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    किसानों को मिले अधिकारों से कौन परेशान

  • December 07, 2020

    – डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

    नए कृषि कानूनों में किसान हितों के खिलाफ कुछ भी नहीं है। पुरानी व्यवस्था कायम रखी गयी है, इसके साथ ही नए विकल्प देकर उनके अधिकारों में बढ़ोत्तरी की गई। ऐसे में किसानों की नाराजगी का कारण नजर नहीं आता। फिर भी किसानों के नाम पर आंदोलन चल रहा है। यह सामान्य किसान आंदोलन नहीं है। इस लंबे और सुविधाजनक आंदोलन के पीछे मात्र किसान हो भी नहीं सकते। इसका स्वरूप पिछले दिनों हुए कई दूसरे आंदोलनों जैसा है। कोरोना की शुरुआत न होती तो धरना कार्यक्रम लंबा चलता। तब इन आंदोलनों की चर्चा विदेशों तक पहुंचती थी।

    किसान आंदोलन की दिशा-दशा तकरीबन वैसी ही है। इसकी चर्चा पाकिस्तान में है, कनाडा के प्रधानमंत्री आंतरिक राजनीति के कारण बयान देते हैं। सरकार की अपनी समस्या है। वह जानती है कि आंदोलन में किसानों से अधिक अन्य लोग हैं। लेकिन जिस आंदोलन में किसान शब्द जुड़ जाता है, सरकार के लिए उसका महत्व बढ़ जाता है। नरेंद्र मोदी सरकार ने भी इसी कारण आंदोलनकारियों के समक्ष वार्ता का प्रस्ताव रखा। कई चरण की वार्ता हुई। सरकार ने अपना रुख रखा। कतिपय बदलाव की भी संभावना थी। सरकार ने आंदोलनकारियों से सुझाव आमंत्रित किये। लेकिन आंदोलन के प्रतिनिधि कोई सुझाव नहीं दे सके। वह यह नहीं बता सके कि कृषि कानून से किसानों का नुकसान क्या है। वे जिद पर अड़े रहे। कृषि कानून की समाप्ति के अलावा उनके पास कोई विचार नहीं था।

    जाहिर है कि आंदोलन केवल किसानों का नहीं है। इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जो अबतक किसानों की मेहनत का लाभ उठाते रहे हैं। कृषि कानून से इनको परेशानी हो सकती है। नरेंद्र मोदी ने कहा भी था कि बिचौलियों के गिरोह बन गए थे। वह खेतों में मेहनत के बिना लाभ उठाते थे। कृषि कानून से किसानों को अधिकार दिया गया है। पिछली सरकार के मुकाबले नरेंद्र मोदी सरकार ने किसानों की भलाई हेतु बहुत अधिक काम किया है। किसानों का समर्थन भी सरकार को मिला है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस में किसानों को बहत्तर हजार रुपये देने का वादा किया था। किसानों ने इसपर विश्वास नहीं किया। उन्हें नरेंद्र मोदी की नेकनीयत पर भरोसा था इसलिए चुनाव में भाजपा को बहुमत मिला। कांग्रेस की सीटें पहले से कम हो गई।

    यह आंदोलन संवादहीनता की उपज नहीं है। सरकार प्रारंभ से ही कृषि कानून संबन्धी प्रावधान से किसानों को अवगत कराती रही है। प्रधानमंत्री अनेक बार दोहरा चुके है कि मंडी समिति समाप्त नहीं होगी। सरकार ने इसकी व्यवस्था में अनेक सुधार किए हैं। भविष्य में भी सुधार जारी रहेंगे। केवल किसानों के अधिकार बढ़ाये गए हैं। वे अपनी सुविधा से मंडी समिति में कृषि उत्पाद बेच सकते हैं, यदि उन्हें अन्यत्र अधिक लाभ दिखाई देता है तो वे उस जगह उत्पाद बेच सकते हैं। इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था भी कायम रहेगी।

    नरेंद्र मोदी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में अबतक की सर्वाधिक वृद्धि की है। कृषि कानून केवल किसानों की भलाई के लिए ही लागू किये गए हैं। इसके प्रत्येक चरण में इस उद्देश्य का ध्यान रखा गया। कॉन्ट्रैक्ट कृषि भी कोई नया अनुभव नहीं है। दशकों पहले से यह चलता रहा है। इसलिए इसपर हाय-तौबा उचित नहीं। पूरा आंदोलन निराधार कयासों पर आधारित है। यह कहना शरारतपूर्ण है कि अम्बानी-अडानी सब उपज और जमीन खरीद लेंगे। किसानों की आमदनी बढ़ाने के प्रयास कानून के द्वारा किये गए हैं। जिससे कृषि के प्रति उनका मोहभंग न हो। यह मोहभंग पिछले कई वर्षों में बढ़ा था। नरेंद्र मोदी ने इस स्थिति में सुधार किया है। इसी सुधार को वह आगे बढ़ा रही है।

    कांग्रेस इस आंदोलन को पूरा समर्थन दे रही है। वह कृषि कानून का विरोध कर रही है, इसे किसान विरोधी काला कानून बता रही है। यह जुमला राहुल गांधी ने दिया कि अम्बानी-अडानी को कृषि कानून का लाभ मिलेगा। जबकि उनकी पार्टी की सरकार ने इसका वादा किया था। कॉंग्रेस ने घोषणापत्र में एपीएमसी अधिनियम को खत्म करने और कृषि उत्पादों को प्रतिबंधों से मुक्त करने की बात कही थी। कांग्रेस ने चुनावी घोषणापत्र के ग्यारहवें प्वाइंट में कहा था कि कांग्रेस कृषि उपज मंडी समितियों के अधिनियम में संशोधन करेगी। जिससे कृषि उपज के निर्यात और अंतरराज्यीय व्यापार में लगे सभी प्रतिबंध समाप्त हो जाएंगे। किसान बाजार की स्थापना की जाएगी। जहां किसान बिना किसी प्रतिबंध के अपनी उपज बेच सकेंगे। आवश्यक वस्तु अधिनियम को बदलकर आज की जरूरतों और संदर्भों के हिसाब से नया कानून बनाएंगे।

    नरेन्द्र मोदी भी कई मंचों पर कह चुके हैं कि किसानों को एमएसपी और सरकारी खरीद जैसी सुविधाएं मिलती रहेंगी। इसको लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। किसानों को भ्रमित करने में बहुत सारी शक्तियां लगी हुई हैं। कृषि कानून किसानों को कई और विकल्प प्रदान कर उन्हें सही मायने में सशक्त करने वाले हैं।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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