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    बीजेपी के महिला आरक्षण पर भारी पड़ सकता है नीतीश के जाति जनगणना का दांव!

  • October 07, 2023

    नई दिल्‍ली (New Delhi) । 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए बिहार (Bihar) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) ने विपक्षी एकजुटता का आह्वान किया, जिसमें अधिकांश विपक्षी दल साबित हुए। इसके बाद उन्होंने जाति गणना (caste census) की रिपोर्ट को जारी करके अपनी मंशा को उजागर कर दिया है। उनके इस कदम से सत्ता पक्ष को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। भारत में जाति इतना संवेदनशील मुद्दा है कि यह महिला आरक्षण जैसे मुद्दे पर भारी साबित हो सकता है। हालांकि, राष्ट्रवाद ऐसा मुद्दा है जिसके सामने यह नहीं टिक पाता है और बीजेपी खुलकर इस मुद्दे को भुनाती है।

    अब बात नीतीश कुमार की। वह ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिनके पास सिर्फ 48 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। बिहार विधानसभा में वह तीसरी बड़ी पार्टी हैं। उन्होंने अपनी प्रासंगिकता को बनाकर रखा है, जो कि उनकी राजनीति करने का स्टाइल है। यही कारण है कि नीतीश कुमार जिस जाति (कुर्मी) से आते हैं, वह बिहार की आबादी में मात्र 2.87 प्रतिशत है। इसके बावजूद वह करीब 18 वर्षों से मुख्यमंत्री बने हुए हैं।

    नीतीश कुमार को एक कुशल रणनीतिकार और सोशल राजनीति में माहिर खिलाड़ी माना जाता है। जाति गणना को उनके मास्टरस्ट्रोक के तौर पर देखा जा रहा है। बिहार की राजनीति की समझ रखने वाले लोगों का कहना है कि जाति गणना करवाकर नीतीश कुमार ने बिहार से लेकर दिल्ली तक अपनी प्रासंगिता को बढ़ाया है, बल्कि अपने साथी राजद को भी नियंत्रित करने की कोशिश की है। आपको बता दें कि राजद के कई नेता दबी जुबान तेजस्वी यादव के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी की लगातार मांग कर रहे हैं।


    जाति गणना राजद को नियंत्रित करने का तरीका
    जेडीयू के अलावा नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार में राजद, कांग्रेस और वाम दलों का एक समूह शामिल है। 2020 का विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ गठबंधन में लड़ने के बाद नीतीश ने 2022 में राज्य के विपक्षी गुट से हाथ मिला लिया। बिहार विधानसभा में राजद सबसे बड़ी पार्टी है। लेकिन जाति सर्वेक्षण के साथ नीतीश कुमार ने अपनी ताकत बढ़ा ली है। उन्होंने दोहराया है कि वह सिर्फ कुर्मियों के नेता नहीं हैं, बल्कि अत्यंत पिछड़े वर्गों (ईबीसी) के भी नेता हैं। जाति सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार की आबादी में ईबीसी का प्रतिशत 36 है। वहीं, बिहार की आबादी में 14 प्रतिशत यादव हैं। राजद यादव-मुस्लिम गठबंधन पर निर्भर है, लेकिन यहां भी नीतीश कुमार ने जाति सर्वेक्षण से सेंध लगाने की कोशिश की है।

    नीतीश की मुसलमानों को लुभाने की कोशिश
    एक रिपोर्ट के मुताबिक ”मुसलमानों को ईबीसी में शामिल कर नीतीश कुमार ने मुस्लिम राजनीति के पिच पर खेलने की कोशिश की है। वह पसमांदा मुस्लिम के एक वर्ग को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।” यही कारण है कि नीतीश कुमार ने पसमांदा मुसलमानों के नेता अली अनवर अंसारी को आगे बढ़ाया। इससे राजद का महत्वपूर्ण वोट बैंक मुस्लिम छिटक सकता है।

    इस जाति सर्वेक्षण से नीतीश को उम्मीद है कि वह राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ईबीसी के बीच अपनी स्थिति मजबूत कर लेंगे। नीतीश कुमार के सत्ता में रहने के लिए ईबीसी महत्वपूर्ण रहे हैं और उन्होंने 2005 से कल्याणकारी योजनाओं के साथ इस वोट आधार को पोषित किया है।

    आपको बता दें कि तमिलनाडु, कर्नाटक और यहां तक कि केंद्र सरकार ने भी जाति सर्वेक्षण कराए थे, लेकिन किसी का भी नतीजा सामने नहीं आया। बिहार पहला राज्य है जिसने 2 अक्टूबर को अपने जाति सर्वेक्षण के परिणाम घोषित कर दिया।

    क्या राष्ट्रीय राजनीति में वापस आ गए हैं नीतीश?
    बिहार की राजनीति में एक कोने में सिमटे नीतीश कुमार राष्ट्रीय मंच पर भी हाशिए पर धकेले जा रहे थे। इस बात की संभावना है कि जाति जनगणना ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में एक मौका दे दिया है। नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने के सपने की भी खूब चर्चा होती है, लेकिन उन्होंने कभी इस बारे में खुलकर बात नहीं की है। इंडिया गठबंधन की हाल की कुछ बैठकों में नीतीश कुमार को दरकिनार कर दिया था। अब स्थिति बदलने की पूरी संभावना है। कांग्रेस को अब यह सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि इंडिया गठबंधन में नीतीश कुमार को कौन सा पद दिया जाए।

    2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत के अंतर ने नीतीश कुमार को सतर्क कर दिया। अब वह जाति गणना के जरिए ईबीसी को वापस आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। संतोष सिंह कहते हैं, ”नीतीश 2019 की हार के बाद अपनी ईबीसी राजनीति को फिर से शुरू कर रहे हैं।”

    फिलहाल नीतीश कुमार ने एक तीर से एक नहीं बल्कि कम से कम तीन शिकार किए हैं। उन्होंने पार्टी के आंतरिक मुद्दे को संभाला है। राजद की धमकी का भी जवाब दिया है। इसके साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रासंगिता को मजबूत किया है।

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