इंदौर। एक बार फिर शासन ने रियल इस्टेट कारोबारियों के साथ बड़ी धोखाधड़ी की और 30 फीसदी तक की जा रही कम्पाउंडिंग की प्रक्रिया को ना सिर्फ ठप कर दिया, बल्कि अभी तक जो कम्पाउंडिंग हुई उसकी पूरी प्रक्रिया भी झमेले में पड़ गई है। इंदौर नगर निगम ने ही लगभग 100 करोड़ रुपए की राशि कम्पाउंडिंग के जरिए बटोर लिए और अब एक बार फिर इंदौरी बिल्डर मूर्ख बन गए, क्योंकि अधिकांश को कम्पाउंडिंग के बाद ना तो ऑर्डर मिले और ना उनके अभिन्यास में संशोधन हो सका। अब निगम से जमा राशि वापस भी नहीं मिलेगी और अवैध निर्माण पर तलवार अलग लटकी रहेगी। शासन ने ऑनलाइन की स्वनिर्धारण सुविधा तो समाप्त की ही, वहीं जांच के बाद अवैध निर्माणों की कम्पाउंडिंग करने के निर्देश सभी नगरीय निकायों को भिजवा दिए, जबकि इंदौर में ताबड़तोड़ बिल्डरों ने स्वनिर्धारण के तहत 30 फीसदी तक अपने अवैध निर्माणों की कम्पाउंडिंग राशि जमा भी कर दी।
3 अक्टूबर को नगरीय विकास और आवास मंत्रालय ने जो संशोधित गजट नोटिफिकेशन जारी किया था उसमें तो ऑनलाइन स्वनिर्धारण सुविधा समाप्त करने का कोई उल्लेख नहीं किया, मगर अलग से उपसचिव ने आदेश भिजवा दिया, जिसमें किसी भी तरह के अवैध निर्माण को वैध करने से पहले बकायदा निगम के इंजीनियरों द्वारा मौका-मुआयना करने और उसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद ही कम्पाउंडिंग करने के निर्देश दिए। जबकि इसके पहले शासन ने 10 की बजाय 30 फीसदी तक अवैध निर्माणों की कम्पाउंडिंग करा लिए जाने का ढोल जमकर पीटा और चूंकि इंदौर में तो अधिकांश बिल्डर अवैध निर्माण या स्वीकृति से ज्यादा बना लेते हैं, वे ताबड़तोड़ कम्पाउंडिंग के लिए दौड़ पड़े और ऑनलाइन स्वनिर्धारण करते हुए कम्पाउंडिंग फीस भी ताबड़तोड़ जमा करा दी, ताकि उन पर लटकी बुलडोजर की तलवार हट जाए।
मगर अब अधिकांश बिल्डर मूर्ख बन गए, क्योंकि निगम से उन्हें ना तो विधिवत आदेश मिला और अब नए निर्देशों के चलते कोई भी निगम अधिकारी पुरानी तारीख में जाकर कम्पाउंडिंग के आदेश जारी कर सकेगा और ना ही अभिन्यास में संशोधन हो सकेगा। हालांकि पहले भी यह स्पष्ट था कि स्वीकृत नक्शे के आधार पर ही अगर 30 फीसदी तक अधिक निर्माण कर लिया है तो उसी की कम्पाउंडिंग हो सकेगी, लेकिन उसमें भी फ्रंट एमओएस, पार्किंग व अन्य अवैध निर्माणों को वैध नहीं किया जा सकेगा। मगर अधिक से अधिक राजस्व बटोरने के चलते निगम के सभी भवन अधिकारियों ने दबाव डाला और नर्सिंग होम, होटल, शॉपिंग मॉल से लेकर अन्य व्यवसायिक, रहवासी इमारतों से कम्पाउंडिंग फीस जमा करवा ली और यह आंकड़ा 100 करोड़ रुपए तक पहुंच गया और पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा पैसा इंदौर नगर निगम ने ही कमाया। मगर अब यह पूरी प्रक्रिया अधर में लटक गई है और अक बार फिर शासन की धोखाधड़ी का शिकार रियल इस्टेट कारोबारी हो गए।
7 अक्टूबर को ही अग्निबाण ने कर दिया था नोटिफिकेशन का खुलासा
3 अक्टूबर को जो शासन ने कम्पाउंडिंग के मद्देनजर नया गजट नोटिफिकेशन जारी किया उसका खुलासा 7 अक्टूबर को ही अग्निबाण ने कर दिया था, जिसमें यह स्पष्ट था कि 30 फीसदी कम्पाउंडिंग के नियमों में शासन ने डाल दिए नए पेंच, जिसके बाद अभी 14 अक्टूबर को उपसचिव सुभाशीष बनर्जी ने इसी नोटिफिकेशन के आधार पर पत्र भेजकर ऑनलाइन स्वनिर्धारण प्रक्रिया बंद करवा दी।
थोक में जारी किए थे नोटिस – अब कोर्ट-कचहरी भी बढ़ेगी
शासन के प्रावधानों के तहत इंदौरी बिल्डरों ने धड़ाधड़ कम्पाउंडिंग के ऑनलाइन आवेदन करने के साथ निर्धारित फीस भी जमा करवा दी। अब यह राशि भी खटाई में पड़ गई, क्योंकि निगम वापस तो करेगा नहीं। वहीं नियम विरूद्ध हुई कम्पाउंडिंग की शिकायतें भी होंगी और कोर्ट-कचहरी अलग बढ़ जाएगी। निगम ने थोक में नोटिस जारी कर कम्पाउंडिंग करवाने का दबाव बनाते हुए 100 करोड़ इकट्ठे किए।
20 फीसदी टीडीआर से खरीदने की प्रक्रिया भी पड़ी झमेले में
3 अक्टूबर के नोटिफिकेशन में 30 फीसदी कम्पाउंडिंग के नियमों में शासन ने संशोधन किया था, जिसमें 10 फीसदी तक तो सीधा लाभ और शेष 20 फीसदी के लिए टीडीआर सर्टिफिकेट के जरिए अतिरिक्त एफएआर खरीदने का प्रावधान किया गया, ताकि सडक़ चौड़ीकरण और अन्य प्रोजेक्टों के तहत जो टीडीआर सर्टिफिकेट बांटे हैं वे भी बिक सकें। मगर अब यह टीडीआर प्रक्रिया भी झमेले में पड़ जाएगी।
नए अथवा निर्माणाधीन प्रोजेक्टों में भी कर लिया था प्रावधान
इंदौर के कालोनाइजर-बिल्डर चूंकि जादूगर और सबसे अधिक होशियार हैं, लिहाजा उन्होंने 30 फीसदी कम्पाउंडिंग के प्रावधानों का दुरुपयोग भी शुरू कर दिया। पुराने के साथ-साथ नए और निर्माणाधीन प्रोजेक्टों में भी आर्किटेक्टों ने इस तरह की जुगाड़ की, ताकि 30 फीसदी अधिक निर्माण किया जा सके और उसकी कम्पाउंडिंग का लाभ मिल सके। ऐसे भी बिल्डर अब उलझ जाएंगे।
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