पटना: लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के बाद हुए पहले विधानसभा उपचुनाव (Assembly by-elections) में एक बार फिर से एनडीए को झटका लगा है. 13 सीटों पर हुए उपचुनाव (By-elections were held on 13 seats) में इंडिया गठबंधन (India Coalition) को 11 पर जीत मिली है जबकि एनडीए को केवल दो सीटों पर विजय मिली है. इसमें भी ये दो की दोनों सीट बीजेपी की हैं. उपचुनाव में सबसे बड़ा उलटफेर बिहार के पूर्णिया जिले में आने वाली रूपौली विधानसभा सीट पर देखने को मिला है. यहां, एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों के हाथ खाली रह गए हैं. सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह (Independent candidate Shankar Singh) को जीत मिली है.
रूपौली सीट पर हुए उपचुनाव में एनडीए की ओर से जेडीयू ने कलाधर मंडल को उम्मीदवार बनाया था. वहीं, आरजेडी की ओर से बीमा भारती चुनाव मैदान में थीं. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस सीट की विधायक रहीं बीमा भारती के इस्तीफे के बाद यह सीट खाली हुई थी. बीमा भारती ने जेडीयू का दामन छोड़ते हुए आरजेडी में शामिल हुईं थी और पूर्णिया से लोकसभा चुनाव लड़ा था. लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार पप्पू यादव बाजी मारने में सफल रहे थे. इसी तरह से विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह बाजी मार गए हैं.
विधानसभा उपचुनाव से ठीक पहले शंकर सिंह ने एलजेपी से इस्तीफा दे दिया था. माना जा रहा था कि शंकर सिंह उपचुनाव में उतरने की तैयारी में थे, लेकिन एनडीए की ओर से उनको उम्मीदवार नहीं बनाए जाने के बाद उन्होंने एलजेपी से इस्तीफा दे दिया. एलजेपी से बागी होने के बाद शंकर सिंह निर्दलीय मैदान में उतरे. दूसरी ओर चुनाव प्रचार में जेडीयू ने कालधार के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. यहां तक कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी पूरी कैबिनेट के साथ मैदान में नजर आए थे.
ऐसे में अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या चिराग पासवान की वजह से उपचुनाव में जेडीयू को हार का सामना करना पड़ा है? इसमें कोई दो राय नहीं है कि शंकर सिंह एलजेपी के बागी हैं, लेकिन इसके बाद भी चिराग की एलजेपी उपचुनाव में बहुत ज्यादा एक्टिव नजर नहीं आई थी. हालांकि, चिराग जेडीयू उम्मीदवार के समर्थन में संयुक्त रोड शो जरूर किया था. कुछ लोग उपचुनाव की तुलना 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से कर रहे हैं. तब एलजेपी ने एनडीए में रहते हुए बिहार में जेडीयू के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. बिहार की 243 विधानसभा सीटों में एलजेपी ने 137 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे. जिन सीटों पर बीजेपी उतरी थी वहां एलजेपी ने समर्थन किया था, लेकिन जिन सीटों पर जेडीयू उतरी थी वहां चिराग की पार्टी विरोध में थी.
तब एलजेपी के विरोध का असर यह हुआ था कि नीतीश कुमार की अगुवाई वाले जनता दल यूनाइटेड की 41 सीटें महागठबंधन के खाते में चली गईं. चुनाव को लेकर कहा गया कि अगर चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ अदावत नहीं किया होता तो जेडीयू को यह नुकसान नहीं उठाना पड़ता. स्थिति ये हुई की जेडीयू 43 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर चली गई. अब कुछ ऐसी ही स्थिति रूपौली में भी देखने को मिली है. जो सीट कभी जेडीयू के कब्जे में होती थी वो सीट अब निर्दलीय के हिस्से चल गई है.
रूपौली के नतीजों को लेकर कहा जा रहा है कि पहले विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने नीतीश कुमार को झटका दिया था अब बागी शंकर सिंह ने आरजेडी को चारों खाने चित्त कर दिया है. जेडीयू और नीतीश कुमार के लिए यह किसी बड़े झटके से कम नहीं है. पूर्णिया में शंकर सिंह की गिनती बाहुबली नेताओं में होती है. शंकर सिंह 2005 का विधानसभा चुनाव लोजपा के टिकट पर लड़ा था और जीत हासिल की थी. हालांकि, विधानसभा के भंग होने की वजह से वो ज्यादा दिन तक विधायक नहीं रह पाए. इसके बाद 2010, 2015 और 2020 में भी लोजपा के टिकट पर लड़ते रहे, लेकिन जीत नसीब नहीं हुई. अब उपचुनाव में एलजेपी से बागी होने का उन्हें फायदा ये मिला कि शंकर सिंह विधायक बन गए.
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