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    साम्राज्यवादी चीन की रफ्तार पर ब्रेक आवश्यक

  • August 25, 2022

    – डॉ. अनिल कुमार निगम

    साम्राज्यवादी देश चीन एशिया में अपना प्रभाव बहुत तेजी से बढ़ाता जा रहा है। चीन के मिसाइल ट्रैकिंग शिप युआन वांग 5 को श्रीलंका द्वारा हंबनटोटा बंदरगाह में आने की इजाजत देने और चीन से नेपाल के बीच रेलवे लाइन बनाने के प्रस्ताव से भारत की न केवल चिंता बढ़ गई है बल्कि भारत को साम्राज्यवादी देश चीन से सामरिक खतरा पैदा हो गया है। चीन, श्रीलंका और पाकिस्तान को पहले ही आर्थिक कर्ज के तले दबाकर वहां पर अपनी दखलंदाजी शुरू कर चुका है। वहीं वह नेपाल को भी अपनी ऋण नीति के आईने में उतारता जा रहा है। आगामी समय में चीन की यह नीति भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन सकती है। श्रीलंका सरकार ने भारत के विरोध के बावजूद चीन के विवादित जासूसी जहाज को अनुमति दी है।

    भारत के लिए हिंद महासागर क्षेत्र सांमरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है और यह पारंपरिक प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है। वास्तविकता तो यह है कि दिवालिया हो चुकी श्रीलंका सरकार का हंबनटोटा बंदरगाह के प्रशासन पर बहुत कम नियंत्रण है। वह कर्ज का भुगतान करने में असमर्थ है। इसीलिए 99 सालों के लिए बंदरगाह को चीन को पट्टे पर दे दिया है। यह क्षेत्र में पड़ोसियों के लिए भू-राजनीतिक सिरदर्द बना हुआ है क्योंकि पीएलए अपने लाभ के लिए श्रीलंका के इस बंदरगाह का उपयोग भारत की जासूसी के लिए कर सकता है। यही नहीं, यह जहाज कुडनकुलम और कलपक्कम परमाणु रिएक्टरों के साथ-साथ चेन्नई और थूथुकुडी बंदरगाहों की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है। चीन का यह जहाज टॉप-ऑफ-द-लाइन एंटेना और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से लैस है।

    चीन सिर्फ श्रीलंका ही नहीं बल्कि भारत के अन्य पड़ोसी देशों को भी ऐन केन प्रकारेण अपने प्रभाव क्षेत्र में ले रहा है। 12 मार्च, 2022 की नेपाल सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया कि चीन उनके इलाके में घुसपैठ कर रहा है। ये अतिक्रमण दोनों देशों की सीमा से सटे इलाकों में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया कि चीन हुमला जिले की जमीन पर कब्जा कर रहा है। चीनी सुरक्षा बल यहां निगरानी कर रहे हैं। उन्होंने लालुंगजोंग नामक स्थान पर नेपाली लोगों को धार्मिक गतिविधियां करने से भी रोका है। चीन, नेपाल को भी अपनी कर्ज की नीति के तहत अपने जाल में फंसा चुका है। चीन पहले भी नेपाल को 6.67 अरब रुपये का कर्ज दे चुका है। और अब चीन ने इस साल नेपाल को 15 अरब रुपये की मदद देने का ऐलान भी किया है। इसे नेपाल में चल रहे अलग-अलग परियोजनाओं में निवेश के लिए दिया जा रहा है।

    नेपाल एयरलाइंस ने छह विमानों के उत्पादन के लिए चीनी सरकार के एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन ऑफ चाइना के साथ एक वाणिज्यिक समझौते पर नवंबर 2012 में हस्ताक्षर किए थे। डील को आसान बनाने के लिए चीन ने नेपाल को करीब 6.67 अरब रुपये का कर्ज दिया। नेपाल ने बड़ी उम्मीदों के साथ चीन से विमान खरीदा। नेपाल को उम्मीद थी कि उनके संचालन से वह मुसीबतों से गुजर रहे नेपाल एयरलाइंस कॉरपोरेशन के लिए राजस्व अर्जित करेगा लेकिन दो साल से ज्यादा समय बीत चुका है। चीन के लग्जरी विमान नेपाल की जमीन पर खड़े होकर जंग खा रहे हैं।

    पाकिस्तान भी चीन के कर्ज जाल में फंस चुका है। वह भी आर्थिक संकट से गुजर रहा है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड निचले स्तर पर है। इस कारण अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी पाकिस्तान को राहत पैकेज देने से पहले कड़ी शर्तों की बौछार कर दी है। पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय के अनुसार, जून 2013 में पाकिस्तान का कुल सार्वजनिक रूप से गारंटीकृत बाहरी कर्ज 44.35 अरब डॉलर था, जिसमें से सिर्फ 9.3 फीसदी चीन का बकाया था। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, अप्रैल 2021 तक, यह विदेशी ऋण बढ़कर 90.12 बिलियन डॉलर हो गया था, जिसमें पाकिस्तान पर चीन का कर्ज कुल विदेशी कर्ज का 27.4 फीसदी था। चीन श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे कमजोर देशों में अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत अरबों डॉलर मूल्य की परियोजनाओं को हासिल करने में कामयाब रहा। पाकिस्तान की तरह ही चीन ने बीआरआई के जरिए श्रीलंका को भी उल्लू बनाया। इन परियोजनाओं में से अधिकांश हंबनटोटा जिले में धूल फांक रही हैं। हंबनटोटा बंदरगाह दक्षिणी श्रीलंका में पूर्व-पश्चिम समुद्री मार्ग के करीब स्थित है। इस बंदरगाह का निर्माण वर्ष 2008 में प्रारंभ हुआ, जिसके लिए चीन ने श्रीलंका को लगभग 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर्ज दिया था। लेकिन, श्रीलंका को इस बंदरगाह से रत्ती भर भी फायदा नहीं हुआ। यही कारण था कि श्रीलंका की सरकार ने कर्ज चुकाने के डर से जानबूझकर इस बंदरगाह को 99 साल की लीज पर चीनी कंपनी को सौंप दिया।

    हंबनटोटा बंदरगाह के पास ही राजपक्षे हवाई अड्डा है। इसका निर्माण 200 मिलियन डॉलर के कर्ज पर किया था। इस हवाई अड्डे का इस्तेमाल इतना कम किया जाता है कि एक समय में यह अपना बिजली का बिल भी चुकाने में सक्षम नहीं था। अब चीनी कंपनियां अपने फायदे के लिए इसका इस्तेमाल करती हैं। चीन के इस कदम की अमेरिका समेत कई देशों ने आलोचना की, लेकिन श्रीलंका और पाकिस्तान के कानों में जूं नहीं रेंगा। उधर चीन ने दक्षिण चीन सागर में जारी तनाव के बीच अब वियतनाम के पास मिसाइल बेस बनाया है। चीन की सेना ने यहां जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों को तैनात कर रखा है। पड़ोसी देशों में चीन का बढ़ता प्रभुत्व विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए बहुत बड़ा सामरिक खतरा पैदा हो गया है। अब समय आ गया है कि भारत अपनी विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन करे। भारत के लिए आवश्यक है कि एक ओर तो वह कूटनीतिक तरीके से वैश्विक समुदाय के बीच चीन की एक आक्रांता की छवि बनाए और साथ ही अपनी आक्रामक नीति के माध्यम से चीन की विस्तारवादी नीति पर अंकुश भी लगाने का सार्थक प्रयास करे।

    (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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