– सियाराम पांडेय ‘शांत’
आजाद भारत में अभीतक केवल तीन बार शिक्षा नीति में बदलाव की जरूरत महसूस हुई, वह भी अंशत:। पहली बार इंदिरा गांधी, फिर राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हाराव ने इसपर सोचा। यह चौथा अवसर है जब नरेंद्र मोदी सरकार ने शिक्षा नीति में बदलाव का जोखिम लिया है। देश में नई शिक्षा नीति 34 साल बाद ही सही है, उम्मीद की जा सकती है कि अब प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के स्तर में बदलाव आएगा। केंद्र सरकार की कैबिनेट ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम फिर शिक्षा मंत्रालय करने को भी मंजूरी दे दी है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शासनकाल में 1985 में शिक्षा मंत्रालय का नाम बदलकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय कर दिया गया था। इसके अगले वर्ष राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गयी थी।
मौजूदा शिक्षा नीति ने केंद्र सरकार ने स्कूल पाठ्यक्रम के 10+2 ढांचे की जगह 5+3+3+4 की नयी पाठयक्रम संरचना लागू की है जो क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 साल की उम्र के बच्चों के लिए है। इसमें 3 से 6 साल तक के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने की योजना है, जिसे विश्व स्तर पर बच्चे के मानसिक विकास के अहम चरण के रूप में मान्यता दी गई है। विद्यार्थियों को पसंदीदा विषय चुनने के लिए कई विकल्प दिए जाएंगे। कला एवं विज्ञान के बीच, पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच और व्यावसायिक एवं शैक्षणिक विषयों के बीच कोई भिन्नता नहीं होगी। नई नीति के तहत स्कूलों में छठे ग्रेड से ही व्यावसायिक शिक्षा दी जाएगी। इसमें इंटर्नशिप शामिल रहेगी। नई एवं व्यापक स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा ‘एनसीएफएसई 2020-21’ एनसीईआरटी द्वारा विकसित की जाएगी। नयी नीति में कम से कम ग्रेड 5 तक और उससे आगे भी मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा को ही शिक्षा का माध्यम रखने पर विशेष जोर दिया गया है। विद्यार्थियों को स्कूल के सभी स्तरों और उच्च शिक्षा में संस्कृत को एक विकल्प के रूप में चुनने का अवसर मिलेगा। त्रिभाषा फॉर्मूला में भी यह विकल्प शामिल होगा। इसके मुताबिक, किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी। भारत की अन्य पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प के रूप में उपलब्ध होंगे।
विद्यार्थियों को ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ पहल के तहत 6-8 ग्रेड के दौरान किसी समय ‘भारत की भाषाओं’ पर एक परियोजना यानी कि गतिविधि में भाग लेना होगा। कोरियाई, थाई, फ्रेंच, जर्मन, स्पैनिश, पुर्तगाली, रूसी भाषाओं को माध्यमिक स्तर पर पेश किया जायेगा। स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से मुख्यधारा में शामिल करने के लिए स्कूल के बुनियादी ढांचे का विकास और नवीन शिक्षा केंद्रों की स्थापना की जाएगी। नई शिक्षा नीति के तहत स्कूल से दूर रह रहे लगभग 2 करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में वापस लाया जाएगा। शिक्षा में कुल जीडीपी का अभी करीब 4.43 फीसदी खर्च हो रहा है, लेकिन उसे 6 फीसदी करने का लक्ष्य है। केंद्र एवं राज्य मिलकर इस लक्ष्य को हासिल करेंगे। हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं के अलावा आठ क्षेत्रीय भाषाओं में भी ई-कोर्स कराने, वर्चुअल लैब के जरिये कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जायेगा। इसके साथ ही नेशनल एजुकेशन टेक्नॉलोजी फोरम बनाया जा रहा है। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना होगी जिससे अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
