नई दिल्ली। संसद में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा 2024-25 के अनुसार वृद्धि दर में गति को बरकरार रखने के लिए भारत में बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश को अगले दो दशकों में लगातार बढ़ाने की जरूरत है। नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में आम चुनावों के दौरान नई स्वीकृतियों और व्यय पर बाधाओं व कई क्षेत्रों में भारी मानसून के कारण बुनियादी ढांचे पर खर्च की गति प्रभावित हुई। हालांकि, पिछले वर्ष जुलाई और नवंबर के बीच पूंजीगत व्यय की गति बढ़ गई। सदन में पेश दस्तावेज में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के लिए केंद्र का पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 20 के पूंजीगत व्यय का लगभग 3.3 गुना निर्धारित किया गया है।
सर्वेक्षण के अनुसार आपदा-रोधी शहरीकरण, सार्वजनिक परिवहन, विरासत स्थलों, स्मारकों और पर्यटन स्थलों का संरक्षण और रखरखाव की रूरत है। रिपोर्ट में कनेक्टिविटी सहित ग्रामीण सार्वजनिक बुनियादी ढांचे पर अधिक ध्यान देने की जरूरत पर बल दिया गया है। सर्वेक्षण में कहा गया है, “हमारी शुद्ध शून्य प्रतिबद्धताओं के कारण नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता सृजन पर अतिरिक्त जोर दिया जा रहा है।” आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार सरकार के विभिन्न स्तरों पर बजट संबंधी बाध्यताएं हैं। कार्यक्रम और परियोजना नियोजन, वित्तपोषण, निर्माण, रखरखाव, मुद्रीकरण और प्रभाव आकलन जैसे कई महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में निजी भागीदारी में तेजी लाने की जरूरत है।
सर्वेक्षण में कहा गया है, “हमारा बुनियादी ढांचा कार्यक्रम विभिन्न प्रकार के पीपीपी मॉडल का समर्थन करता है।” सर्वेक्षण के अनुसार ने राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन और पीएम-गति शक्ति जैसे सुविधा तंत्र स्थापित किए हैं, जिनसे प्रगति हुई है। वित्तीय बाजार नियामकों ने निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए सुधार किए हैं। इसके बावजूद अब भी कई प्रमुख क्षेत्रों में निजी उद्यम की भागीदारी सीमित है। निजी भागीदारी को बढ़ाने की रणनीति के लिए सभी हितधारकों जैसे विभिन्न स्तरों पर सरकारें, वित्तीय बाजार के खिलाड़ी, परियोजना प्रबंधन विशेषज्ञ और योजनाकार तथा निजी क्षेत्र की समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता है।
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