नई दिल्ली । कल्याणी फैमिली (kalyani family) में चल रहे संपत्ति विवाद (Property dispute) ने एक नए मोड़ ले लिया है। हिकल निदेशक और भारत फोर्ज के चेयरमैन बाबा कल्याणी (Baba Kalyani) की बहन सुगंधा हिरेमठ (Sugandha Hiremath) ने अपनी दिवंगत मां की वसीयत की वैधता पर सवाल उठाया है, जो मुख्य रूप से उनके दो भाइयों बाबा कल्याणी और गौरीशंकर कल्याणी को फायदा पहुंचाती है।
TOI की खबर के मुताबिक उनकी मां ने फरवरी 2023 में मरने से पहले दो अलग-अलग वसीयतें बनाई थीं। पहली, जनवरी 2012 में बनी वसीयत से बाबा (75) को फायदा है, जबकि दूसरी दिसंबर 2022 में बनी वसीयत गौरीशंकर (69) को लाभार्थी के रूप में नामित करती है। सुगंधा (72) ने पिछले सप्ताह पुणे सिविल कोर्ट में दोनों वसीयतों की वैधता को चुनौती दी, जिसमें दावा किया गया कि उनके भाइयों ने उन्हें जबरदस्ती और अनुचित से प्राप्त किया।
विवादित संपत्तियों में क्या-क्या है
विवादित संपत्तियों में कल्याणी ग्रुप की कंपनियों, जैसे भारत फोर्ज और कल्याणी फोर्ज के शेयर, सोने और हीरे के कीमती आभूषण, एफडी और पूरे महाराष्ट्र में विभिन्न अचल संपत्तियां शामिल हैं। पुणे सिविल कोर्ट में उनके भाइयों द्वारा अलग-अलग प्रोबेट कार्यवाही शुरू करने के बाद उन्होंने आपत्ति जताई है। दोनों प्रोबेट आवेदनों का विरोध करते हुए अपने हलफनामों में, सुगंधा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उनके भाइयों ने ऐसी वसीयतें पेश की हैं जो “एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत और विरोधाभासी हैं”।
सुगंधा का दाव
उनका दावा है कि ये वसीयतें कल्याणी संयुक्त परिवार की संपत्ति को हड़पने के लिए सुरक्षित की गई थीं, जब उनकी मां सभी भाई की देखभाल में थीं। 2012 में पहली वसीयत पर साइन करने के दौरान उनकी मां सुलोचना कल्याणी के गौरीशंकर के साथ संबंध खराब थे और वे वित्तीय और भावनात्मक सपोर्ट के लिए बाबा पर काफी हद तक निर्भर थीं।
कल्याणी संयुक्त परिवार की संपत्ति
जब 2022 में दूसरी वसीयत पर साइन किए गए तो वे गौरीशंकर की देखभाल में थीं। सुगंधा का कहना है कि दोनों वसीयतों में वैधता और वास्तविकता का अभाव है और इसलिए संपत्ति को उत्तराधिकार के माध्यम से उत्तराधिकारियों में बांटा जाना चाहिए, जिससे उन्हें एक तिहाई हिस्सा मिल सके। वह दोनों वसीयतों में कुछ संपत्तियों को शामिल करने का विरोध करती हैं, उनका कहना है कि वे उनके पिता और दादा द्वारा स्थापित कल्याणी संयुक्त परिवार की संपत्ति हैं, जिन्हें कानूनी रूप से वसीयत के माध्यम से नहीं दिया जा सकता है।
सुगंधा ने दावा किया कि पहली वसीयत पर साइन करते समय उसके पिता बीमार थे और गौरीशंकर के साथ उनके रिश्ते में खटास थी। बाबा ने इन परिस्थितियों का फायदा उठाकर वसीयत पर उनकी मां के साइन करवा लिए। दूसरी वसीयत के बारे में गौरीशंकर ने अपनी मां को मानसिक रूप से कमज़ोर होने पर साइन करने के लिए मजबूर किया।
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