वाराणसी। सुभाष चंद्र बोस को आधुनिक भारत का शिवाजी कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। नेताजी की कलकत्ता से बर्लिन तक की यात्रा ना सिर्फ ऐतिहासिक यात्रा थी बल्कि इसमे सस्पेंस, एडवेंचर और थ्रिल भी शामिल था। इस प्रकार की यात्रा का इतिहास में सिर्फ एक ही उदाहरण मिलता है, जब शिवाजी औरंगजेब के कब्जे से आगरा फोर्ट से निकल भागे थे और उन्हें पकड़ा नहीं जा सका। उक्त विचार बनारस बार के पूर्व महामंत्री नित्यानंद राय ने व्यक्त किए।
शनिवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती की पूर्व संध्या पर कचहरी में आयोजित सभा में नेताजी को श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया। अधिवक्ता नित्यानन्द राय ने कहा कि अंतर सिर्फ इतना था कि शिवाजी दिन के उजाले में ही निकल लिए जबकि सुभाष बाबु ने रात के अंधेरे को निकलने के लिए चुना। 17 जनवरी 1941 को दिन में सवा एक बजे के करीब, शिवाजी के आगरा के किले से भागने की घटना के ठीक 300 साल बाद 17 जनवरी 1941 को सुभाष बाबू ने कलकत्ता स्थित अपने घर को छोड़ दिया था।
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