मुर्दों की बस्तियों में जिंदा है जुबान… मद्रास हाईकोर्ट ने देश के सबसे निकम्मे , नकारा और नरसंहार के जिम्मेदार चुनाव आयोग को हत्या का नुमाइंदा करार देते हुए न केवल करोड़ों लोगों की आहत भावनाओं के आक्रोश का इजहार किया, बल्कि उस हकीकत को भी बेपर्दा कर डाला जिसकी आड़ में देश सत्ता के भुखों के आगे बेबस और बेगुनाह लोगों की लाशें पटकता रहा और लहूपिपासु नेता मौतों के चटखारे लेकर अपनी जीत के दावे करते रहे… यह आयोग ही था… और आयोग काहे का… इस देश का महारोग था…जिसमें पूरे देश में मौत की आमद का रास्ता खोला और नेताओं को चुनाव में झोंका… पूरे देश के नेता उड़-उड?र चुनावी राज्यों में जोश दिखाते रहे और शहरों से लेकर गांवों और कस्बों तक मौतें पसरती रही… सरकारी मशनरी आयोग की बंधुआ होकर वोट की चोंट से देश को आहत करती रही और सांसों की बेबसी का तांडव देशभर में मचता रहा… चुनावी राज्य रैली, जुलूस और सभा जैसी आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होते रहे और शहर लॉकडाउन की पीड़ा भोगते रहे… अहंकार के सिंहासन पर सवार देश के मुखिया लाशों से पट चुके राष्ट्र में सांसों का सौदा करने तब आए जब बहुत कुछ लुट चुका था… ऑक्सीजन के लिए विमान तब दौड़ाए जब सांसें उखड़ चुकी थी… ट्रेनें तब चलाई जब जिंदगियां थम चुकी थी… सब कुछ तहस-नहस है… मौतें अब भी जारी है, लेकिन जुबान खामोश है… जेहन में आग है सब कुछ खाक है… ऐसे में मद्रास हाईकोर्ट की बहुत कुछ कहती भड?ी ज्वाला ने आम लोगों की भावनाओं को उस अंजाम तक पहुंचाया जिससे पूरा देश आहत है… लेकिन राहत नहीं है जनाब… आयोग पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराइए… सरकार को भी सबक सिखाइए… उन लाशों का हिसाब करके दिखाइए, जिसे नरसंहार कहते हैं… क्योंकि कातिल आयोग और अहंकारी सरकार अब भी चुनाव रोकने को तैयार नहीं है… कल भी चुनाव हुए… आगे भी होंगे और परिणाम अब चुनावी राज्यों के लोग भुगतेंगे…
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