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    नई शिक्षा नीति में तथ्य नहीं सिर्फ बयानबाजी: एनएसयूआई

  • August 13, 2020

    नई दिल्ली। केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति को लेकर विपक्ष लगातार हमलावर है। ऐसे में अब कांग्रेस पार्टी के छात्र संगठन एनएसयूआई ने भी नई शिक्षा नीति खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) का कहना है कि इस नीति में तर्कसंगत कार्य योजना, स्पष्ट परिभाषित लक्ष्य और क्रियान्वयन के सोच की कमी है। संगठन ने इस अनुमोदित शिक्षा नीति को सार्वजनिक विश्वास, लोकतांत्रिक मूल्यों और संघीय सिद्धांतों के अपमानजनक उल्लंघन से चिन्हित किया है। एनएसयूआई का मानना है कि हमारे देश में विश्वविद्यालय शिक्षा की विविधता को बनाए रखने के लिए एक नियामक प्राधिकरण होना चाहिए, न कि विश्वविद्यालयों पर एकरूपता लाने के लिए।

    एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरज कुंदन ने कहा कि एक जिम्मेदार छात्र संगठन के रूप में एनएसयूआई ने हमेशा छात्र समुदाय के साथ खड़े होने के दृढ़ संकल्प के साथ छात्रों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी है। हम निजी क्षेत्रों के जरिए शिक्षा क्षेत्र को बेचने और सामाजिक न्याय और ज्ञान-आधारित शिक्षा के विचार को एक अलोकतांत्रिक तरीके से खत्म करने के लिए मोदी सरकार के इन कदमों को खारिज करते हैं।

    कुंदन ने कहा कि नई शिक्षा नीति का मुख्य केंद्र ‘ऑनलाइन शिक्षा’ है। इसके आधार पर पढ़ने वाले विद्यार्थियों की औसत भर्ती अनुपात मौजूदा 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक करने का दावा किया गया है। हाशिए पर रहने वाले वर्गों के 70 प्रतिशत से अधिक बच्चे पूरी तरह ऑनलाईन शिक्षा के दायरे से बाहर हो जाएंगे, जैसा कोविड-19 की अवधि में ऑनलाइन क्लासेस की एक्सेस में गरीब के बच्चे पूर्णतया वंचित दिखे। यहां तक कि UDISE+(’यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन ऑन स्कूल एजुकेशन’, स्कूल शिक्षा विभाग, भारत सरकार) डेटा के अनुसार केवल 9.85 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में ही कंप्यूटर हैं तथा इंटरनेट कनेक्शन केवल 4.09 प्रतिशत स्कूलों में है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मोदी जी को ये मालूम है कि इससे देश में गरीब, मध्यम वर्गीय और अमीर के बच्चों के बीच नया डिजिटल डिवाइड पैदा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में मानवीय विकास, ज्ञान प्राप्ति, क्रिटिकल थिंकिंग एवं जिज्ञासा की भावना का स्थान नहीं है। उस पर बिना परामर्श, चर्चा और विचार विमर्श के ही इस लागू किया गया। इसकी प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है।

    एनएसयूआई के राष्टीय सचिव एवं मीडिया प्रभारी लोकेश चुग ने कहा कि कांग्रेस सरकार में सिफारिश की गई थी कि जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च किया जाएगा। फिर मोदी सरकार में 2014-15 के 4.14 प्रतिशत से गिरकर 20120-21 में शिक्षा पर किया जाने वाला खर्च 3.2 प्रतिशत पर पहुंच गया। ऐसे में शिक्षा नीति में वादे और हक़ीक़त में क्रियान्वयन में काफी अंतर है। उन्होंने कहा कि आज और कल की पीढ़ियों के भविष्य निर्धारण करने वाली इस नीति को पारित करने से पहले संसदीय चर्चा की जरूरत नहीं समझी गयी। जबकि कांग्रेस जब शिक्षा का अधिकार कानून लायी तो संसद के अंदर और बाहर इस ओर चर्चा हुई थी।

    उल्लेखनीय है कि 15 साल में स्वायत्त शिक्षा प्रणाली से आटोनोमस शिक्षा प्रणाली में स्थानांतरित करने से गांवों और ग्रामीण क्षेत्रों की शैक्षणिक संस्थानों पर बुरा असर पड़ेगा और सरकारी और शिक्षा क्षेत्र में सेल्फ-फाइनेंसिंग कॉर्पोरेट जगत की दखल सामाजिक न्याय से सरकार की वापसी है और यह हमारे देश में सभी असमानता-उन्मूलन कार्यक्रमों को प्रभावित करेगा, जिससे शिक्षा के कई अवसर गरीबों के लिए अप्रभावी हो जाएंगे। यह आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों से आने वाले बच्चों के सीमांत रूप से आंतरिक रूप से आंतरिककरण का प्रयास है। इंटर्नशिप के लिए धक्का (स्कूल के छात्रों के लिए) आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों से आने वाले बच्चों को अधिक कमजोर स्थिति में डाल सकता है और बच्चों का शोषण कर सकता है। (एजेंसी, हि.स.)

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