– जी किशन रेड्डी
एक दशक पहले विशाल वन क्षेत्र और भूमि से घिरी भौगोलिक स्थिति के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र की चुनौतीपूर्ण स्थलाकृति को क्षेत्र के विकास और परिवहन संपर्क के लिए एक प्राकृतिक बाधा के रूप में माना जाता था। दस साल बाद पूर्वोत्तर क्षेत्र के जिरीबाम-इम्फाल में दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा रेलवे घाट पुल एक जीवंत तकनीकी चमत्कार है, जो स्थलाकृति की चुनौतियों के बावजूद निर्बाध परिवहन संपर्क की सुविधा प्रदान करता है। 2014 के बाद से क्षेत्र की वास्तविक क्षमता का लाभ उठाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में 5 लाख करोड़ से अधिक खर्च किए गए हैं। प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण पूर्वोत्तर क्षेत्र के समग्र विकास की रणनीति के अनिवार्य हिस्से बन गए हैं, जिनसे इस पहल को और गति मिली है। सार्वजनिक सेवा सुविधा व शासन से लेकर युवा और उद्यम तक, प्रौद्योगिकी का व्यापक उपयोग पूर्वोत्तर भारत के अमृत काल में एक नई क्रांति का वादा कर रहा है।
मजबूत अवसंरचना सुनिश्चित करने के लिए सड़कों के निर्माण में नवीनतम तकनीक का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया है। इससे प्रतिकूल मौसम की स्थिति में भी सड़कें अधिक सुदृढ़ रहेंगी। इसके अलावा, उत्तर पूर्व अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के तत्वावधान में सभी राज्यों ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए कृषि और संबद्ध क्षेत्र; आपदा प्रबंधन; वन, पारितंत्र और पर्यावरण; जल संसाधन प्रबंधन; चिकित्सा और स्वास्थ्य; योजना और विकास तथा परिवहन संचार के क्षेत्र में कार्य योजनाएं तैयार की हैं।
कृषि और बागवानी इस क्षेत्र के दो सबसे संभावना वाले क्षेत्र हैं, जिनमें आर्थिक विकास और आजीविका सृजन की अपार संभावनाएं हैं। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग भू-क्षेत्र व बागवानी अवसंरचना को मापने, स्थल उपयुक्तता के मूल्यांकन, किसानों के लिए मोबाइल ऐप आदि के लिए किया जा रहा है। पूर्वोत्तर भारत के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी कार्यक्रम (एसटीआईएनईआर), जो एनईआर में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए उत्तर-पूर्वी परिषद (एनईसी) के तहत एक समर्पित योजना है, के माध्यम से 600 से अधिक उद्यमियों, हजारों किसानों और कारीगरों को विभिन्न प्रौद्योगिकियों से लाभ हुआ है।
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय परियोजनाओं की निगरानी के लिए भी प्रौद्योगिकी का गहनता से उपयोग कर रहा है। लगभग सभी परियोजना स्थलों को जियो-टैग किया गया है और एक परियोजना निगरानी पोर्टल लॉन्च किया गया है। डिजिटल नवाचार परियोजनाओं के त्वरित कार्यान्वयन और कुशल निगरानी में मदद कर रहा है। पहली बार पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय ने राज्य सरकारों के साथ सहज सहयोग के लिए सभी राज्यों में अपनी क्षेत्रीय इकाइयां स्थापित की हैं। क्षेत्रीय इकाइयों के लिए एक मोबाइल ऐप विकसित किया जा रहा है, जिसके माध्यम से इकाइयां परियोजनाओं के तेजी से कार्यान्वयन और राज्य सरकार तथा केंद्रीय एजेंसियों के साथ बेहतर समन्वय सुनिश्चित करेंगी।
स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में, टेलीमेडिसिन और मोबाइल डायग्नोस्टिक्स के माध्यम से डिजिटल उपायों का समन्वय चिकित्सा सेवाओं को सुलभ बनाने की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखता है। धरातल पर किए जाने वाले एक महत्वपूर्ण विकास में उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (डोनर) और टाटा ट्रस्ट के सहयोगात्मक प्रयास शामिल हैं। इन सहयोगात्मक प्रयासों का लक्ष्य सभी पूर्वोत्तर राज्यों में अत्याधुनिक कैंसर अस्पताल स्थापित करना है। डोनर ने पहले ही गुवाहाटी में उच्च तकनीक वाले डॉ. बी. बोरूआ कैंसर संस्थान के लिए पीएम-डिवाइन पहल के तहत 129 करोड़ रुपये का पर्याप्त अनुदान आवंटित किया है। इसके अलावा, 5जी आधारित स्वास्थ्य अनुप्रयोगों को इस क्षेत्र के सभी राज्यों में शुरू किया गया है ताकि घर-घर निदान, टेलीमेडिसिन आदि जैसी सुविधाओं को संभव बनाया जा सके। इन उपलब्धियों में नई कड़ी जोड़ते हुए, असम के गुवाहाटी में एक अत्याधुनिक 3डी प्रिंटिंग सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का उद्घाटन किया गया है जो स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में तकनीकी प्रगति की दिशा में एक महत्वपूर्ण छलांग है।
