नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश में शबनम और सलीम को फांसी देने के मामले को निर्भया के दोषियों का केस लड़ने वाले अधिवक्ता एपी सिंह ने दुखद बताया है। उन्होंने कहा कि यह पहली बार होगा कि आजाद भारत में किसी महिला को फांसी दी जाएगी। मुरादाबाद मंडल के अमरोहा जिले के बनखेड़ी गांव में 14-15 अप्रैल 2008 की रात को शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने माता-पिता और भतीजे की बेरहमी से हत्या कर दी थी। दोनों ने मिलकर एक-एक करके परिवार के सात लोगों का गला कुल्हाड़ी से काट डाला था। उक्त मामले पर ‘निर्भया’ के दोषियों का केस लड़ने वाले अधिवक्ता एपी सिंह ने कहा कि फांसी किसी समस्या का समाधान नहीं है। इससे अपराध कम नहीं होता है। इसलिए उन्हें फांसी की जगह सुधार का मौका दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि फांसी की सजा सिर्फ आतंकवादियों को होनी चाहिए।
अधिवक्ता सिंह ने कहा कि शबनम को फांसी देकर इस तरह के अपराध को खत्म नहीं किया जा सकता, अपराध खत्म करने के लिए अपराधी को खत्म करने से कुछ नहीं होगा। अपराधी को सुधारने का काम किया जाना चाहिए। जेल को सुधार गृह बनाने की जगह फांसी घर नहीं बनाना चाहिए। फांसी की सजा केवल आतंकवाद के दोषियों के लिए होनी चाहिए। 100 से अधिक देशों में फांसी की सजा खत्म हो चुकी है। यह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सिद्धांत के खिलाफ है क्योंकि यह हिंसा है।
अधिवक्ता ने बताया कि शबनम के बेटे ने राज्यपाल के पास दया याचिका लगाई है। इस प्रकरण में उस बच्चे का कोई दोष नहीं है जिसे अनाथ बनाने का काम किया जा रहा है। यह संभव है कि बेटे के प्यार से शबनम का जीवन बदल जाये। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति और राज्यपाल को शबनम एवं सलीम की याचिका पर खुले दिल से सुनवाई करनी चाहिए। उनका मानना है कि इन्हें फांसी की सजा नहीं होनी चाहिए। फांसी से बच्चे के सिर से उसकी मां का हाथ हमेशा के लिए उठ जाएगा। उस बच्चे से मां का प्रेम छीन जाएगा, किसी को कोई हक नहीं है कि वह किसी बच्चे से उसकी मां का प्रेम छीन सके।
अधिवक्ता सिंह के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि भले ही 99 गुनाहगार छूट जाएं लेकिन एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए। यह मामला भी ऐसा हो सकता है। इस मामले में उस मासूम बच्चे का क्या दोष है, जिसे इतनी बड़ी सजा मिल रही है।
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