काठमांडू। कुर्सी बचाने के लिए चीनी राजदूत की शह पर एक के बाद एक भारत विरोधी कदम उठाने वाले नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने शनिवार को भारत के स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया। ओली ने भारत के 74वें स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें बधाई दी। दोनों नेताओं ने कोरोना वायरस की महामारी के चलते पैदा हुए हालात पर चर्चा भी की। विशेषज्ञों के मुताबिक भारत सरकार के सख्त रुख और नेपाल में बढ़ रहे आंतरिक दबाव के बाद ओली को करीब 4 महीने बाद प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
नेपाली अखबार काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों देशों के बीच पिछले कुछ महीने से जारी तनावपूर्ण संबंधों के बीच बातचीत की यह पहल नेपाल की ओर से की गई थी। सीमा विवाद, भारत के राजचिन्ह, अयोध्या जैसे कई मुद्दों पर जहरीले बयान देने वाले ओली ने पीएम मोदी से बातचीत में कहा कि नेपाल, भारत और नेपाल के बीच सार्थक सहयोग को लेकर आशान्वित है। इसके पहले दोनों नेताओं के बीच अंतिम बातचीत अप्रैल में हुई थी।
ओली के विदेशी मामलों के सलाहकार राजन भट्टाराई ने दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच वार्ता को पिछले कई महीने से जारी गतिरोध के समाप्ति का संकेत करार दिया। भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के 8 मई को लिपुलेख में कैलाश मानसरोवर को जोड़ने वाली सड़क का उद्घाटन करने के बाद नेपाल भड़क गया था। सूत्रों के मुताबिक नेपाल सरकार ने नेपाल में चीनी राजदूत के इशारे पर देश का नया नक्शा पारित कर दिया। इसमें भारतीय इलाकों कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया।
यही नहीं नेपाली पीएम ओली ने चीन को खुश करने के लिए बिना किसी साक्ष्य के आरोप लगाया कि उनकी सरकार को गिराने के लिए नई दिल्ली में साजिश रची जा रही है। अपनी पार्टी में मचे घमासान के बाद ओली ने कहा कि एक दूतावास मेरी सरकार के खिलाफ होटल में साजिश रच रहा है। ओली ने कहा कि भले ही उन्हें पद से हटाने का खेल शुरू हो लेकिन यह असंभव है। अपने इस बयान के बाद ओली अपनी ही कम्युनिस्ट पार्टी में बुरी तरह से घिर गए थे। ओली के धुर विरोधी पुष्प कमल दहल ने भारत का नाम घसीटने पर उनको बुरी तरह से लताड़ लगाई थी और कहा था कि कुर्सी छोड़ने की मांग उन्होंने की है न कि भारत ने।
काठमांडू पोस्ट ने सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा कि ओली सरकार के नया नक्शा जारी करने से सीमा विवाद का मुद्दा और ज्यादा जटिल हो गया है। उन्होंने कहा कि इससे बातचीत का रास्ता और ज्यादा संकरा हो गया। एक नेपाली राजनयिक ने नाम लिखने की शर्त पर कहा, ‘क्यों नहीं विदेश मंत्री ज्ञवली इधर-उधर बातचीत करने की बजाय अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर से सीधे फोनकर बातचीत करते हैं? इस तरह के मौकों पर दोनों देशों के नेताओं के बीच निजी रिश्ते बेहद जरूरी हैं।’
यही नहीं पीएम ओली भी भारत के साथ पर्दे के पीछे से बातचीत करने के लिए प्रयास कर रहे थे। काठमांडू पोस्ट ने सूत्रों के हवाले से कहा कि पीएम ओली और उनके सलाहकारों ने सत्तारूढ़ बीजेपी के नेताओं राम माधव, विजय जोली और आरएसएस के नेताओं से संपर्क किया था। सूत्रों के मुताबिक भारत के साथ संपर्क बहाली के ओली और उनकी सरकार के सभी प्रयास विफल होने के बाद सरकार वैकल्पिक रास्ते तलाश रही थी। ओली सरकार ने नेपाली सेना के जरिए भी पर्दे के पीछे से भारत के साथ सीमा विवाद के बारे में बातचीत करने का प्रयास किया। यही नहीं नेपाल के विपक्षी और सत्तारूढ़ दल के कई नेता सरकार पर भारत के साथ संबंधों को अच्छे करने के लिए दबाव बनाए हुए थे। अंतत: हर तरफ से निराशा मिलने के बाद ओली को पीएम मोदी को फोन करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
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