– हृदयनारायण दीक्षित
भारत में उत्सव का माहौल है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने कामयाबी का नया गीत लिखा है। भारत चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चन्द्रयान उतारने वाला पहला देश बन गया है। अभी पिछले सप्ताह रूस का लूना 25 असफल होकर गिर गया था। भारत ने उसी स्थान पर चन्द्रयान उतारने की सफलता पाई है। ये बड़ी सफलता है। राष्ट्रीय प्रसन्नता के अनेक अवसर आते जाते रहते हैं। वैसे भी भारत उत्सव प्रिय राष्ट्र है। लेकिन जैसा राष्ट्रीय उल्लास चन्द्रयान की सफलता को लेकर प्रत्यक्ष हुआ है वैसा किसी अन्य अवसर को लेकर प्रायः नहीं हुआ। भारतीय राष्ट्रभाव मुद मोद प्रमोद के साथ प्रकट हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में यह एक बड़ी उपलब्धि है। ये और खुशी की बात है कि चन्द्रयान की तरह सूर्य अभियान की घोषणा भी हो गई है। इसरो सूर्य को लेकर ‘आदित्य एल 1’ मिशन लांच करने जा रहा है। बताया गया है कि शुक्र भी इसरो के लक्ष्यों में सम्मिलित है। भारत आनंदमगन है। सारी दुनिया भारत की ओर देख रही है। दर्शन और अनूठी संस्कृति के लिए विश्वविख्यात भारत अंतरिक्ष विज्ञान में भी पंख फैला कर उड़ रहा है। अंतरिक्ष की हलचल भारत में हजारों वर्ष पहले से पूर्वजों की जिज्ञासा रही है। वैदिककाल में भी सूर्य, पृथ्वी, सोम, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र और शनि जैसे ग्रह वैदिक ऋषियों की जिज्ञासा रहे हैं। इनकी गति के विज्ञान से ही ज्योतिर्विज्ञान का विकास हुआ।
भारतीय चिंतन में सूर्य ब्रह्माण्ड की आत्मा हैं। वे प्रतिष्ठित वैदिक देवता हैं। सूर्य संचरण करते प्रतीत होते हैं। वस्तुतः पृथ्वी ही सूर्य की परिक्रमा करती है। आर्य भट्ट ने आर्यभट्टीयम में लिखा है, ‘जिस तरह नाव में बैठा व्यक्ति नदी को चलता हुआ अनुभव करता है, उसी प्रकार पृथ्वी से सूर्य गतिशील दिखाई पड़ता है।’ सूर्य धनु राशि के बाद मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रान्ति कहा जाता है। सूर्य का मकर राशि पर होना उपासना के लिए सुन्दर मुहूर्त माना जाता है। वराहमिहिर ने बृहत संहिता में बताया है, ‘मकर राशि के आदि से उत्तरायण प्रारम्भ होता है।’ गीता (8-24) में कहते हैं, ‘अग्नि ज्योति के प्रकाश में शुक्ल पक्ष सूर्य के उत्तरायण रहने वाले 6 माहों में शरीर त्याग कर ब्रह्म को प्राप्त करते हैं।’ उत्तरायण शुभ काल है।
ऋग्वेद से लेकर उपनिषदों, महाकाव्यों और परवर्ती साहित्य में सूर्यदेव की चर्चा है। प्रश्नोपनिषद (1-5) में कहते हैं, ‘आदित्य ही प्राण हैं।’ छान्दोग्य उपनिषद में कहते हैं, ‘जैसे मनुष्यों में प्राण महत्वपूर्ण हैं वैसे ही ब्रह्माण्ड में सूर्य हैं।’ सूर्य के कारण इस पृथ्वी ग्रह पर मनुष्य का जीवन है। सूर्य दिव्य हैं। तेजोमय दिव्यता हैं। सूर्य ऊष्मा ऊर्जा व प्रकाश का अक्षय भण्डार हैं। प्रत्येक ताप का ईंधन होता है। इसी तरह सूर्य ताप के पीछे भी कोई कारण/ईंधन होना चाहिए। सूर्यदेव अरबों वर्ष से तप रहे हैं। उनका ईंधन अक्षय है। इसरो के प्रस्तावित सूर्य अभियान से इस तरह के तमाम रहस्यों का अनावरण संभावित है।
सूर्य अजर अमर हैं। सभी प्राणी सूर्य पर निर्भर हैं। ऋग्वेद के दसवें मण्डल के सूक्त 36 के देवता विश्वदेवा हैं। इस सूक्त में ऋषि अपने यज्ञ में ऊषा और रात्रि देवी का आह्वान करते हैं। पृथ्वी अंतरिक्ष और समस्त देवलोक को निमंत्रण देते हैं। वे वरुण, इन्द्र, मरुत और जल को भी आहूत करते हैं। वे इन्द्र से संरक्षण, मरुतों से समृद्धि की कामना करते हैं और अंत में सूर्य सविता देव का स्मरण करते हैं। सूक्त का अंतिम मंत्र बड़ा प्यारा है। ऋषि कहते हैं, ‘सविता पश्चातात सविता-सविता पीछे हैं।’ फिर कहते हैं,’पुरस्तात सवितोतर सविता धरातात-सविता सामने हैं। ऊपर हैं। नीचे हैं। ये सविता हमें सुख व समृद्धि दें। दीर्घायु भी दें।’ सविता सूर्य की उपस्थिति दशों दिशाओं में है।
