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    नए संसद भवन निर्माण का भूमिपूजन और लोकतांत्रिक आस्था

  • December 11, 2020

    – सियाराम पांडेय ‘शांत’

    वैदिक मंत्रोच्चार के बीच नए संसद भवन के निर्माण के लिए भूमिपूजन संपन्न हो गया। विपक्ष की भावनाओं का सम्मान कराते हुए सरकार ने सर्वधर्म प्रार्थना भी करा दी। इसी के साथ उन्होंने विपक्ष के उन नेताओं, जो अक्सर सरकार पर किसी की भी बात न सुनने, मनमानी करने और लोकतंत्र को नेपथ्य में डालने जैसी बातें कहते रहते हैं, उन्हें सांकेतिक रूप से समझा दिया कि उनके आरोप सर्वथा निराधार हैं। त्रिकोणाकार बनने वाले संसद के नए भवन में लोकसभा सांसदों के लिए लगभग 888 और राज्यसभा सांसदों के लिए 326 से ज्यादा सीटें बनाने की बात कही जा रही है। संसद के हॉल में कुल 1,224 सदस्य एक साथ बैठ सकेंगे।

    सरकार की योजना है कि नया संसद भवन वर्ष 2022 में आजादी की 75वीं वर्षगांठ का गवाह बन सके। फिलहाल जो संसद भवन है, उसकी इमारत को बनने में 6 साल का समय लगा था। ऐसे में नए संसद भवन का निर्माण दो साल में ही कैसे होगा, यह सवाल हर किसी की जुबान पर है। जब नए भवन के निर्माण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लंबित है, तबतक सरकार द्रुतगति से निर्माण कार्य को आगे कैसे बढ़ा सकती है? प्रधानमंत्री ने बहुत अच्छी बात कही है कि भारत में लोकतंत्र जीवन का मंत्र और व्यवस्था का तंत्र है लेकिन देश में इस बात को समझ कौन रहा है? लोकतंत्र के नाम पर क्या-क्या हो रहा है। स्वतंत्रता किस तरह स्वच्छंदता का रूप ले रही है, यह भी किसी से छिपा नहीं है। लोग अपने मानवाधिकारों की तो चर्चा करते हैं लेकिन उनके आंदोलन या संघर्ष से बहुतों के मानवाधिकारों का भी हनन होता है, इस बाबत सोचने-समझने की जरूरत महसूस नहीं की जाती।

    प्रधानमंत्री की इस बात में दम है कि नए संसद भवन का निर्माण नूतन और पुरातन के सह अस्तित्व का उदाहरण है। पुराने संसद भवन ने आजादी के बाद के भारत की आवश्यकताओं को पूरा करने का काम किया और नया संसद भवन 21वीं सदी की आकांक्षाओं की पूर्ति का जरिया बनेगा। इसमें सांसदों की कार्यक्षमता बढ़ेगी और उनकी कार्य संस्कृति में आधुनिक तौर-तरीके शामिल होंगे। बकौल प्रधानमंत्री, संसद के मौजूदा भवन में ही स्वतंत्र भारत को गढ़ने का काम हुआ। आजाद भारत की पहली सरकार का गठन भी यहीं हुआ और पहली संसद भी यहीं बैठी। इसी भवन में संविधान की रचना और लोकतंत्र की पुनर्स्थापना हुई। यह इमारत स्वतंत्र भारत के हर उतार-चढ़ाव, चुनौतियों, आशाओं, उम्मीदों का प्रतीक रही है। इस भवन में बना प्रत्येक कानून, संसद में कही गई बातें भारतीय लोकतंत्र की धरोहर हैं लेकिन यह भी उतना ही सच है कि संसद की यह पुरानी इमारत विश्राम चाहती है। यह इमारत 1927 में बनी थी। मतलब इसके सौ साल का होने में बस सात साल ही शेष है। कई बार इसे अपग्रेड किया गया है। साउंड सिस्टम, आईटी सिस्टम के लिए जगह बढ़ाने के लिए दीवारें इसकी तोड़नी पड़ी हैं।

    नए भवन में जिस तरह सीटों का विस्तार हो रहा है, उसे देखते हुए देश में एक और चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि क्या देश में सांसदों की संख्या भी बढ़ेगी? आबादी के हिसाब से राज्यों में सांसदों की संख्या तय करने की मांग लंबे अरसे से होती रही है। सच तो यह है कि देश में 25 लाख से ज्यादा की आबादी पर एक लोकसभा सांसद है जबकि दुनिया के बाकी देशों में ऐसा नहीं है। भारतीय संविधान भी अधिकतम दस लाख की आबादी पर एक सांसद की बात कहता है। इस लिहाज से देखें तो उत्तर प्रदेश में 238 सांसद होने चाहिए। इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान देश में सांसदों की संख्या 550 से अधिक न रखने की व्यवस्था भी देता है। इसी आबादी के हिसाब से वर्ष 1971 तक देश और अलग-अलग राज्यों में सीटों की संख्या भी घटती- बढ़ती रही।

    पिछले 50 साल से इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। हालात यह है कि उत्तर प्रदेश में 30 लाख लोगों पर एक सांसद है तो तमिलनाडु में 20 लाख लोगों पर। देश की जनसंख्या के हिसाब से अगर राज्यों में सीटों को बांटा जाए तो उत्तर प्रदेश में सीटों की संख्या बढ़कर 94 हो जाएगी। बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे उत्तरी राज्यों में भी सीटें बढ़ेंगी। वहीं, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिण के राज्यों में सीटों की संख्या घटेगी। इस स्थिति में देश में कुल 1375 सीटें होंगी। 1977 में सरकार ने संविधान में संशोधन कर तय कर दिया कि 2001 तक 1971 की जनगणना के आधार पर ही संसद में सीटें होंगी लेकिन 2002 में अटल सरकार ने इसे बढ़ाकर 2026 तक कर दिया। इस लिहाज से देखें तो 2026 तक सांसदों की संख्या में वृद्धि के लिए इंतजार तो करना ही होगा।

    राज्यों में लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या का निर्धारण 1952 में गठित परिसीमन आयोग करता है। संविधान के अनुच्छेद 82 में तय किया गया है कि 10 साल में जब पहली बार जनगणना होगी, तो उसके बाद परिसीमन किया जाएगा। 1976 में आपातकाल के दौरान संविधान में 42वां संशोधन किया गया। इस संशोधन के तहत 1971 की जनगणना के आधार पर ही 2001 तक विधानसभाओं और लोकसभा की सीटों की संख्या को स्थिर कर दिया गया। 2001 में संविधान में 84वां संशोधन किया गया। इसके तहत 2026 के बाद जब पहली जनगणना होगी और उसके आंकड़े प्रकाशित हो जाएंगे, तो ही लोकसभा का परिसीमन होगा। यानी 2026 के बाद जनगणना होगी 2031 में। तभी लोकसभा की सीटें बढ़ सकती हैं।

    मतलब सांसदों की सीटों का बढ़ना उतना आसान नहीं है जितना समझा जा रहा है। नए भवन का बनना सरकार की सकारात्मक सोच का संकेत है और इस भावभूमि की सराहना की जानी चाहिए। जो लोग सर्वधर्म प्रार्थना और लोकतंत्र की कथित उपेक्षा का विरोधमूलक डमरू बजा रहे हैं, उनके लिए भी मौजूदा समय संजादगी से सोचने और देश को आगे ले जाने की मुहिम में जुटने का है।

    (लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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