विवेक उपाध्याय, जबलपुर। मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव अनुराग जैन की ताजपोशी के बाद जबलपुर में बिजली कंपनियों के आला ओहदों पर बैठे अफसरों की पेशानी पर बल पड़ते हुये साफ दिखाई दे रहे हैं। हालाकि,इससे पहले भी कई मौके आए, जब अफसर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के गंभीर आरोपों पर असहज हुये, लेकिन भोपाल में बैठे अपने आकाओं के अभयदान के बाद चेहरों पर फिर वही मुस्कान और कामकाज के तरीकों में वैसा ही दुस्साहस लौट आया। खबर है कि राजधानी में निजाम बदल जाने के बाद अब बिजली अफसरों के सुख भरे दिन विदाई की दहलीज पर आ गये हैं। उल्लेखनीय है कि सूबे के नए प्रशासनिक मुखिया जबलपुर में पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी की कमान संभाल चुके हैं।
जांच के नाम पर तमाशा
मप्र जनरेटिंग कंपनी अपनी विद्युत उत्पादन इकाईयों में भ्रष्टाचार को लेकर किस कदर कुख्यात हो चुकी है,ये किसी से छिपा नहीं है। ज्यादा वक्त नहीं बीता जब कंपनी के एक प्लांट में 45 लाख के कोरियर में कबाड़ बरामद हुआ था और फिर जांच का लंबा तमाशा हुआ। आखिर में अधिकारियों को साफ बचा लिया गया। कोयले की खपत अचानक बढ़ जाने के प्रमाण भी पेश किए गये,लेकिन अफसरों का बाल बांका नहीं होना तो नहीं ही हुआ। इस कंपनी में कई अफसरों को ये गलतफहमी भी हो चुकी है कि वे इस कंपनी के मालिक हैं और वे जो चाहेंगे, वही होगा और जो एकदम सही होगा। हालाकि, भोपाल में बैठे अधिकारियों की कार्यशैली भी बार-बार इस गलतफहमी को बल देती रही है।
दरबार में उलझी सरकार
मप्र के ऊर्जा विभाग के भोपाल मुख्यालय में पदस्थ अफसरों ने भी शिकायतों और आरोपों पर संज्ञान लेने के बजाए अपना पूरा ध्यान उन बैठकों पर एकाग्र कर लिया है,जिनका होना और न होना लगभग बराबर ही है। भ्रष्टाचार की गंभीर से गंभीर शिकायतों पर आला अफसरों का मौन एक तरह से उनकी सहमति की ओर इशारा करता रहा। कुछ मामलों में जनप्रतिनिधियों ने भी बिजली अफसरों की करनी के बारे में बात की तब भी अफसरों ने अपने कृपापात्रों पर आंच नहीं आने दी। पहेली ही है कि आखिर किस तरह से किसी भी सरकारी संस्थान के जिम्मेदार पद पर बैठे अधिकारियों पर लगे आरोपों को हवा में उड़ा दिया गया और अब हालात ये हैं कि किसी को कुछ याद भी नहीं है।
गंभीर आरोपों पर भी अफसर बेफिक्र
मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के अधिकारी जब सौभाग्य योजना पर कथित करप्शन को लेकर कटघरे में आए तब उम्मीद की गयी थी कि अब शिकंजा कसा जाएगा और सरकार और जनता को लाखों का चूना लगाने वाले बेनकाब होंगे,लेकिन,इस मामले में ये नौबत भी नहीं आई कि अफसरों से जवाब भी मांगा गया हो। इसी क्रम में,आरडीएसएस योजना में साढ़े तीन सौ करोड़ के घोटाले के आरोप लगे। बिजली मुख्यालय शक्ति भवन में विरोध-प्रदर्शन हुये और विधानसभा में सत्तापक्ष के विधायक ने सवाल उठाया। इसके बाद भी अधिकारियों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा और सबूतों के दस्तावेज अब किसी रद्दी की टोकरी में धूल खा रहे हैं। इसके अलावा मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के अधिकारियों का बेलगाम होना अब आम हो गया है। पब्लिक की समस्याओं से ज्यादा अधिकारियों की आपसी राजनीति फोकस में हैं।
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