हम सब सूर्य परिवार के अंग हैं। सूर्य अभिभावक हैं। वे पृथ्वी पर रहने वाली अपनी संतति, प्राणी, नदियों, समुद्र और वनस्पतियों का कुशलक्षेम जानने के लिए प्रतिदिन उदित होते हैं। वे रथ पर चलते चित्रित हैं। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल (सूक्त 164) के प्रथम मंत्र में सूर्यदेव के तीन भाई बताए गए हैं। उनके सात पुत्र हैं। तीन भाइयों में वे स्वयं, दूसरे सर्वव्यापी वायु और तीसरे तेजस्वी अग्नि। ऋषि सूर्य के रथ का सुन्दर वर्णन करते हैं, ‘सूर्य के एक चक्र वाले रथ में सात घोड़े हैं। सात नामों वाला एक घोड़ा रथ खींचता है।’ आगे सात शब्द का दोहराव है, ‘सात दिन, सात अश्व, सात स्वरों में सविता सूर्य की स्तुति करती सात बहनें।’ वैसे भी सूर्य प्रकाश में सात रंग हैं। ध्वनि में सात स्वर हैं। सप्ताह में सात दिन हैं। इसके बाद ऋषि जिज्ञासा है, ‘इस ब्रह्माण्ड में सबसे पहले जन्म लेने वाले को किसने देखा? जो अस्थि रहित होकर भी सम्पूर्ण संसार का पोषण करते हैं।’
ऋषि की वैज्ञानिक जिज्ञासा है। वे सविता सूर्य की आतंरिक गतिविधि जानना चाहते हैं, ‘यह विज्ञ सप्त तंतुओं-किरणों को कैसे फैलाते हैं।’ ऋषि विनम्रतापूर्वक जानकारी की सीमा बताते हैं, ‘मैं नहीं जानता लेकिन जानना चाहता हूं। सभी लोकों को स्थिर करने वाले अजन्मा का रूप क्या है? जो सूर्य रहस्य के जानकार हैं, कृपया वे बताएं।’ अंत में कहते हैं, ‘बारह अरों वाला चक्र द्युलोक में घूमता रहता है। वह अजर अमर है।’ सूर्य के प्रति भारतीय चिंतन में अतिरिक्त श्रद्धा है। सूर्य संरक्षक हैं। गीता (4-1) में ज्ञान परंपरा है। श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘मैंने योगविद्या का ज्ञान सबसे पहले विवस्वान सूर्य को दिया था। सूर्य ने मनु को और मनु ने इक्ष्वाकु को यही ज्ञान दिया।’ ऋग्वेद के एक मंत्र में मृत व्यक्ति से कहते हैं, ‘अब तुम्हारी आंखें सूर्य से जा मिलें’। आंखों की ज्योति सूर्य की अनुकम्पा है। इसी तरह प्राणों के बारे में कहते हैं-अब तुम्हारे प्राण वायु में जा मिलें।
वैदिक देव परिवार में सूर्य महत्वपूर्ण हैं। ऋग्वेद में सविता की स्तुति में 11 सूक्त हैं। 170 से ज्यादा स्थलों पर सविता का उल्लेख है। सूर्य देवता के लिए अलग से 10 सूक्त हैं। सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं। सूर्य उपासना यूनान में भी थी। वैदिक मन्त्रों में सविता सूर्य और ऊषा अलग अलग स्तुतियां पाते हैं। लेकिन यथार्थ में वे एक ही सूर्य के भिन्न भिन्न आयाम हैं। डॉ. कपिल देव द्विवेदी ने ‘वैदिक देवताओं के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक स्वरूप’ में लिखा है कि ‘सविता ही सूर्य हैं। सविता का अर्थ प्रेरणा शक्ति देने वाला प्रेरक। गति देने वाला। सूर्य इस संसार को गति, प्रेरणा और प्रकाश देते हैं। इसलिए सूर्य को सविता कहते हैं।’ विश्वविख्यात गायत्री मंत्र में भी सूर्य सविता की स्तुति है। ऋग्वेद (3-62-10) के अनुवाद में सातवलेकर कहते हैं, ‘हम सविता देव के उस श्रेष्ठ वरण करने योग्य तेज का ध्यान करते हैं। वे सविता हमारी बुद्धियों को उत्तम मार्ग के लिए प्रेरित करें-तत्स वितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।’ सविता का तेज वरण करने योग्य है। सूर्य का तेज बुद्धि का प्रेरक है।
(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)
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