– डॉ. रमेश ठाकुर
विश्वभर में तेजी से बढ़ते कुपोषण के आंकड़े भयभीत करने गले हैं, भारत इन आकंड़ों से अछूता नहीं है। डब्ल्यूएचओ की मानें तो विश्व का प्रत्येक 8वां बच्चा कुछ महीनों बाद कुपोषित हो जाता है जिसका मुख्य कारण बच्चे को उचित ब्रेस्टफीडिंग का न मिलना। नवजात शिशुओं के शुरुआती स्वास्थ्य से लेकर संपूर्ण स्वस्थ्य यानी जीवनकाल की रक्षा करने में स्तनपान सबसे प्रभावी तरीकों में से एक माना गया है, तथापि वर्तमान में 6 महीने से कम उम्र के आधे से भी कम शिशुओं को स्तनपान कराया जाता है। आधुनिक युग में निश्चित रूप आधी आबादी विकास के नए क्षितिज छू रही है, लेकिन कुछ चीजें पीछे छूटती जा रही हैं। उच्च शिक्षित महिलाओं का समय पर नवजात शिशुओं को स्तनपान न करवाना भी कुपोषण के आंकड़ों में उछाल दिलवाता है। भारत में कुपोषण का दर लगभग 55 प्रतिशत है। जबकि, अफ्रीका में ये 27 प्रतिशत के करीब है। भारत की स्थिति अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा अच्छी नहीं है।
गौरतलब है कि जागरूकता के लिहाज से इस वक्त मातृ स्वास्थ्य पहले के मुकाबले अब बहुत बेहतर है। पर, शिशुओं के प्रति महिलाएं के जागरूक होने के बावजूद बच्चे स्वास्थ्य के मामले में पिछड़ रहे हैं। स्तनपान के प्रति मार्डन महिलआओं में जागरूकता बढ़े, जिसको ध्यान में रखकर ही ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’, यूनिसेफ व अन्य कई स्वास्थ्य समितियों, मंत्रालयों और नागरिक समाज सहयोगियों के बूते समूचे विश्व में अगस्त के पहले सप्ताह में ‘विश्व स्तनपान सप्ताह’ मनाया जाता है। इसे लेकर वर्ष 2018 में विश्व स्वास्थ्य सभा के एक प्रस्ताव ने विश्व स्तनपान सप्ताह को एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संवर्धन रणनीति के रूप में समर्थन किया था। तभी से सालाना एक थीम के साथ ये दिवस मनाया जाने लगा। ‘वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक’ का उद्देश्य महिलाओं को स्तनपान कराने के प्रति जागरूक करना और शिशु स्वास्थ्य और उसके लिए सक्षम वातावरण को बढ़ावा देना है। स्तनपान के लिए महिला समुदाय और वर्किंग कार्यस्थल, सरकारी नीतियों में सहूलियतों के साथ स्तनपान के लाभों और रणनीतियों के बारे में जानकारियों को साझा करना भी मुख्य वजहों में शामिल होता है।
‘विश्व स्तनपान सप्ताह’ के प्रोग्रामों और समितियों में बुजुर्ग ग्रामीण महिलाओं और स्वास्थ्य महिला कर्मियों को विशेष रूप से शामिल किया जाता है। ग्रामीण महिलाएं स्तनपान के लाभों के प्रति बेहतरीन तरीकों से नई उम्र की महिलाओं को समझाती हैं। दरअसल, कामकाजी महिलाओं को स्तनपान के संबंध में जागरूकता करना अब अति आवश्यक हो गया है। डब्ल्यूएचओ की मानें तो मां का दूध बच्चे के लिए सबसे पूर्ण आहार होता है जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिज जैसे तमाम सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में पाए जाते हैं। ये पोषक तत्व बच्चे के शरीर के प्रत्येक अंग, जैसे मांसपेशियों, हड्डियों और अन्य हिस्सों को सही विकास में मदद करते हैं। मां का दूध ही बच्चे की कोशिकाओं का निर्माण करता है।
अगस्त का पहला सप्ताह भारत में ‘राष्ट्रीय स्तनपान’ के लिए समर्पित है। ये वीक स्तनपान की वकालत, संरक्षण और संवर्धन को आगे बढ़ाता है ताकि यह सुनिश्चित हो कि सभी परिवार स्तनपान के लिए जागरूक हों, चाहे निजी हों या सरकारी सभी वर्किंग स्थलों पर स्तनपान कराने की उचित व्यवस्थाएं होती हैं और अधिकार महिलाओं को बिना शर्त दिए गए हैं। इसके लिए उन्हें कोई बाध्य नहीं कर सकता। खाद्य व कृषि संगठन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 194.4 मिलियन बच्चे इस वक्त कुपोषित हैं चिकित्सा रिपोर्ट इसके पीछे का कारण जरूरत पर स्तनपान न होना बताती हैं। बच्चों के जन्म के वक्त डॉक्टर्स राय देते हैं कि बच्चों को कम से कम 2 साल तक मां का दूध जरूर पिलाना चाहिए। क्योंकि इस अवधि में बच्चों की पाचन शक्ति मजबूत हो जाती है उसके बाद वह ठोस आहार लेने को सक्षम होता है।
गौरतलब है कि ब्रेस्टफीडिंग में कई प्रकार की एंटीबॉडीज पाई जाती हैं जो बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करती हैं। शिशुओं को डिब्बे का दूध पिलाने का प्रचलन इस वक्त बहुत तेजी से फैला हुआ है, जो बहुत घातक है। ये दूध बच्चे को सबसे पहले कुपोषित बनाता है और अन्य बीमारियों से घेरता है। क्योंकि डिब्बे के दूर में एंटीबॉडीज और प्रतिरोधक क्षमता शुन्य होती है। मां के दूध में मिक्स एंटीबॉडीज वायरस, बैक्टीरिया होता है जो विभिन्न किस्म के संक्रमणों से लड़ने में मदद करता हैं। शिशुओं में इम्यून सिस्टम जन्म से 24 महीनों तक कमजोर रहता है। उस दौरान मां के दूध का एंटीबॉडीज उसे बाहरी संक्रमणों से होने वाली बीमारियों जैसे निमोनिया, डायरिया, मलेरिया आदि असंख्य बीमारियों से सुरक्षित करता है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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