तकनीकी प्रगति से इस क्षेत्र के प्रतिभाशाली व कुशल युवाओं के लिए नए रास्ते खुलने की उम्मीद है। हाल ही में, हमने पूर्वोत्तर क्षेत्र के सभी राज्यों में भारत की पहली 5-जी प्रशिक्षण प्रयोगशालाएं शुरू कीं। ये प्रयोगशालाएं डिजिटल खाई को पाटने और भविष्य के अनुकूल कौशल हासिल करने में युवाओं की सहायता करेंगी। सिक्किम और असम में 75 सरकारी स्कूलों और 4 जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों (डीआईईटी) में स्मार्ट वर्चुअल क्लासरूम सुविधाएं स्थापित करके टेली-एजुकेशन की एक सफल परियोजना क्रियान्वित की गई है। इस पहल का प्राथमिक उद्देश्य इस इलाके के दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले विद्यार्थियों के लिए शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है। डोनर भविष्य में ऐसी और पहलों को वित्तपोषित करेगा। प्रौद्योगिकी के नए क्षेत्रों में उभरते उद्यमियों की अगली कतार तैयार करने हेतु एमईआईटीवाई देशभर में विशिष्ट डोमेन से जुड़े उत्कृष्टता केन्द्र भी स्थापित कर रहा है। इस क्षेत्र के सभी आठ राज्यों की राजधानियों में स्वास्थ्य सेवा, कृषि में आईओटी, ग्राफिक डिज़ाइन, गेमिंग, जीआईएस आदि से संबंधित उत्कृष्टता केन्द्र खोले जा रहे हैं।
यह क्षेत्र जल्द ही शुरू होने वाले पूर्वोत्तर के लिए राष्ट्रीय डेटा सेंटर से भी लाभान्वित होने के लिए तैयार है। कुल 348 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा यह डेटा सेंटर इस क्षेत्र की डिजिटलीकरण क्षमता को बढ़ाएगा, सभी क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा और सभी क्षेत्रों में सेवाओं की आपूर्ति को सुदृढ़ करेगा।
हाल के वर्षों में पूर्वोत्तर ने डिजिटल सुविधाओं को अपनाने की दिशा में काफी संभावनाएं दर्शायी हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र (एनईआर) में, 47 प्रतिशत लोगों के पास स्मार्टफोन हैं, जो 48 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत लगभग बराबर है। दिलचस्प बात यह है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में मोबाइल और बैंक खातों का लिंकेज भी 86 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत के बराबर है। हम सामान्य सेवा केंद्रों के विकास, आधार की पहुंच में वृद्धि और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण व भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु इस अवसर का उपयोग करके इसका लाभ उठाने के लिए विभिन्न गतिविधियों की रणनीति बना रहे हैं।
देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र के पास प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से अपने विकास को गति देने का जबरदस्त अवसर है। प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण के अनुरूप, नीति निर्माताओं, व्यवसाय जगत तथा व्यक्तियों को एक साथ आना चाहिए और इस अवसर का लाभ उठाने तथा व्यापक जन कल्याण के उद्देश्य से इसे अपनाने के लिए प्रभावी ढंग से सहयोग करना चाहिए। निजी क्षेत्र को सक्रिय रूप से अपने कामकाज में प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के अवसरों की तलाश करनी चाहिए और अपनी दक्षता एवं प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने हेतु डिजिटलीकरण, स्वचालन और डेटा विश्लेषण को अपनाना चाहिए। पूर्वोत्तर क्षेत्र में हो रहे इस बदलाव का हिस्सा बनने का यह एक रोमांचक समय है और इस क्षेत्र को तकनीकी-नवाचार और तकनीक-आधारित उद्यमिता के पावरहाउस के रूप में स्थापित करने के प्रयास जारी हैं।
(लेखक, भारत सरकार में केन्द्रीय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री हैं।)
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