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अमृत महोत्सवः आजादी की ऊर्जा का अमृत

August 10, 2021

– प्रो. संजय द्विवेदी

आजादी के 75 साल का अवसर अब दूर नहीं है। हम सब इसके स्वागत में खड़े हैं। ये वर्ष जितना ऐतिहासिक और गौरवशाली है, देश इसे उतनी ही भव्यता और उत्साह के साथ मनाने की तैयारी कर रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दांडी यात्रा की वर्षगांठ पर 12 मार्च को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मस्थली गुजरात से आजादी के अमृत महोत्सव की शुरुआत की थी। ये हम सभी का सौभाग्य है कि हम आजाद भारत के इस ऐतिहासिक कालखंड के साक्षी बन रहे हैं। हमारे यहां मान्यता है कि जब कभी ऐसा अवसर आता है, तब सारे तीर्थों का एक साथ संगम हो जाता है। ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ एक राष्ट्र के रूप में भारत के लिए भी ऐसा ही पवित्र अवसर है। ये वो अवसर है जब आजादी के असंख्य संघर्ष, बलिदानों और तपस्याओं की ऊर्जा पूरे भारत में एक साथ पुनर्जागृत हो रही है। ये अवसर है देश के स्वाधीनता संग्राम में खुद को आहूत करने वाली महान विभूतियों के चरणों में आदरपूर्वक नमन करने का। ये अवसर है उन वीर जवानों को प्रणाम करने का, जिन्होंने आजादी के बाद भी राष्ट्र रक्षा की परंपरा को जीवित रखा और देश की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिए। ये अवसर है उन पुण्य आत्माओं का वंदन करने का, जिन्होंने आजाद भारत के पुनर्निर्माण में प्रगति की एक-एक ईंट रखी और 75 वर्ष में देश को यहां तक लाए।

जब हम गुलामी के उस दौर की कल्पना करते हैं, जहां करोड़ों लोगों ने सदियों तक आजादी की एक सुबह का इंतजार किया, तब ये एहसास होता है कि आजादी के 75 साल का अवसर कितना ऐतिहासिक है। इस पर्व में शाश्वत भारत की परंपरा है, स्वाधीनता संग्राम की परछाई है और आजाद भारत की गौरवान्वित करने वाली प्रगति है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत महोत्सव के पांच स्तंभों पर विशेष जोर दिया है। ये स्तंभ है Freedom Struggle, Ideas at 75, Achievements at 75, Actions at 75 और Resolve at 75, ये पांचों स्तंभ आजादी की लड़ाई के साथ-साथ आजाद भारत के सपनों और कर्तव्यों को देश के सामने रखकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देंगे। किसी राष्ट्र का गौरव तभी जागृत रहता है, जब वो अपने स्वाभिमान और बलिदान की परंपराओं को अगली पीढ़ी को भी सिखाता है और उन्हें संस्कारित करता है। किसी राष्ट्र का भविष्य तभी उज्ज्वल होता है, जब वो अपने अतीत के अनुभवों और विरासत के गर्व से जुड़ा रहता है। भारत के पास तो गर्व करने के लिए समृद्ध इतिहास और चेतनामय सांस्कृतिक विरासत है। आजादी के 75 साल का ये अवसर एक अमृत की तरह वर्तमान पीढ़ी को प्राप्त होगा। एक ऐसा अमृत, जो हमें प्रतिपल देश के लिए जीने और कुछ करने के लिए प्रेरित करेगा।

वेदों में कहा गया है, ‘मृत्योः मुक्षीय मामृतात्।’ अर्थात हम दुःख, कष्ट, क्लेश और विनाश से निकलकर अमृत की तरफ बढ़ें । यही संकल्प आजादी के इस अमृत महोत्सव का भी है। आजादी का अमृत महोत्सव यानी आजादी की ऊर्जा का अमृत, स्वाधीनता सेनानियों की प्रेरणाओं का अमृत, नए विचारों का अमृत, नए संकल्पों का अमृत, आत्मनिर्भरता का अमृत। और इसीलिए ये महोत्सव राष्ट्र के जागरण और वैश्विक शांति एवं विकास का महोत्सव है। आजादी की लड़ाई में अलग-अलग घटनाओं की अपनी प्रेरणाएं हैं, जिन्हें आज का भारत आत्मसात कर आगे बढ़ सकता है। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम, महात्मा गांधी का देश को सत्याग्रह की ताकत याद दिलाना, लोकमान्य तिलक का पूर्ण स्वराज्य का आह्वान, नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज का दिल्ली मार्च, 1942 का अविस्मरणीय आंदोलन, अंग्रेजों भारत छोड़ो का उद्घोष, ऐसे कितने ही अनगिनत पड़ाव हैं, जिनसे हम प्रेरणा लेते हैं। ऐसे कितने ही सेनानी हैं, जिनके प्रति देश हर रोज अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है। 1857 की क्रांति के मंगल पांडे, तात्या टोपे जैसे वीर हों, अंग्रेजों की फौज के सामने निर्भीक गर्जना करने वाली रानी लक्ष्मीबाई हों, कित्तूर की रानी चेन्नमा हों, रानी गाइडिन्ल्यू, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, अशफाकउल्ला खां, गुरु राम सिंह, टिटूस जी, पॉल रामासामी जैसे वीर हों, या फिर सरदार पटेल, बाबा साहेब आंबेडकर, मौलाना आजाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, वीर सावरकर जैसे अनगिनत जननायक। ये सभी महान व्यक्तित्व आजादी के आंदोलन के पथ प्रदर्शक हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन्हीं लोगों के सपनों का भारत बनाने के लिए संकल्पबद्ध हैं।