नई शिक्षा नीति में लॉ और मेडिकल शिक्षा को छोड़कर उच्च शिक्षा के लिए एकल नियामक की व्यवस्था की गई है। नई नीति में बहु स्तरीय प्रवेश एवं निकासी व्यवस्था की गई है। संप्रति चार साल इंजीनियरिंग पढ़ने या 6 सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारणवश आगे नहीं पढ़ पाते हैं तो कोई उपाय नहीं होता, लेकिन बहु स्तरीय प्रवेश एवं निकासी व्यवस्था लागू होने पर एक साल के बाद सर्टिफिकेट, 2 साल के बाद डिप्लोमा और 3-4 साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। जो छात्र शोध करना चाहते हैं, उनके लिए 4 साल का डिग्री कार्यक्रम होगा, जबकि जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वे तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम करेंगे। नयी व्यवस्था में एमए और डिग्री कार्यक्रम के बाद एफफिल करने से छूट की भी एक व्यवस्था की गई है।
पांचवीं कक्षा तक मातृभाषा में पढ़ाई का फैसला किसी भी बच्चे पर भाषा थोपना नहीं है। इसका मकसद छोटे बच्चों को संस्कृति से जोड़ते हुए सीखने की प्रवृति को बढ़ाना है। घर में मातृभाषा का ही प्रयोग होता है, ऐसे में छात्र जब उसी भाषा में सीखेगा तो उसे हमेशा याद रहेगा। माना जा रहा है कि नई शिक्षा नीति से शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी। गुणवत्ता युक्त स्कूली और उच्च शिक्षा से रोजगार भी बढ़ेगा। इसीलिए छठवीं कक्षा से व्यावसासिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण को जोड़ा गया है। अब छात्र कैंपस से बाहर निकलेंगे तो उनके पास ज्ञान ही नहीं, हुनर भी होगा। अब बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक लेने के लिए कोचिंग की जरूरत नहीं रहेगी। या यूं कहें कि कोचिंग की दुकानदारी बंद हो जाएगी। क्योंकि अब रट्टा की बजाय प्रैक्टिकल अधिक होगा।
नई शिक्षा नीति के तहत साल में बोर्ड परीक्षा एक से अधिक बार भी हो सकती है। इन्हें ऑनलाइन आयोजित करने जैसे विकल्पों पर भी कार्य किए जाने की जरूरत है ताकि बोर्ड परीक्षाएं तनाव का कारण नहीं बनें और इनके नतीजे छात्रों के लिए आनंददायक हों। राष्ट्रीय पुलिस यूनिवर्सिटी और राष्ट्रीय फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी का प्रस्ताव भी लाया जा रहा है। इसके अलावा टॉप 100 विश्वविद्यालयों में पूरी तरह से ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रमों को शुरू करने की योजना तैयार हो रही है।
10वीं और 12वीं में एकबार फेल या अच्छा प्रदर्शन न करने पर छात्र को दो या उससे अधिक बार मौका मिलेगा। नौवीं के बाद विषय चुनने का विकल्प होगा। एनसीईआरटी अगले वर्ष तक नेशनल कैरिकुलम फ्रेमवर्क 2020 तैयार करेगी। अबतक स्कूली शिक्षा नेशनल कैरिकुलम फ्रेमवर्क 2005 के तहत चल रही है। 2022 की परीक्षा नए पाठ्यक्रम से होगी। बच्चों को मोटी-मोटी किताबें नहीं पढ़नी पड़ेंगी। नई नीति में बच्चों को हर विषय के मूल सिद्धांत को आसान तरीकों से समझाया जाएगा। ऐसे में पूरा जोर लिखित परीक्षा की जगह प्रयोगात्मक परीक्षा पर होगा। पढ़ाई का फोकस और कांस्पेट्स, आइडिया, एप्लीकेशन, प्रैक्टिकल, प्रॉब्लम साल्विंग पर रहेगा।
गुणवत्ता सुधारने की शुरुआत स्कूली शिक्षा से करने के लिए हर पांच साल में समीक्षा होगी। अभी देखा जाए तो शिक्षा की समीक्षा होती ही नहीं थी। नई शिक्षा नीति के तहत अब वर्ष 2022 के बाद पैराटीचर नहीं रखे जाएंगे। शिक्षकों की भर्ती सिर्फ नियमित होगी। रिटायरमेंट से पांच साल पहले शिक्षकों की नियुक्ति का काम केंद्र और राज्य शुरू कर देंगे। सरकार द्वारा कहा जा रहा है कि नई शिक्षा नीति 21वीं सदी के ‘नए भारत’ की जरूरतों को पूरा करेगी।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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