डॉक्टर भी उतावले हो रहे हैं रेमडेसिविर लगाने के लिए
इन्दौर। शहरभर के डॉक्टरों (doctors) ने यह मान लिया है कि अस्पताल (hospital) में भर्ती होते ही मरीजों को बीमारी की गंभीरता बताना और परिजनों को रेमडेशीविर (Remedisvir) की खोज में झोंक देना है। दरअसल 15 से 20 प्रतिशत बल्कि 25 से 30 प्रतिशत की दशा में भी यदि ऑक्सीजन लेवल नियंत्रित है तो सांसे के निरंतर अभ्यास और वातावरण में फैली ऑक्सीजन को लंबी गहरी सांस के जरिए फेफड़ों तक पहुंचाकर अन्य एंटीबायोटिक दवाईयों का उपयोग कर बीमारी की गति को रोकने का प्रयास कर बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। लेकिन परिजनों के कोंप से बचने के लिए अतिरिक्त सजगता दिखाते डॉक्टर पेशेंट के भर्ती होते ही परिजनों को रेमडेशीविर (Remedisvir) की पर्ची थमा रहे हैं।
एक-दो डोज काम के नहीं…बर्फ में रखना जरूरी
निजी अस्पतालों (hospitals) में डॉक्टरों द्वारा परिजनों को रेमडेशीविर के 5 इंजेक्शन (Injection) लाने की पर्ची थमाते हैं। संघर्ष करते.. जूझते… लोग जैसे-तैसे पहले दिन के एक या दो डोज लाते हैं लेकिन हकीकत है कि अगला डोज नहीं मिलने पर एक या दो डोज पर्याप्त नहीं होते। इससे बड़ी बात यह है कि परिजन आपाधापी में इंजेक्शन (Injection) तो ले आते हैं लेकिन बिना वातानुकूलित परिस्थितियों में दो चार घंटे रहने से ही दवा अपना असर खोने लगती है। ऐसे में आवश्यक है कि इंजेक्शन आइसपैक यानी बर्फ में रखकर के साथ लाया जाए।
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