरोगराम होता है। मुबारक हो आप सभी को इस पुरानी रिवायत को कायम रखने के लिए।