– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय पर्वों पर औपचारिकता के निर्वाह तक सीमित नहीं रहते। राष्ट्रीय चेतना से जनमानस को जोड़ते हैं। देश के सुदूर क्षेत्रों तक इस भावना का विस्तार करते हैं। गणतंत्र दिवस समारोह का एक हफ्ते तक विस्तार किया गया। इसमें राष्ट्र नायकों के स्मरण के अवसर समाहित किया गए। इसके पहले नरेंद्र मोदी ने आजादी का अमृत महोत्सव प्रारंभ किया था। इसे अनेक स्तरों के समारोहों से सजाया गया। राष्ट्रीय राजधानी से लेकर गांवों व जनजातीय इलाकों तक इसका प्रकाश पहुंचाया गया। इसमें राष्ट्रभाव के अनेक उपेक्षित प्रसंग उजागर हुए।
इसके पहले नरेन्द्र मोदी पद्म सम्मानों को भी सुदूर क्षेत्रों तक पहुंचा चुके थे। देश में गुमनामी में रहते हुए भी अनेक लोग विलक्षण कार्य करते हैं। नरेन्द्र मोदी सरकार ‘जहां ना पहुंचे रवि’ कहावत के अनुरूप उन लोगों तक पहुंच गई। उनको पद्म सम्मान मिलने लगे। इसबार मन की बात में नरेंद्र मोदी ने ऐसे लोगों का उल्लेख किया। देश के सुदूर क्षेत्रों में अनेक लोग समाज सेवा के विलक्षण कार्य करते रहे हैं। कुछ वर्ष पहले तक सरकारों का ध्यान उनकी तरफ जाता नहीं था।
नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते समय अपनी सरकार को गरीबों के प्रति समर्पित बताया था। अनेक सामाजिक, आर्थिक व लोक कल्याण के विषयों जैसे विचार पर अमल किया जा रहा है। इतना ही नहीं पिछले कुछ वर्षों से पद्म सम्मानों में भी यह परिलक्षित है। राष्ट्रपति भवन में पद्म सम्मान ग्रहण करने वाले वनवासी, ग्रामीण व अन्य निर्धन वर्ग के लोग भी मुख्यधारा में दिखाई देने लगे हैं। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पद्म पुरस्कारों में नया अध्याय जुड़ा है। इसमें गुमनाम समाजसेवकों, कलाकारों को भी शामिल किया गया। इस प्रकार यह प्रतिष्ठित पुरस्कार गांव ही नहीं वनवासी क्षेत्रों तक पहुंच गया है। इस संबध में पिछले कुछ वर्षों की पद्म पुरस्कार सूची देखना दिलचस्प है।
अब पद्म सम्मान समारोह में अद्भुत दृश्य दिखाई देते हैं। अक्सर चित्र भी अपने में बहुत कुछ कह जाते हैं। जब कोई गरीब महिला राष्ट्रपति के सिर पर आशीर्वाद का हाथ रखती है, जब ऐसे ही किसी अन्य सम्मानित व्यक्ति से प्रधानमंत्री हाथ जोड़ बतियाते हैं। कुछ वर्ष पहले तक ऐसी कल्पना भी मुश्किल थी। अब परंपरा का रूप ले चुकी है। प्रतिवर्ष पद्म सम्मान वितरण के समय ऐसा ही दृश्य रहता है। ऐसा ही चित्र प्रयागराज कुंभ में देखने को मिला था, जिसमें प्रधानमंत्री सफाईकर्मियों के पैर धो रहे हैं। काशी में वह सफाई व अन्य कर्मियों पर पुष्प वर्षा करते हैं।
देश के विभिन्न इलाकों में अनेक गुमनाम समाजसेवी हैं। जिन्होंने समाज के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। धन- दौलत, पद, यश, वैभव किसी की चाह नहीं थी। मीडिया या प्रचार से दूर रहे, गुमनामी में अपना कार्य करते रहे। पहले इनकी ओर शासन का ध्यान नहीं जाता था। कोई पहाड़ तोड़ कर अकेले ही सड़क बनाता रहा। शासन का ध्यान उधर गया होता तो उनका कार्य आसान हो गया होता। लेकिन हार नहीं मानी। पहाड़ तोड़ कर मार्ग बनाकर ही दम लिया। इसी प्रकार अनेक लोग अपने अपने ढंग से समाजसेवा में जुटे हुए हैं। नरेन्द्र मोदी ने ऐसे गुमनाम लोगों को पद्म सम्मान देने का निर्णय लिया था। अब प्रतिवर्ष ऐसे लोगों को सम्मान पुरस्कार देने की परंपरा शुरू हुई।।
इस बार का राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पूरे देश में आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाया गया। सरकार ने तय किया है कि अब हर साल गणतंत्र दिवस का पर्व 23 से 30 जनवरी तक सप्ताह भर का होगा। समारोह 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती से शुरू होकर 30 जनवरी को शहीद दिवस तक चलेंगे।
राजपथ पर भारतीय वायुसेना के 75 विमान और हेलीकॉप्टर भव्य फ्लाईपास्ट किया था। यह आजादी के अमृत महोत्सव का शौर्य उद्घोष था। इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की डिजिटल प्रतिमा स्थापित की गई है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में देश अपने राष्ट्रीय प्रतीकों को पुनर्प्रतिष्ठित कर रहा है। इंडिया गेट के समीप अमर जवान ज्योति और पास में ही नेशनल वॉर मेमोरियल पर प्रज्ज्वलित ज्योति को एक किया गया। विजय चौक पर आयोजित बीटिंग रिट्रीट समारोह में शनिवार को पहली बार भव्य ड्रोन शो ने आसमान को चकाचौंध कर दिया। इस शो में स्वदेशी तकनीक के जरिए तैयार किए गए एक हजार ड्रोन शामिल थे।
आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के लिए समारोह में कई नई धुनें जोड़ी गईं। इनमें हिंद की सेना और ऐ मेरे वतन के लोगों गीत भी शामिल था। नरेन्द्र मोदी की देश में लोकप्रियता एक बार फिर प्रमाणित हुई। उनकी एक बात पर देश के एक करोड़ बच्चों ने पत्र लिख दिए। आजादी के अमृत महोत्सव के दृष्टिगत एक करोड़ से अधिक बच्चों ने अपने मन की बात, पोस्टकार्ड के जरिये लिखकर भेजी है।
मोदी ने मन की बात में भारतीय संस्कृति की व्यापकता का उल्लेख किया। कहा कि भारतीय संस्कृति अमेरिका कनाडा, दुबई, सिंगापुर, पश्चिमी यूरोप एवं जापान में बहुत लोकप्रिय है। भारतीय संस्कृति का लैटिन अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में भी बड़ा आकर्षण है। अर्जेंटीना में हस्तिनापुर फाउंडेशन नामक एक संस्था है। यह फाउंडेशन अर्जेंटीना में भारतीय वैदिक परम्पराओं के प्रसार में जुटा है। हस्तिनापुर फाउंडेशन के 40 हज़ार से अधिक सदस्य हैं और अर्जेंटीना एवं अन्य लैटिन अमेरिकी देशों में इसकी करीब तीस शाखाएं हैं। हस्तिनापुर फाउंडेशन ने स्पेनिश भाषा में सौ से अधिक वैदिक और दार्शनिक ग्रन्थ भी प्रकाशित किये हैं। आश्रम में बारह मंदिरों का निर्माण कराया गया है। जिनमें अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। इनके केंद्र में अद्वैतवादी ध्यान स्थल है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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