अयोध्या: अयोध्या (Ayodhya) में निर्माणाधीन राममंदिर (Ram Mandir) में पानी टपकने का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा. सबसे पहले मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास (Chief Priest Acharya Satyendra Das) ने यह मुद्दा उठाया था. अब श्रीराम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने सफाई दी है. उन्होंने बिन्दुवार बताया है कि कहां और क्यों पानी टपका. इसी के साथ उन्होंने साफ कर दिया कि मंदिर के निर्माण में ना तो कोई लापरवाही हो रही है और ना ही इसमें कोई गड़बड़ी है. मामला तूल पकड़ने के बाद सोशल मीडिया पर चंपत राय ने ट्रस्ट की ओर से सफाई दी है.
उन्होंने कहा कि जहां रामलला विराजमान हैं, वहां एक बूंद भी पानी नहीं टपका है और ना ही किसी भी रास्ते से मंदिर के गर्भगृह में पानी आया है. कहा कि गर्भगृह के आगे पूर्व दिशा में मंडप है, इसे गूढ़मण्डप कहा जाता है. यहां मंदिर के द्वितीय तल की छत का कार्य पूर्ण होने के पश्चात (भूतल से लगभग 60 फीट ऊंचा) घुम्मट जुड़ेगा और मंडप की छत बन्द हो जाएगी. इस मंडप का क्षेत्र 35 फीट व्यास का है. फिलहाल इसे अस्थायी रूप से प्रथम तल पर ही ढंका गया है.
रंग मंडप एवं गुढ़ मंडप के बीच दोनों ओर सीढि़यां हैं. इनकी भी छत भी द्वितीय तल पर जाकर ढंक जाएंगी. चंपत राय के मुताबिक पत्थरों से बनने वाले मंदिर में बिजली के कन्ड्युट एवं जंक्शन बाक्स का कार्य छत के ऊपर होता है एवं कन्ड्युट को छत में छेद करके नीचे उतारा जाता है जिससे मंदिर के भूतल के छत की लाइटिंग होती है. ये कन्ड्युट एवं जंक्शन बाक्स ऊपर के फ्लोरिंग के दौरान वाटर टाईट करके सतह में छुपाईं जाती है. चूंकि प्रथम तल पर बिजली, वाटर प्रूफिंग एवं फ्लोरिंग का काम हो रहा है, इसलिए इन जंक्शन बॉक्स से पानी नीचे उतरा है.
उन्होंने बताया कि इसे देखने पर यह लग सकता है कि छत से पानी टपक रहा है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. उन्होंने बताया कि मन्दिर एवं परकोटा परिसर में बरसात के पानी की निकासी के बेहतर इंतजाम हैं. कितनी भी बारिश हो, एक बूंद भी पानी मंदिर परिसर में नहीं रुकने वाला. चंपत राय के मुताबिक मन्दिर एवं परकोटे का निर्माण कार्य भारत की दो अति प्रतिष्ठित कम्पनियों L&T तथा टाटा के इंजीनियरों एवं पत्थरों से मन्दिर निर्माण की अनेक पीढ़ियों की परम्परा के वर्तमान उत्तराधिकारी चन्द्रकान्त सोमपुराजी के बेटे आशीष सोमपुरा व अनुभवी शिल्पकारों की देखरेख में हो रहा है.
उन्होंने रामभक्तों को आश्वस्त किया कि मंदिर के निर्माण में कहीं कोई लापरवाही या गड़बड़ी नहीं हुई है. कहा कि उत्तर भारत में पहली बार लोहे का उपयोग किए बिना केवल पत्थरों से मन्दिर का निर्माण किया जा रहा है. इसे उत्तर भारतीय नागर शैली कहते हैं. दुनिया भर में इस परंपरा से केवल स्वामी नारायण के मंदिर बने हैं.
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