हमारे स्वाधीनता संग्राम में ऐसे कितने आंदोलन हैं, जो देश के सामने उस रूप में नहीं आए जैसे आने चाहिए थे। ये एक-एक संघर्ष अपने आप में भारत की असत्य के खिलाफ सत्य की सशक्त घोषणाएं हैं, भारत के स्वाधीन स्वभाव के सबूत हैं और इस बात का भी साक्षात प्रमाण हैं कि अन्याय, शोषण और हिंसा के खिलाफ भारत की जो चेतना राम के युग में थी, महाभारत के कुरुक्षेत्र में थी, हल्दीघाटी की रणभूमि में थी, शिवाजी के उद्घोष में थी, वही शाश्वत चेतना, वही अदम्य शौर्य, भारत के हर क्षेत्र, हर वर्ग और हर समाज ने आजादी की लड़ाई में अपने भीतर प्रज्वलित करके रखी थी। ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ ये मंत्र आज भी हमें प्रेरणा देता है। कोल आंदोलन हो या ‘हो संघर्ष’, खासी आंदोलन हो या संथाल क्रांति, कछोहा कछार नागा संघर्ष हो या कूका आंदोलन, भील आंदोलन हो या मुंडा क्रांति, संन्यासी आंदोलन हो या रमोसी संघर्ष, कित्तूर आंदोलन, त्रावणकोर आंदोलन, बारडोली सत्याग्रह, चंपारण सत्याग्रह, संभलपुर संघर्ष, चुआर संघर्ष, बुंदेल संघर्ष, ऐसे कितने ही आंदोलनों ने देश के हर भूभाग को, हर कालखंड में आजादी की ज्योति से प्रज्वलित रखा। इस दौरान हमारी सिख गुरू परंपरा ने देश की संस्कृति, अपने रीति-रिवाज की रक्षा के लिए, हमें नई ऊर्जा दी, प्रेरणा दी, त्याग और बलिदान का रास्ता दिखाया।

आजादी के आंदोलन की इस ज्योति को निरंतर जागृत करने का काम, पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण, हर दिशा में, हर क्षेत्र में, हमारे संतों ने, महंतों ने, आचार्यों ने निरंतर किया। एक प्रकार से भक्ति आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी स्वाधीनता आंदोलन की पीठिका तैयार की। पूर्व में चैतन्य महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस और श्रीमंत शंकर देव जैसे संतों के विचारों ने समाज को दिशा दी। पश्चिम में मीराबाई, एकनाथ, तुकाराम, रामदास, नरसी मेहता हुए, उत्तर में संत रामानंद, कबीरदास, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, गुरु नानकदेव, संत रैदास, दक्षिण में मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभाचार्य, रामानुजाचार्य हुए, भक्ति काल के इसी खंड में मलिक मोहम्मद जायसी, रसखान, सूरदास, केशवदास, विद्यापति जैसे महानुभावों ने अपनी रचनाओं से समाज को अपनी कमियां सुधारने के लिए प्रेरित किया।

