जबलपुर। पिछले दिनों शहर की चिकित्सा व्यवस्था की परते सतत रूप से खुलती जा रही है। जहां पर चिकित्सक को भगवान के रूप में देखा जाता है वहीं दूसरी तरफ इनके कॉले कारनामें जिस प्रकार से शहर में सामने आ रहे है वह चिकित्सा व्यवस्था पर लगातार प्रश्न उठा रहा है। चिकित्सा, भ्रष्टाचार जब पनपता है तो वह शन: शन: अपराध में बदल जाता है और यह अपराध कितना गंभीर हो सकता है उसका उदाहारण शहर ने न्यू मल्टी हॉस्टिपल का अग्निकांड व वर्तमान में सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल के आयुष्मान कार्ड के फर्जी वाड़े, भ्रष्टाचार के रूप में देख रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल के कूट रचित दस्तावेज को अस्पताल के केंटीन चलाने वाले नेहरू नामक युवक ने ड्रॉयवर के साथ मिलकर विस्डम पॉब्लिक स्कूल की लाइन में ठिकाने लगा दिए। वहीं दूसरी तरफ सेन्ट्रल इंडिया किडनी हॉस्पिटल के मालिक पति-पत्नी को सोमवार को कोर्ट में पेश किया गया। जहां से पुलिस को एक दिन की रिमांड मिली है। आरोपी डॉ. अश्वनी पाठक और उनकी पत्नी दुहिता पाठक पर, आयुष्मान योजना के जरिए करोड़ों का फर्जीवाड़ा करने का आरोप हैं। एक दिन पहले पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार किया था। जनता और सरकार की आँखों में धूल झौंक कर गोरखधंधा करने वाली इस दंपत्ति के नेटवर्क में शामिल लोगों का भी पता किया जा रहा हैं। बड़ा सवाल है कि योजना के नाम पर भर्ती फर्जी मरीजों का ऑनलाइन और फील्ड वेरिफि केशन करने वाले कौन थे जिनकी बदौलत सरकारी खजाना खाली होता रहा। एक दिन की पुलिस रिमांड पर पाठक दंपत्ति जबलपुर में अवैध रूप से होटल में अस्पताल चलाने और सरकारी योजना के नाम फर्जीवाड़ा करने वाली पाठक दंपत्ति पुलिस की मेहमान है। सेन्ट्रल इंडिया किडनी अस्पताल के कर्ताधर्ता डॉ. अश्वनी पाठक और उनकी पत्नी दुहिता पाठक को कई गंभीर आरोपों के तहत गिरफ्तार किया था। सोमवार को दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से पुलिस को एक दिन की रिमांड मिली हैं। पुलिस को आरोपियों से इस फर्जीवाड़े के संबंध में कई बिंदुओं पर पूछताछ करना हैं। फर्जीवाड़े में शामिल मैनेजर भी गिरफ्तार बड़े पैमाने पर चल रहे इस फर्जीवाड़े की जारी जांच में सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल के मैनेजर को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस गिरफ्त में आए कमलेश्वर मेहतो इस पूरे कांड में अकाउंटेंट और मैनेजमेंट का काम संभालता था। आरोपी से कई अहम जानकारी मिली है। पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एसपी ने इस केस की जांच के लिए एसआईटी भी गठित कर दी है। आगे की जांच में कई और बड़े खुलासे होने की उम्मीद है।
दो सालों से पाठक दंपत्ति कर रहें थे फ र्जीवाड़ा
आयुष्मान भारत जनकल्याणकारी योजना के नाम फर्जीवाड़ा करने का मास्टर माइंड पाठक दंपत्ति का ही था। जिसे बेहद शातिर तरीके से एक गिरोह के रूप में अंजाम दिया जा रहा था। इसकी पिछले दो सालों से किसी को भी या तो भनक नहीं लगी, या फिर कुछ लोग अश्वनी पाठक एंड कंपनी को संरक्षण दे रहे थे। पुलिस को उन दलालों की तलाश है, जो आयुष्मान योजना का लाभ लेने की पात्रता रखने वाले लोगों को डॉ. पाठक के पास पहुँचाने का ठेका लेते थे। होटल में हॉस्पिटल सील, भर्ती फर्जी मरीजों को भगा दिया या भाग गए। दूसरे जिले के ग्रामीण इलाकों का रिकॉर्ड सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस गोरखधंधे में लिप्त पाठक दंपति ने कोविडकाल के दौरान कुछ लोगों के साथ यह प्रयोग किया था। जिसमें मिली कामयाबी ने उनको फुल फ्लेश फर्जीवाड़े में धकेल दिया। आसपास के कई जिलों से आयुष्मान कार्डधारी पात्रता रखने वाले लोगों का रिकॉर्ड हासिल किया। फिर सबसे पहला टारगेट ग्रामीण इलाका रहा। कम पढ़े लिखे और जल्दी लालच में आ जाने वाले लोगों को अंधी कमाई का हथियार बनाना शुरू किया।
अफ सरों की संदिग्ध भूमिका
आयुष्मान योजना के अधिकारी को मिली धमकी दलालों की टीम की मॉनिटरिंग के लिए मैनेजर सूत्रों के मुतबिक फर्जीवाड़े के इस खेल में प्रदेश के कई जिलों में सक्रिय दलाल फर्जी मरीजों को डॉ. पाठक के अस्पतालनुमा होटल पहुँचाने की व्यवस्था करते थे। गिरोह में शामिल लोगों की बाकायदा फोन पर मीटिंग होती थी। फर्जी मरीज तैयार होते ही, डॉ. अश्वनी पाठक आयुष्मान योजना के तहत इलाज संबंधी ऑनलाइन अप्रूवल की व्यवस्था में जुट जाता था। आरोपी का शातिर दिमाग और सांठगाँठ इतनी तगड़ी थी कि उसे अप्रूवल लेने में कभी कोई परेशानी नहीं आई। सक्रिय दलालों की लंबी चैन की मॉनिटरिंग करने एक मैनेजर को भी तैनात किया गया था। हेल्पलाइन से और फील्ड वेरिफिकेशन करने वाले कौन इस बड़े फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद शहर से लेकर सेंट्रल लेवल तक कई अफसरों की संदिग्ध भूमिका की आशंका जताई जा रही है। आयुष्मान भारत योजना विभाग के जिम्मेदार अधिकारी खुद बताते है कि अप्रूवल के बाद ही मरीजों का इलाज शुरू होता है। उसके बाद योजना के हेल्पलाइन नंबर और फील्ड ऑफिसर द्वारा भी वेरिफिकेशन होता है। इसी आधार फिर इलाजरत संबंधित मरीज के पूरे खर्च की अधिकतम 5 लाख रुपए तक की राशि अस्पताल के खाते में क्रेडिट हो जाती है। मतलब साफ़ है कि इस काले धंधे के गठजोड़ को मजबूत करने वालों की लंबी फेहरिस्त हैं, जिनका बेनकाब होना बहुत जरुरी है।
आपके द्वारा मेरे पास मामला आया है। मामले की बारीकी से जांच की जा रही है। जांच के उपरांत विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी।
एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा
आयुष्मान फर्जी मामले में डॉक्टर दंपत्ति की फाइल विगत दिनों मुझे जांच के लिए दी गई है मामला गंभीर है। जांच के बाद आगे की कार्यवाही की जायेंगी।
जांच अधिकारी, खमरिया थाना प्रभारी निरूपा पांड
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