नई दिल्ली । उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को दस सितंबर 2021 तक विधानसभा (Assembly) का सदस्य बनना अनिवार्य है। ऐसा नहीं होने पर राज्य (State) में संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है। संविधान के अनुच्छेद (Article) 164(4) के तहत किसी भी मंत्री को छह महीने के भीतर सदन का सदस्य बनना आवश्यक है। विपक्षी दल कांग्रेस (Congress) का कहना है कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 151ए के तहत अब राज्य में उपचुनाव नहीं हो सकता क्योंकि विधानसभा का कार्यकाल एक साल से भी कम बचा है।
इस धारा में प्रावधान है कि लोकसभा (Lok Sabha) या विधानसभा की कोई सीट खाली होने पर चुनाव आयोग को छह महीने के भीतर चुनाव (Election) कराना चाहिए। लेकिन छह महीने के भीतर यह उपचुनाव तब न हो अगर विधानसभा का कार्यकाल एक साल से कम बचा हो। उत्तराखंड (Uttarakhand) विधानसभा का कार्यकाल अगले साल 23 मार्च को समाप्त हो रहा है। इसीलिए कांग्रेस इस नियम (Rule) का हवाला देकर संवैधानिक संकट खड़ा होने की बात कर रही है।
तीरथ सिंह रावत इस साल मार्च में मुख्यमंत्री बनाए गए थे। इस लिहाज से उनके छह महीने दस सितंबर 2021 को पूरे हो रहे हैं। राज्य में अभी दो विधानसभा सीटें खाली हैं- गंगौत्री और हल्द्वानी। इस लिहाज से उनके पास विधानसभा सदस्य बनने का यही रास्ता है कि वे इन दो में से किसी एक सीट से चुनाव जीतें। वे अभी सांसद हैं और उन्होंने लोक सभा से इस्तीफा भी नहीं दिया है। ऐसे में उनके भविष्य को लेकर पार्टी के भीतर अटकलें शुरु हो गई हैं। सवाल पूछा जा रहा है कि क्या रावत बतौर मुख्यमंत्री अपने भविष्य को लेकर आशंकित है, इसीलिए उन्होंने अभी तक लोक सभा से इस्तीफा (resign) नहीं दिया है। यह भी पूछा जा रहा है कि जब उनके पास मौका था तब उन्होंने सल्ट विधानसभा सीट से उपचुनाव क्यों नहीं लड़ा?
लेकिन कानूनी विशेषज्ञों (experts) के अनुसार चुनाव आयोग पर यह पाबंदी नहीं है कि वह विधानसभा का कार्यकाल एक साल से कम होने पर उपचुनाव न कराए। ऐसा केवल इसलिए है ताकि प्रशासनिक तौर पर असुविधा न हो।
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