हमें इन महान आत्माओं का जीवन इतिहास देश के सामने पहुंचाना है। इन लोगों की जीवन गाथाएं हमारी आज की पीढ़ी को जीवन का पाठ सिखाएंगी। एकजुटता क्या होती है, लक्ष्य को पाने की जिद क्या होती है, इसका सही मतलब बताएंगी। याद करिए, तमिलनाडु के 32 वर्षीय नौजवान कोडि काथ् कुमरन को। अंग्रेजों ने उस नौजवान के सिर में गोली मार दी, लेकिन उन्होंने मरते हुए भी देश के झंडे को जमीन पर नहीं गिरने दिया। तमिलनाडु में उनके नाम से ही कोडि काथ् शब्द जुड़ गया, जिसका अर्थ है झंडे को बचाने वाला। तमिलनाडु की ही वेलू नाचियार वो पहली महारानी थीं, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। ओडिशा में चक्रा बिसोई ने लड़ाई छेड़ी, तो लक्ष्मण नायक ने गांधीवादी तरीकों से चेतना फैलाई। आंध्र प्रदेश में मण्यम वीरुडु यानी जंगलों के हीरो अल्लूरी सीराराम राजू ने रम्पा आंदोलन का बिगुल फूंका। पासल्था खुन्गचेरा ने मिजोरम की पहाड़ियों में अंग्रेजों से लोहा लिया था। गोमधर कोंवर, लसित बोरफुकन और सीरत सिंग जैसे असम और पूर्वोत्तर के अनेकों स्वाधीनता सेनानियों ने देश की आज़ादी में योगदान दिया है। देश इनके बलिदान को हमेशा याद रखेगा।

आजादी के आंदोलन के इतिहास की तरह ही आजादी के बाद के 75 वर्षों की यात्रा, भारतीयों के परिश्रम, इनोवेशन और उद्यमशीलता का प्रतिबिंब है। हम भारतीय चाहे देश में रहें या फिर विदेश में, हमने अपनी मेहनत से खुद को साबित किया है। हमें गर्व है हमारे संविधान और हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं पर। ज्ञान-विज्ञान से समृद्ध भारत आज मंगल से लेकर चंद्रमा तक अपनी छाप छोड़ रहा है। आज भारत की सेना का सामर्थ्य अपार है, तो आर्थिक रूप से भी हम तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। आज भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम, दुनिया में आकर्षण का केंद्र बना है। आज दुनिया के हर मंच पर भारत की क्षमता और प्रतिभा की गूंज है। आज भारत अभाव के अंधकार से बाहर निकलकर आगे बढ़ रहा है। आज भारत वो सब कर रहा है, जिसकी कुछ साल पहले तक कल्पना नहीं हो सकती थी। 75 साल की यात्रा में एक-एक कदम उठाते-उठाते आज देश यहां पर पहुंचा है।

भारत की उपलब्धियां आज सिर्फ अपनी नहीं हैं, बल्कि ये पूरी दुनिया को रोशनी दिखाने वाली और पूरी मानवता को उम्मीद जगाने वाली हैं। भारत की आत्मनिर्भरता से ओतप्रोत विकास यात्रा पूरी दुनिया की विकास यात्रा को गति देने वाली है। कोरोना काल में ये हमारे सामने सिद्ध भी हो रहा है। मानवता को महामारी के संकट से बाहर निकालने में वैक्सीन निर्माण में भारत की आत्मनिर्भरता का आज पूरी दुनिया को लाभ मिल रहा है। आज भारत के पास वैक्सीन का सामर्थ्य है, तो वसुधैव कुटुंबकम के भाव से हम सबके दुख दूर करने में काम आ रहे हैं। हमने दुख किसी को नहीं दिया, लेकिन दूसरों का दुख कम करने में खुद को खपा रहे हैं। यही भारत का शाश्वत दर्शन है और आत्मनिर्भर भारत का तत्वज्ञान है। आज दुनिया के देश भारत का धन्यवाद कर रहे हैं। यही नए भारत के सूर्योदय की पहली छटा है। यही हमारे भव्य भविष्य की पहली आभा है।

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है- ‘सम-दुःख-सुखम् धीरम् सः अमृतत्वाय कल्पते’। अर्थात् जो सुख-दुःख, आराम चुनौतियों के बीच भी धैर्य के साथ अटल अडिग और सम रहता है, वही अमृत को प्राप्त करता है, अमरत्व को प्राप्त करता है। अमृत महोत्सव से भारत के उज्ज्वल भविष्य का अमृत प्राप्त करने के हमारे मार्ग में यही मंत्र हमारी प्रेरणा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी के अमृत महोत्सव की शुरुआत करते हुए कहा था, ‘उत्सवेन बिना यस्मात् स्थापनम् निष्फलम् भवेत्‘ अर्थात कोई भी प्रयास, कोई भी संकल्प बिना उत्सव के सफल नहीं होती। एक संकल्प जब उत्सव की शक्ल लेता है, तो उसमें करोड़ों लोगों की ऊर्जा जुट जाती है। इसी भावना के साथ हमें आजादी का अमृत महोत्सव मनाना है।

(लेखक, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक हैं।)

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