नई दिल्ली । सूरज (sun) पूरी सृष्टि को रोशन करता है. अब तक सभी लोग यही पढ़ते, जानते आए हैं. लेकिन अब एक नई वैज्ञानिक खोज (Scientific Discovery) हुई है. उसमें एक बेहद सूक्ष्म कण का पता चला है, जो सूरज को भी रोशनी देता है. यकीनन यह चौंकने की बात हो सकती है. लेकिन वैज्ञानिकों की मानें तो इसमें चौंकने जैसा कुछ है नहीं. क्योंकि यह कण ब्रह्मांड में अनंत-काल से मौजूद है. इसका पता अभी चला है. और अब इसके बारे में ज्यादा जानकारी जुटाने की प्रक्रिया चल रही है. जैसे- इसका वजन, आकार, स्वरूप आदि. अमेरिका में शिकागो के नजदीक इलिनॉइस प्रांत में एक प्रयोगशाला है. इसे फर्मी नेशनल एक्सलरेटर लैबोरेटरी कहा जाता है. संक्षेप में फर्मीलैब (Fermilab), जहां दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिक ब्रह्मांड के उच्च ऊर्जा वाले कणों का अध्ययन करते हैं.
इसी अध्ययन के दौरान उस अति-सूक्ष्म कण का पता चला है, जो सूरज की रोशनी के लिए जिम्मेदार होता है. इसे ‘डब्ल्यूबोसोन’ (WBoson) नाम दिया गया है. यह किसी परमाणु (Atom) के केंद्र में होता है. उसकी मूलभूत शक्ति ऊर्जा (Fundamental Force) का स्रोत भी यही होता है. वैज्ञानिक बताते हैं कि डब्ल्यूबोसोन परमाणु के केंद्र में सेकंड के भी सौवें-हजारवें हिस्से में प्रकट होता है. अस्तित्त्व में आता है और उतनी ही तेजी से टूटकर बिखर जाता है. इस तरह प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है. डब्ल्यूबोसोन की इसी परमाण्विक प्रक्रिया से सूरज को रोशनी मिलती है और फिर पूरा ब्रह्मांड, रोशन होता है.
प्रोटोन से 80 गुना ज्यादा वजनी हो सकते हैं डब्ल्यूबोसोन
दुनिया के तमाम वैज्ञानिकों ने 1985 से 2011 के बीच डब्ल्यूबोसोन (WBoson) के इर्द-गिर्द तमाम जानकारियां और आंकड़े जुटाए. इसके बाद धीरे-धीरे इसके बारे में पता चलना शुरू हुआ. फिर करीब 10 तक प्रयोगशाला में ऊर्जा कणों को आपस टकरा-टकराकर करीब 40 लाख डब्ल्यूबोसोन का अध्ययन किया गया. उनका वजन आदि परखा गया. अंत में जब नतीजे आए तो वे चौंकाने वाले थे. उनमें एक यह था कि डब्ल्यूबोसोन किसी प्रोटोन के मुकाबले 80 गुना अधिक वजनी हो सकता है.
लेकिन अब भी निष्कर्ष सटीक नहीं, और अध्ययन चाहिए
इटली के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर न्यूक्लियर फिजिक्स के सह-प्रवक्ता जॉर्जियो चैरेली कहते हैं, ‘इतने लंबे अध्ययन के बावजूद निष्कर्षों की सटीकता अभी 0.01% ही है. इन कणों को मापना, इनका वजन करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि 1 सेकंड भी नहीं ठहरते. इसलिए अभी वैज्ञानिकों को वर्षों लगेंगे ठीक-ठाक निष्कर्षों तक पहुंचने में. इसलिए अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी.’
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