नई दिल्ली: जहां एक तरफ पाकिस्तान में सेना डेमोक्रेसी का नाटक करते हुए बैकडोर से देश की सरकार चला रही है. वहीं, दूसरी तरफ भारत का एक पड़ोसी देश ऐसा भी है जहां पिछले तीन साल से सीधे तौर पर सेना सत्ता पर कब्जा करके बैठी है. हम बात कर रहे हैं म्यांमार की. आंग सान सू की की चुनी हुई सरकार को सत्ता से बेदख कर जुंता आर्मी भले ही लंबे वक्त से देश में राज कर रही हो लेकिन पीएम मोदी के एक मास्टरस्ट्रोक के बाद उनके उलटे दिन अब शुरू हो गए हैं. वो दिन दूर नहीं जब विद्रोहियों के लिए खुद ही सेना को सत्ता का रास्ता खाली करना होगा.
म्यांमार में इस वक्त अलग-अलग एथनिक विद्रोही गुट हथियार उठाकर सेना के खिलाफ जंग कर रहे हैं. पिछले तीन सालों से जारी इस जंग में म्यांमार की सेना करीब आधे मुल्क से अपना कंट्रोल खो चुकी है. म्यांमार की इस अशांति का खामियाजा भारत को अपने नॉर्थ-ईस्ट के स्टेट मणिपुर में भी देखने को मिल रहा है. यहां बीते एक साल से अशांति का आलम है. चाह कर भी भारत सरकार इसे पूरी तरह कंट्रोल नहीं कर पा रही है. म्यांमार से मणिपुर हिंसा को मदद मिल रही है. ऐसे में पीएम मोदी ने म्यांमार के विद्रोही गुटों को दिल्ली में बातचीत का न्योता देकर मास्टर स्ट्रोक चल दिया.
भारत सरकार (India Goverment) के फंड से चलने वाली थिंक टैंक संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर (ICWA) नवंबर के मध्य में दिल्ली में एक सेमिनार आयोजित करने जा रही है. म्यांमार के नेशनल यूनाइटेड गवर्मेंट (NUC) और भारत की सीमा से लगे चिन, रखाइन और काचिन राज्यों के जातीय अल्पसंख्यक विद्रोहियों को सेमिनार में अपनी बात रखने के लिए आमंत्रित किया गया है. रिपोर्ट में बागी गुटों की तरफ से भी सेमिनार में अपना प्रतिनिधि भेजने की बात कही गई है.
म्यांमार की सेना पहले ही आधे देश से अपना कंट्रोल खो चुकी है. ऊपर से पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के इस मास्टर स्ट्रोक (Master Stroke) के बाद जुंटा आर्मी हक्का-बक्का रह गई. सेना (Army) ने तुरंत विद्रोहियों को बातचीत के लिए निमंत्रण भेजा. रिपोर्ट्स की माने तो सेना ने जल्द देश में लोकतंत्र की बहाली का आशवासन दिया है. बस आश्वासन भर से अब सेना का काम चलने वाला नहीं है. विद्रोहियों ने सेना के इस ऑफर को ठुकरा दिया है. उनका कहना है कि जबतक सेना सत्ता से बाहर नहीं होगी, उनका यह अभियान जारी रहेगा.
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