भोपाल। वर्ष 2018 में एनजीटी की प्रिसिंपल बेंच के निर्णय के अनुसार मध्यप्रदेश में चित्रकूट की मंदाकिनी सहित 22 प्रदूषित नदी क्षेत्र घोषित किए गए थे। इनमें पाया गया था कि शुष्क मौसम में नदियों का बहाव अपने औसत बहाव का 15 से 20 फीसदी भी नहीं रह जाता है। इसके नदियों का ई-फ्लो (इन्वायरमेंट फ्लो) प्रभावित होता है। एनजीटी का आदेश था कि इस तरह की व्यवस्था की जाए कि इन नदियों का ई-फ्लो बना रहे। पांच साल बाद अब एनजीटी ने इस दिशा मे किए गए काम की विस्तृत रिपोर्ट केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय के जरिए प्रस्तुत करने राज्य सरकार को निर्देशित किया है। राज्य सरकार ने इन चिन्हित 22 नदियों में ई-फ्लो बनाने रखने के लिए नदी पुनरुद्धार समिति गठित की थी। समिति के निर्णयों का पालन कराने जनवरी 2020 में जलसंधान विभाग के ईई को संबंधित नदियों का नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया था। अब एनजीटी द्वारा रिपोर्ट चाहे जाने पर जल संसाधन विभाग के प्रमुख अभियंता ने नोडल अधिकारियों से ई-फ्लो के संबंध में किये गये कामों की विस्तृत रिपोर्ट तलब की है।
ये 22 नदियां प्रदूषित चिन्हित की गई थीं
जल संसाधन संभाग सतना की मंदाकिनी, रीवा की बिछिया और टोंस, गोहद की गोहद, कटनी जिले की कटनी और सिमरार, खरगोन की कुंदा, रतलाम की मलेनी, शाजापुर की नेवज, सिवनी की बेनगंगा, शहडोल की सोन, गुना की पार्वती और चौपन, छिंदवाड़ा की कन्हान, उज्जैन की शिप्रा, चंबल एवं चामला, इंदौर की खान, भोपाल की कलियासोत, रायसेन की बेतवा और बुरहानपुर संभाग की ताप्ती नदी शामिल है। इन संभागों के ईई को नोडल अधिकारी बनाया गया था।
यह है ई-फ्लो
ई-फ्लो को पर्यावरणीय प्रवाह कहा जाता है। किसी नदी व उसके किनारे का पारिस्थितिकीय तंत्र सही रखने सहित पानी को ताजा बनाए रखने के लिये नदी में आवश्यक जल की मात्रा, अवधि, आवृत्ति व गुणवत्ता युक्त बहाव पर्यावरणीय प्रवाह कहा जाता है। एनजीटी के अनुसार नदियों का जो ई-फ्लो तय किया गया है वह एवरेज लियन सीजन फ्लो का 15 से 20 फीसदी ई-फ्लो बनाए रखना है। सामान्य भाषा में समझे तो गर्मी के मौसम में भी नदी में इतना पानी बहते रहना चाहिए कि उसकी शुद्धता बनी रहे और जलीय जीव जंतुओं का पारिस्थितिकीय तंत्र न बिगड़े।
इस लिये प्रभावित होता है ई-फ्लो
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